रमा शंकर सिंह
आम का बौर आरंभिक सुरभि फैलाकर अब जरूरी हद तक झर चुका है , उसमें छोटे छोटे नन्हें आम के फल आने लगे हैं. आम का हर पेड फैसला करता है कि कितने फलों का बोझ वह सह सकता है , उतने ही फल बडे होने शुरु होंगें. फिर तोते आयेंगें, काट काट कर फैंकेंगे . गिलहरियों को खाना नहीं होता बस छोटे से फल को अपने दाँतों से काट कर गिरा देना होता है.यह उसका शगल है. मैं इंतजार मे रहता हूँ कि कुछ बच जाये पर कभी नहीं बच पाते और फिर निराश होकर कच्चे ही तुडवा लेता हूँ. मैं फलों का लालची नहीं बल्कि ये सब पेड लगाये ही पक्षियों के लिये हैं. पिछले चार बरस से एक अमरूद खाने को नहीं मिला तो कोई शिकायत थोडे ही की जबकि उन बीस पेड़ों से इतना बढिया स्वादिष्ट जामफल होता था कि सब मित्रों के यहॉं भिजवानें में परिवहन का कष्ट होने लगता था. तोतों और गिलहरियों ने अब वह कष्ट दूर कर रखा है पर बदले में एक भी फल नहीं मिलता. एक दिन क्रोध में तय हुआ कि तोते भगाने का कुछ उपक्रम किया जाये पर पुत्री ने याद दिला दिया कि जब आपने ये वृक्ष रोपे थे तो कहा था कि इनसे पक्षी आयेंगें और अब उन्हें भगाने की तैयारी कर रहे हो. तत्काल गलती का भान हुआ और फिर तबसे पक्षियों का स्वागत होता रहा है. जब अमरूद फलते थे तो रात में चमगादड़ भी बडी संख्या मे आने लगे थे. अब फलने पकने की नौबत ही नहीं आती.
२- आम्र बौर से धर्मवीर भारती की कनुप्रिया याद न आये ऐसा कैसे हो सकता है. राधा कृष्ण का वह प्रेम प्रसंग जिसमें तब नितांत अकेली राधा अतीत को याद कर रही होती है ,प्रेमी कृष्ण की उस अनायास क्रिया को जब कृष्ण आम्र मंजरियों को अपनी अंगुलियों से मसलते हुये चलते जा रहे हैं और राधा सोच रही है कि कृष्ण दरअसल राधा की मॉंग भर रहे है आम्र मंजरी से. चूर चूर किया बौर तो धरती पर गिर रहा था , राधा की मांग कहॉं से आ गई ? बस यही हर पुरुष गलती कर रहा होता है. राधा ही तो धरती हैं. नारी ही तो पृथ्वी हैं. प्रेमिका राधा को ही तो यह हक है कि वह स्वयं को पूरी धरती रूप मे देखे सोचे और माने. धरती ही तो मॉं है ! प्रेम पैदा करने वाली राधा या कोई भी स्त्री नारी ही तो मॉं है इसलिये अपने विराटरूप का दर्शन करना इन्ही के बस का है . विराट रूप सिर्फ कृष्ण का ही नहीं राधा का भी है , बल्कि कृष्ण से ज्यादा है इस मायनें में कि कृ्ष्ण का विराटरूप राधा के विराट,का एक हिस्सा है ! सब उसके दर्शन की पात्रता नहीं रखते. पुरुष या कोई भी नर वैसा क्षमतावान नहीं होता कि प्रेमिका में धरती का दर्शन कर ले और मान भी ले. कृष्ण में भी नहीं था. कृष्ण की या किसी भी देवता की बहुत सीमायें है , राधा असीम है. प्रेम असीम है और उसको समग्रता में देख पाना समझ पाना और जी पाना राधाओं में ही संभव है. क्या सुंदर प्रसंग रचा भारती जी ने आम के बौर से कृष्ण का राधा की मांग भरना. राधा का तो फिर कृष्ण से विवाह नहीं हुआ. वे तो पटरानी नहीं बनी. तो क्या हुआ राधा बगैर विवाह के हर मंदिर में तो बैठी हैं , रुक्मणी कहॉं है ? कहीं नही. कृष्ण से मिलने की चाह वाले भक्त सिर्फ राधे राधे की रट लगाकर ही मिल सकेंगें. कुछ और भी आगे बढ गये है राधा जैसा स्त्री रूप बनाये धरे फिरते है कि कृष्ण मिल जायेंगें. राधा उम्र मेंकृष्ण से बडी थी और रिश्ते मे मामी लगती थी. कूढमगज बंद दिमाग पुरोहित न जाने क्यों इन सुंदर तथ्यों को छिपाते रहते है और अलौकिक प्रेम कथा को अपने पूर्वग्रहो से दूषित करते रहते है. राधे राधे की रट कीर्तन नामजाप सब फर्जी है ! राधा की तरह सोचो तब कृष्ण शायद दिख जायें कहीं किसी प्रेम में . आम के बौर मे राधा के सोच को देखो. आस्तिक देख पायेगा इसमें मुझे शक है , उसके लिये तो निर्गुणी चाहिये , अनीश्वरवादी होकर भी प्रेम और प्रकृति की शक्तियों में गहरा आस्थावान !
प्रेमी युगलो पर पुलिसिया ब्रिगेड बनाकर डंडा चलाने वाली प्रदूषित संस्कृति कैसे राधाओं व कृष्णों को देख पायेगी ? वे प्रेम न सिर्फ देख नहीं सकते वरन उसे वर्जित भी करते हैं. राधाकृष्ण विरोधी हुये ना ! हॉं मंदिरों में पूजने का ढकोसला वे कर सकते हैं.रमा शंकर सिंह की फेसबुक वाल से
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