नवनीश कुमार
इसे शर्मनाक ही कहा जाएगा कि आजादी के सात दशक बाद भी देश में हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा पर लगाम नहीं लग सकी है. देश में आज भी 66,692 लोग हाथ से मैला ढोने का काम कर रहे हैं. इससे भी ज्यादा हैरत की बात यह है कि हाथ से मैला ढोने वालों में आधे से ज्यादा अकेले उत्तर प्रदेश में हैं. देश को आजाद हुए सात दशक से ज्यादा बीत गए, पर उत्तर प्रदेश में आज भी 37 हजार लोग हाथ से मैला ढोते हैं. इस आंकड़े के साथ उत्तर प्रदेश देश में नम्बर वन पोजिशन पर है. देश में 66,692 लोग मैला ढोने को मजबूर हैं. यह विकासशील से विकसित होते हुए देश व 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने का दावा करने वाली सरकार के लिए भी शर्मनाक है. यह भी तब जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और संविधान रचियता बीआर अम्बेडकर ने इस कुप्रथा का जमकर विरोध किया था. लेकिन आज भी यूपी सहित देश के कई राज्यों में यह जीवित है.
वैसे भी हाथ से मैला ढोने की प्रथा संविधान के अनुच्छेद 15, 21, 38 और 42 के प्रावधानों के खिलाफ है. यह जानकारी केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने एक सवाल के जवाब में बीते बुधवार को दी है.
अठावले ने राज्यसभा में खुलासा करते हुए कहा कि, देश में हाथ से मैला ढोने वाले 66,692 लोगों की पहचान कर ली गई है. इनमें 37,379 मैला ढोने वाले लोगों के साथ उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है. अठावले के आंकड़ों के अनुसार हाथ से मैला ढोने के मामले में उत्तर प्रदेश 37,379 लोगों के साथ पहले नंबर पर हैं. महाराष्ट्र 7,378 लोगों की पहचान के साथ दूसरे स्थान पर है. पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में 4,295 लोग हैं.
यही नहीं, पिछले पांच साल में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान हुई मौतों की जानकारी देते हुए सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा कि इस मामले में 340 लोगों की जान गई है. उनमें से 217 को पूरा मुआवजा दिया जा चुका है, जबकि 47 को आंशिक रूप से मुआवजा दिया गया है.
खास है कि मैला ढोना (मैनुअल स्केवेंजिंग) की कुप्रथा को खत्म करने के लिए पहला कानून 1993 में पारित हुआ था. उसके बाद एक बार फिर कुछ सुधारों के साथ वर्ष 2013 में दूसरा कानून अधिनियमित किया गया. पहले कानून में सूखे शौचालयों में काम करने को समाप्त किया गया जबकि दूसरे कानून में मैला ढोने की परिभाषा को बढ़ाया गया. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार सबसे ज़्यादा पांच लाख 58 हज़ार सूखे शौचालय उत्तर प्रदेश में हैं. साल 2013 के बाद मार्च 2018 में दूसरी बार मैला ढोने वालों की पहचान और उनकी गणना के लिए सर्वे किया गया.
यहां यह जानना भी जरूरी व रोचक है कि भारत सरकार ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया. यूपी सरकार ने इसे हाथों हाथ लिया था. स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश्य खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ़) करना तो था ही पर प्रदेश सरकार की मंशा यह भी थी कि हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा बंद हो. इस बीच यूपी के लिए खुशखबरी भी है कि, यूपी के दो जिले बरेली व अलीगढ़ को समयान्तर्गत सर्वाधिक शौचालय निर्माण करने पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम व द्वितीय श्रेणी का पुरस्कार प्राप्त हुआ है. इसके साथ ही वर्ष 2020-21 में उत्तर प्रदेश को स्वच्छ, सुन्दर सामुदायिक शौचालय में द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है. लेकिन मैला ढोने पर काबू न पाया जाना गंभीर है.
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