शुभनित कौशिक
हथकड़ी पहने राहुल सांकृत्यायन की यह ऐतिहासिक तस्वीर अमवारी किसान सत्याग्रह में उनकी गिरफ्तारी के बाद ली गई थी. जब उन्हें छपरा जेल से पेशी के लिए हथकड़ी पहनाकर सीवान ले जाया जा रहा था, तभी यह तस्वीर अप्रैल 1939 में ली गई थी. छपरा जेल में ही रहते हुए राहुलजी ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘तुम्हारी क्षय’ लिखी थी. जिसमें उन्होंने किसान-मजदूर एकता की बात करते हुए पूँजीपतियों, जमींदारों और महाजनों के साथ रूढ़िवादी समाज और दक़ियानूसी परम्पराओं के क्षय की कामना की थी.
वर्ष 1938 में तिब्बत की अपनी चौथी यात्रा से लौटने के बाद राहुल सांकृत्यायन राजनीति में फिर से सक्रिय हुए. उन्होंने लिखा कि ‘मैं पहले भी राजनीति में अपने हृदय की पीड़ा दूर करने आया था. गरीबी और अपमान को मैं भारी अभिशाप समझता था. असहयोग के समय भी मैं जिस स्वराज्य की कल्पना करता था, वह काले सेठों और बाबुओं का राज नहीं था. वह राज था किसानों और मजदूरों का क्योंकि तभी गरीबी और अपमान से जनता मुक्त हो सकती थी.’
इस दौरान कलकत्ता में राहुल जी सोमनाथ लाहिड़ी, भवानी सेन और मुजफ्फर अहमद जैसे साम्यवादी नेताओं से मिले. बाद में वे पटना से होकर छपरा गए. और फिर शुरू किया उन्होंने गाँव-गाँव घूमकर किसानों-मजदूरों को संगठित करने का काम. उसी समय छपरा में किसान कार्यकर्ताओं का ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ. जिसमें अमवारी गाँव से आए किसानों ने राहुल जी से कहा कि उनके खेत छीन लिए गए हैं और उनके ऊपर रोज हो रहे अत्याचारों की सुनवाई कहीं नहीं हो रही. ये किसान ‘हरी-बेगारी’ प्रथा का विरोध कर रहे थे, जिसके अंतर्गत किसानों को अपने हल-बैल से पहले जमींदारों के खेत को जोतना पड़ता था. कांग्रेस के नेता और प्रशासन भी किसानों की समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे थे.
राहुल जी ने गाँव-गाँव घूमकर वस्तुस्थिति का अध्ययन किया. इन यात्राओं में उनके साथ नागार्जुन भी थे. किसान सत्याग्रह की शुरुआत राहुल जी ने हथुआ राज से करने की सोची. लेकिन बाद में किसान सत्याग्रह की शुरुआत अमवारी से की गई. अमवारी में धारा 144 लगाए जाने की अफवाह उड़ाए जाने के बावजूद राहुल किसान सत्याग्रहियों के साथ फरवरी 1939 में अमवारी गए. वहाँ के जमींदार ने किसान सत्याग्रहियों से निपटने के लिए पचासों लठैत और दो हाथी जमा कर रखे थे.
राहुल जी के नेतृत्व में किसानों ने उस खेत से ऊख काटना शुरू किया. जिस पर अमवारी के जमींदार ने अवैध ढंग से कब्जा कर लिया था. लठैतों की परवाह किए बगैर राहुल जी के नेतृत्व में किसानों ने ऊख काटना शुरू किया. जमींदार ने अपने लठैतों को राहुल और नागार्जुन पर लाठी चलाने के लिए उकसाया, लेकिन उन्होंने भिक्षुवेश धारी राहुल और नागार्जुन पर लाठी चलाने से इंकार कर दिया. पुलिस भी जमींदार का ही साथ दे रही थी. राहुल जी द्वारा ऊख काटे जाने पर थानेदार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उसी समय जमींदार के महावत ने राहुल जी के सर पर लाठी से प्रहार किया, जिससे उनका सर फट गया और खून की धारा बहने लगी.
बाद में, राहुल और नागार्जुन समेत दो दर्जन किसान सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर सीवान जेल में बंद कर दिया गया. जबकि राहुल पर हमला करने वाले महावत को छोड़ दिया गया. राहुल जी की गिरफ्तारी ने जनता में आक्रोश भड़काया और जब उन्हें सीवान से छपरा ले जाया जा रहा था, तब सड़क पर सैकड़ों लोग ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’, ‘किसान राज कायम हो’ और ‘जमींदारी प्रथा का नाश हो’ के नारे लगा रहे थे. बाद में राहुल जी ने छितौली में हुए किसान सत्याग्रह का भी नेतृत्व किया.
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