रिहाना की आवाज़ की ताकत का अनुमान नहीं है

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रिहाना की आवाज़ की ताकत का अनुमान नहीं है

रुचिर गर्ग 

 मीना हैरिस ने भी किसानों के आंदोलन का समर्थन किया है और इसे दबाने की सरकार की साजिशों के खिलाफ गुस्सा ज़ाहिर किया है.मीना हैरिस वही अपनी कमला हैरिस की भांजी.विश्व गुरु दुनिया में बहुत बदनाम हो रहे हैं. दुनिया अब वो वाली नहीं रही भाई. मीना हैरिस ने ही यह भी लिखा है कि फ़ासिज़्म कहीं भी हो वो लोकतंत्र के लिए हर जगह खतरा है!दुनिया इस खतरे की पदचाप सुन रही है.

दुनिया सिर्फ जनविरोधी सत्ताधीशों की नहीं है,दुनिया जनहितैषी लोगों से भरी पड़ी है.


दुनिया में लोकतंत्र के हिमायती जिस तादाद में है ना उसका अंदाज़ दरअसल कुंए के मेंढकों को है नहीं.ये दुनिया को गोस्वामियों की नज़र से ही पहचानते हैं.इन्हें पॉप सिंगर रिहाना या पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग की आवाज़ की ताकत का अनुमान नहीं है.दुनिया ऐसे संगीतकारों,सामाजिक कार्यकर्ताओं,कवियों,चित्रकारों,जनहितैषी शासकों,राजनीतिज्ञों,बुद्धिजीवियों,वैज्ञानिकों,पत्रकारों से भरी पड़ी है.


दुनिया भक्ति में लीन नहीं है.दुनिया पढ़ रही है ,जान रही है,लड़ रही है ...और रच रही है.यहां मुंह बंद करोगे,इंटरनेट बन्द करोगे तो आवाज़ दुनिया के किसी और कोने से उठेगी,किसान की छाती पर यहां कीलें ठोकोगे तो दर्द दुनिया के किसी और कोने में होगा ,रक्त किसी और कोने में निकलेगा और चीख किसी और कोने से सुनाई देगी .विश्व गुरू जी दुनिया ट्रंप के साथ खत्म नहीं हो गई है ! दुनिया तो तब भी लड़ रही थी,रच रही थी जब इंटरनेट नहीं था.


1857 की क्रांति को अंग्रेजों ने कुचल तो दिया था क्योंकि क्रांतिकारियों की मामूली तलवारों का मुकाबला अंग्रेजों की तोप से था लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ इस महान विद्रोह ने आज़ादी की जो चेतना पैदा की थी उस इतिहास को ज़रूर जान लेना चाहिए . प्रबंधन में गहरी आस्था रखने वाले हे गुरुओं संघर्ष को कुचलने के जतन ज़रूर प्रबंधन का कौशल हो सकते हैं लेकिन संघर्ष तो दिलों से ,विचारों से और इरादों से होता है.


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