अंबरीश कुमार
उत्तरकाशी में रात बिताने के बाद सुबह करीब नौ बजे हर्षिल के लिए निकले . अब वाहन बदल चुका था मारुती वैन की जगह अम्बेसडर और रफ़्तार भी ज्यादा नहीं. उत्तरकाशी से आगे चढ़ाई बढ़ती जाती है और पहाड़ नंगे होते नजर आते है . रास्ता भी बहुत संकरा और नीचे खाई की तरफ देखते ही डर लगता है . रास्ते में पड़े एक मंदिर में गर्म पानी के श्रोत से हाथ मुंह धोया और बाहर बैठकर चाय पी .
आगे बढे सुखी टाप से आगे बढ़ते ही बर्फ से सामना हुआ पहले सड़क के किनारे किनारे फिर बीच बीच में भी . बर्फ गिराने के बाद अगर ओस पड़ जाए तो यह बर्फ काफी कड़ी हो जाती है और उसपर वाहन फिसलने लगता है . दोपहर में गंगोत्री के मुख्य रास्ते से बाई और मुड़े तो सामने जो गांव था उसका नाम 'हर्षिल ' था . इसे देखते ही मुंह से निकला अद्भुत . वाकई गजब का नजारा था . इसका परिचय जो मिला उसमे कहा गया है ' यह हिमाचल प्रदेश के बस्पा घाटी के ऊपर स्थित एक बड़े पर्वत की छाया में, भागीरथी नदी के किनारे, जलनधारी गढ़ के संगम पर एक घाटी में है.
बस्पा घाटी से हर्षिल लमखागा दर्रे जैसे कई रास्तों से जुड़ा है. मातृ एवं कैलाश पर्वत के अलावा उसकी दाहिनी तरफ श्रीकंठ चोटी है, जिसके पीछे केदारनाथ तथा सबसे पीछे बदंरपूंछ आता है. यह वन्य बस्ती अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ मीठे सेब के लिये मशहूर है. हर्षिल में ऊंचे पर्वत, कोलाहली भागीरथी, सेबों के बागान, झरनें, सुनहले तथा हरे चारागाह आदि शामिल हैं.'पर जो सामने था वह इस वर्णन से भी बहुत ज्यादा था . सेना का एक जवान जो गाइड के रूप में था वह पीडब्लूडी के छोटे से डाक बंगले में ले गया जिसपर उत्तरकाशी के भूकंप के चलते दरार के निशान दिख रहे थे .जारी
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