अंबरीश कुमार
किसी समुद्र तट जैसा दृश्य था .यह ठीक सामने ही तो था .नीला पानी जो पहाड़ से उतरता हुआ आ रहा था .छोटे छोटे गोल सफ़ेद स्लेटी पत्थरों पर दूर तक चले गए थे थे .एक तरफ सेब का बाग़ था तो सामने देवदार का जंगल . गंगा के चौड़े पाट पर बना यह डाक बंगला बहुत पुराना था .हवा में ठंढक बढती जा रही थी पर जवान से किस्सा सुनने में मजा आ रहा था .ऊपर पहाड़ पर उसकी यूनिट थी जहां से वह आया था .डाक बंगला में दो कमरे थे जिसमे एक जो ज्यादा बेहतर था वह हमें दिया गया . थोड़ी देर बाद वह जवान चाय बिस्कुट के साथ आया और फिर इस जगह के बारे में बताने लगा . सुरेश नामका वह जवान फिर यह भी बोला 'राजकपूर साब यही रुके थे ,राम तेरी गंगा मिली की शूटिंग के लिए .इसी रूम में . कुछ देर बाद उसने बताया कि रात का खाना ऊपर पहाड़ पर स्थित मेस से ही आएगा और रात करीब नौ बजे तक क्योकि वह दूर है . चाय की व्यवस्था यहां थी . कुछ देर बाद बाहर निकले तो सामने भागीरथी का चौड़ा पाट था .
किनारे पर ग्लास की एक बंद झोपडी जिसे ग्लास हाउस कहा जा रहा था उसके भीतर जाकर बैठे तो बर्फीली हवा से राहत मिली . दूर तक फैली सफ़ेद बालू पर गोल हो चुके पत्थरों की चादर बिछी थी और भागीरथी इन पत्थरों को छूती हुई गुजर रही थी . पीछे की तरफ वह मशहूर विल्सन काटेज था जहा कभी विल्सन साहब रहते थे जिन्होंने सेब की बागवानी शुरू कराई और इस अंचल को एक दिशा भी दी . हर्षिल में चारो ओर पहाड़ से गिरती करीब दस नदिया है जो झरने में बदल जाती है . ये झरने जब फिर नदी में बदलकर हर्षिल की जमीन पर आते है तो कई जगह टापू में बदल जाती है .
पहाड़ पर देवदार के घने जंगल ,सेब के बगीचों के बगल से गुजरती एक नदी और उसके पारदर्शी पानी का जो दृश्य बन रहा था वह आर्ट्स कालेज के एक चित्रकार के कैनवास पर तो कई बार देखा पर साक्षात् पहली बार दिख रहा था . इन नदियों ,झरनों और वादियों को देखकर समझ आया राजकपूर ने क्यों इस जगह को चुना था .शाम को आकाश को लेकर भागीरथी /गंगा के चौड़े पाट पर निकले . गोल पत्थरों की चादर बिछी हुई थी जो दूर देवदार के जंगल तक जा रही थी .चौकीदार ने आगाह किया था कि ज्यादा दूर तक न जाएं जंगली जानवर भी इधर आ जाते हैं खासकर शाम के वक्त .भागीरथी नदी में छोटी छोटी लहरे उठ रही थी ,गिर रही थी .पानी ऐसा कि लोटे से निकाल कर सीधे पी लें .कुछ देर रुके सामने के पहाड़ से उतरती हुई नदी को देखने लगे जो नीचे उतर कर विल्सन काटेज की तरफ चली जा रही थी .पहाड़ से उतरती सभी नदियां कुछ देर घुमने के बाद गंगा माई जिसे भागीरथी कहते हैं उसी में समां जाती थी .राजकपूर को यह लोकेशन बहुत पसंद थी .वे ज्यादा चल नहीं पाते थे तो उन्हें खटोले पर उठाकर ले जाया जाता था आसपास की लोकेशन दिखाने .राम तेरी गंगा मैली फिल्म देखें तो इस लोकेशन का नजारा भी देख सकते हैं .
शाम ढलने बाद फी उस फिर डाक बंगला परिसर के ग्लास हाउस में जम गए और उठे तब जब वह जवान टिफिन लेकर आ गया और बोला - सर ,.अपने आफिसर के डिनर से पहले खाना सर्व नहीं हो सकता था इसलिए थोडा देर हुआ . सेना का अपना अनुशासन होता है .मेस का भी .
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