डा शारिक़ अहमद ख़ान
.ख़ुशबू का रहस्य.कल दिलकुशा कोठी गए तो वहाँ परिसर में बनी कुछ कब्रें भी देखीं.तभी मेरी नज़र एक कब्र पर पड़ी जिसके ऊपर गुलाब का एक फूल रखा था,कब्र के पत्थर पर नाम खुदा था जो ध्यान से देखने पर हल्का सा दिख रहा था,ये कब्र चार्ल्स कीथ डैशवुड की थी जो 18वीं बंगाल नेटिव इंफ़ैंट्री में लेफ़्टिनेंट था और 1857 में लखनऊ में क्रांतिकारियों से हुए युद्ध में मारा गया और उसे यहीं दिलकुशा परिसर में दफ़न कर दिया गया,वो केवल उन्नीस वर्ष का था.हमने अपनी मित्र को इस बारे में बताया,कब्र के ऊपर फूल देखकर मेरी दोस्त ने कहा कि डैशवुड की कब्र पर कौन फूल रख गया,बड़े गद्दार छिपे हुए हैं इस देश में,ये तो देश के क्रांतिकारियों के ख़िलाफ़ लड़ा था,तब फूल कौन रख गया,या हो सकता है इसे भी कोई बाबा मानकर मन्नत मांग रहा हो,बहुत बेवकूफ़ भी इस दुनिया में मौजूद हैं.ये सुन हमने कहा कि जो इस फ़ानी दुनिया से कूच कर गया उसमें कोई अपना-पराया नहीं,सभी रूहें एकसाँ हो जाती हैं,रूह-रूह में कोई भेद नहीं होता,ना मरने के बाद आपस में लड़कर मरे लोगों की रूहों में आपस में कोई दुश्मनी रह जाती है,जब दुनिया छूट जाती है तो दुनियावी दोस्ती और दुश्मनी ख़त्म,सब रूहें सम्मान की पात्र हैं.बस ये मामूली बात हम लोगों की हुई और हम लोग चले आए,फिर उसकी कोई चर्चा नहीं हुई.हम अपने घर आए तो रात में क़रीब दस बजे के आसपास हमें ताज़े गुलाब के फूलों की बहुत तेज़ ख़ुशबू आने लगी,हमने सोचा कि हमारे यहाँ तो इतने गुलाब लगे ही नहीं हैं,थोड़े से हैं,ख़ुशबू तो इतनी तेज़ आ रही है जैसे हम गुलाब की किसी बगिया में हों,ये गुलाब के परफ़्यूम की ख़ुशबू भी नहीं है.अब हमने अपने आसपास मौजूद घरेलू सहायकों से पूछा कि गुलाब की इतनी तेज़ महक कहाँ से आ रही है,सबने कहा गुलाब की महक कहाँ आ रही है,ऐसी तो कोई ख़ुशबू नहीं आ रही है,अब हमने अपनी मदर से पूछा कि मम्मी क्या आपको गुलाब के फूलों की ख़ुशबू आ रही है.उन्होंने इन्कार किया.अब हम चुपचाप अपने बेडरूम में आकर बैठ गए,बाहर हवा नहीं चल रही थी लेकिन खिड़की का पल्ला हिला और फिर बहुत तेज़ गुलाब के फूलों की ख़ुशबू का झोंका आया,हम अभी भी समझ नहीं पा रहे थे कि हो क्या रहा है,थोड़ी देर सोचते रहे,अब कुछ समझ में आया,फिर हमने अपनी उन्हीं दोस्त को फ़ोन लगाया जो मेरे साथ दिलकु़शा गईं थीं,हमने उनसे पूरा मामला बता पूछा कि क्या आपको भी गुलाब के फूलों की ख़ुशबू आ रही है,उन्होंने कहा नहीं,तुम्हारा दिमाग़ पूरा खिसक गया क्या.अब हमने फ़ोन रखा और चुपचाप बैठ गए,फिर खाना खाया और बिस्तर पर लेटे,ख़ुशबू अभी भी आ रही थी,हमने कुछ पढ़कर फूंका,अब ख़ुशबू आना अचानक से बंद हो गई.देखिए,कहते हैं कि रूहें दो किस्म की होती हैं,एक अच्छी और एक बुरी,जहाँ अच्छी रूहें आती हैं वहाँ तेज़ ख़ुशबू आती है,जहाँ बुरी रूहें आती हैं वहाँ तेज़ बदबू आती है.ये तो विश्वास की बात है,साइंस इसकी पुष्टि नहीं करता.
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