इमदाद बाग़ कैसे बन गया झंडेवाला पार्क

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इमदाद बाग़ कैसे बन गया झंडेवाला पार्क

हिमांशु बाजपेयी  
कल की प्रस्तुति अमीनाबाद के ऐतिहासिक झंडेवाले पार्क में थी. स्वतंत्रता आंदोलन के हवाले से ये लखनऊ की सबसे अहम जगह रही है. अब सिरे से फ़रामोश कर दी गयी है. पहले ये इमदाद बाग़ कहलाता था. 1928 से इसे झंडेवाला पार्क कहा जाने लगा. बीसवीं सदी में इस जगह को लखनऊ ही नहीं बल्कि पूरे देश में स्वातंत्र्य तीर्थ की तरह माना जाता था. राष्ट्रीय आंदोलन की कोई भी अहम घटना हो उसे इस पार्क में झंडा फहरा कर दर्ज किया गया. यहां झंडा फहराना आज़ादी का एलान समझा जाता था. इसलिए झंडा फहराने पर पाबंदी थी. कोई फहरा दे तो जेल की सज़ा तय थी. लेकिन इसके बावजूद 1928 से 1947 तक इस पार्क में झंडा फहराने के मल्टिपल एफर्ट्स हुए. जनवरी 1928 जब साइमन कमीशन के ख़िलाफ़ माहौल बनना शुरू ही हुआ था इस पार्क कुछ देशभक्तों ने राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया. ध्वज को फौरन हटा दिया गया. पार्क के चारों तरफ पुलिस लगा दी गयी. जो फिर आज़ादी मिलने तक लगी रही. 

30 नवंबर 1928 को साइमन कमीशन के खिलाफ इसी जगह जवाहरलाल नेहरू ने ज़बरदस्त भाषण दिया. पुलिस के झंडा नहीं फहराने दिया. 26 जनवरी 1930 की शाम को यहां लोग जमा हुए. स्वतंत्रता दिवस मनाया गया. झंडा फहराया गया और पूर्ण स्वराज की मांग करता लाहौर घोषणापत्र पढ़ा गया. 18 अप्रैल 1930 को नमक कानून के विरोध में यहां जनसभा हुई. नमक बना कर कानून को तोड़ा गया. 16 जून 1930 को दो क्रांतिकारियों मिताई. विश्वास और रामेश्वर प्रसाद ने पुलिस को चकमा देकर यहां झंडा फहरा दिया और तुरंत गिरफ्तार करके एक साल के लिए जेल भेज दिए गए. जुलाई 1930 में एक बार फिर सरदार जोगेंद्र सिंह, हरदत्त सिंह और राम सिंह ने यहां झंडा फहरा दिया और 6 महीने की क़ैद मंज़ूर की. 4 जनवरी 1931 को यहां बारदौली दिवस मना. 26 जनवरी 1934 को महात्मा गांधी ने खुद यहां झंडा फहराकर जनसभा को संबोधित किया. अगले साल 1935 में फिर बापू यहां आए. 

कॉंग्रेस की स्वर्ण जयंती वर्षगांठ का आयोजन उन्होंने किया जगह झंडा फहरा कर किया. 1935 ही में कुछ ऐसा हुआ कि इस जगह का नाम बच्चे बच्चे की ज़बान पर था. क्रांतिकारी गुलाब सिंह लोधी पुलिस से भिड़ गए और बचते बचाते यहाँ एक पेड़ पे चढ़कर झंडा फहरा दिया. पुलिस ने उस निहत्थे को चारों तरफ से घेर कर गोलियों से भून डाला और वो पेड़ कटवा दिया. पार्क में शहीद गुलाब सिंह की एक विशाल मूर्ति लगी है जिसके हाल खराब हैं और इसके हाथ का तिरंगा बिल्कुल ही ख़राब हो चुका है मगर एक शहीद और तिरंगे की इस हालत पर किसी भी भावना आहत नहीं होती. 1947 तक बहुत बार यहां झंडा फहराने की कामयाब और नाकाम कोशिशें होती रहीं. लोग जेल जाते रहे. पुलिस बरक़रार रही. 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए लखनऊ वाले इसी जगह इकठ्ठा हुए. यहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया. अंततः झंडे वाले पार्क में झंडा फहराने की भी आज़ादी मिली.  
(अगली और आख़िरी प्रस्तुति कल यानी 14 फरवरी को 4:30 बजे कुड़ियाघाट पर है. जो अब तक नहीं आए हैं वो इसमे ज़रूर आएं.)

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