पूजा सिंह
भोपाल. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मालेगांव विस्फोट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है. उनका मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह से है.प्रज्ञा ठाकुर को उतरने के बाद जैसी प्रतिक्रिया आ रही है वह पार्टी के लिए बहुत अच्छी तो नहीं मानी जा सकती .एक तथ्य यह भी है कि भाजपा को दिग्विजय सिंह के खिलाफ शायद कोई कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं मिल पाया . माना जा रहा है कि भाजपा भोपाल में अवधारणा के स्तर पर लड़ाई हार चुकी है.
प्रज्ञा सिंह ठाकुर की उम्मीदवारी के साथ ही भाजपा ने इस बात पर मुहर लगा दी कि वह किसी भी हालत में इस चुनाव में जीत हासिल करना चाहती है. इसके लिए उसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से भी गुरेज नहीं है. हालांकि पार्टी में उमा भारती, शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर के नाम पर भी चर्चा हुई लेकिन इनमें से कोई नेता चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ. आखिरकार साध्वी प्रज्ञा के नाम पर सहमति बनी और उन्होंने घोषणा भी की कि वह यह धर्मयुद्ध जीतेंगी.
प्रज्ञा ठाकुर भिंड जिले के लहार गांव की रहने वाली हैं. उनके पिता आरएसएस के सक्रिय सदस्य रहे और यही कारण है कि वह बचपन से ही दक्षिणपंथी रुझान वाली रहीं. युवावस्था में उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और दुर्गा वाहिनी की सदस्यता ली. उन्होंने स्वामी अवधेशानंद गिरि से दीक्षा ली और आगे चलकर उन्होंने सूरत में अपना आश्रम स्थापित किया. वह तब चर्चा में आयीं जब 2008 में मालेगांव धमाकों के तार उनसे जुड़े. उनकी मोटरसाइकिल का इस्तेमाल बम विस्फोट में किया गया था. एटीएस द्वारा गिरफ्तार किये जाने के बाद उन्हें सुनील जोशी हत्याकांड में भी आरोपित किया गया.
प्रज्ञा ठाकुर ने 9 वर्ष जेल में बिताये. उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम पर आरोप लगाया कि उन्होंने भगवा आतकंवाद का फर्जी जुमला गढ़ा और प्रज्ञा को इसका प्रतीक बनाने की कोशिश की. उन्होंने भारी प्रताड़ना की शिकायत भी की. बहरहाल, राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत पांच आरोपियों को मालेगांव मामले में बरी कर दिया.
अपने उत्तेजक और भड़काऊ भाषणों के लिए कुख्यात प्रज्ञा सिंह ठाकुर, बहुत जल्दी भाजपा नेताओं की नजर में आ गयी थीं. वह संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी को इटली वाली बाई कहकर पुकारती हैं. कांग्रेस से उनके विरोध को देखते हुए भाजपा ने भोपाल जैसी सीट पर उन्हें टिकट दिया है. भोपाल वह सीट है जहां पार्टी 1989 से लगातार चुनाव जीत रही है. ऐसे में अगर उसे यहां कोई नेता नहीं मिला और मजबूरन उसी दिन पार्टी में शामिल हुई साध्वी को टिकट देना पड़ा तो इससे यह तय है कि भाजपा भोपाल में अवधारणा के स्तर पर लड़ाई हार चुकी है. लेकिन यह भी तय है कि साध्वी के आगमन के बाद भोपाल में जुबानी तीर चलेंगे और जमकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होगा.
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