ट्रैक्टर रैली के बाद संसद कूच !

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ट्रैक्टर रैली के बाद संसद कूच !

अंबरीश कुमार 

पंजाब और हरियाणा को अब भूल जाइए .अब खबर देश के बड़े हिस्से से आ रही है .यह आंदोलन देश का अबतक का सबसे बड़ा आंदोलन बन चुका है .इसके प्रभाव में देश का बड़ा हिस्सा आ चुका है .आज शाम से कल सुबह तक दिल्ली की और हर राज्य से जाने वाली सड़क का हाल लीजिएगा तब अंदाजा लग पाएगा यह कितना बड़ा और जमीन से जुड़ा आंदोलन बन चुका है .पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 

वे लोग जो पिछले तीन चुनाव से भाजपा के बड़े समर्थक थे वे इस आंदोलन को हर तरह की मदद दे रहे हैं .वैसे भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश ,हरियाणा और पंजाब के जाट ,पंजाबी इस आंदोलन की धुरी बने हुए हैं .आर्य समाज आंदोलन के असर वाला यह इलाका दिल्ली से बुरी तरह नाराज हो चुका है .सिर्फ किसान और आढ़तिये ही नहीं नाराज हैं बल्कि मजदूर और खेती किसानी से जुड़े सभी तबके नाराज और परेशान हैं .छोटे व्यापारी भी .जबसे यह साफ़ हुआ है कि दो तीन बड़े उद्दमी उद्योगपति कृषि क्षेत्र पर अपना दबदबा बनाएंगे छोटे व्यापारी भी आशंकित हैं .भले ऐसा न हो पर एक डर तो बैठ ही गया है .पश्चिंमी उत्तर प्रदेश के कुछ गांव का हाल लीजिए तो पता चलेगा किस तरह घर घर से चंदा इकठ्ठा हुआ है .इसमें दलित और पिछड़ी जातियों के लोग भी शामिल हैं .ये नए किस्म का सांस्कृतिक आंदोलन भी है .पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अनिल त्यागी ने कहा ,जिस तरह यह आंदोलन खड़ा हो गया है उसके विभिन्न पहलुओं पर नजर डालना चाहिए .मैंने टिकैत से लेकर कई बड़े किसान आंदोलन देखें है .चौधरी चरण सिंह से लेकर देवीलाल तक की बड़ी किसान रैली भी देखी .पर ऐसा किसान आंदोलन नहीं देखा .यह समाज का आंदोलन बन चुका है परिवार का आंदोलन बन चुका है .और व्यापक हो रहा है .यह केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती हैं .'

यह बात सही भी है .महाराष्ट्र में आज जो किसान रैली हुई उसका राजनीतिक संदेश यही है .कर्नाटक में रैयत संघ जिस तरह से अपनी ताकत दिखा रहा है वह बहुत महत्वपूर्ण है .मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र और राजस्थान से बड़ी संख्या में किसान इस आंदोलन में शामिल हो चुके हैं .उड़ीसा से पांच सौ किसानो का दल जेपी आन्दोलन से जुडी ताकतों के नेतृत्व में जिस तरह जगह जगह दमन उत्पीडन के बावजूद दिल्ली की सीमा पर जाकर डट गया है वह देखने वाला है .बिहार ,असम ,उत्तर प्रदेश और बंगाल से आम दिनों जैसे रेलगाड़ी नहीं चल रही है .इसलिए दूर राज्यों के किसान भले इस आंदोलन में न पहुंचे पर वे जिला मुख्यालयों पर लगातार प्रतिरोध दर्ज करा रहे हैं . ऐसे बहुत से राज्य हैं जहां किसान और नौजवान इस आंदोलन की धार तेज कर रहे हैं .जिसका असर दस पंद्रह दिन में ठीक से सामने आएगा .

वैसे भी किसान संगठनों ने एक फरवरी को फिर संसद कूच का नारा तो दे ही दिया है .जब संसद चल रही हो और दिल्ली की दहलीज पर बैठे लाखों किसान संसद कूच का नारा दे दें तो उस राजनीतिक गर्मी का अंदाजा सरकार तो लगा ही सकती है .छब्बीस जनवरी को किसान रैली को देश का ही नहीं विदेश का मीडिया भी कवर कर रहा है .वह एक फरवरी को भी यह आंदोलन कवर करेगा .इसकी जानकारी सरकार को भी है .जो डेढ़ साल तक इन नए कृषि कानून को ठंढे बस्ते में डालने की घोषणा कर चुकी है .थोडा और इन्तजार करना चाहिए .उम्मीद है सरकार खुद ही इन कृषि कानूनों से पल्ला झाड लें . अडानी अंबानी के लिए भाजपा और सरकार अब बहुत ज्यादा जोखम लेने की स्थिति में नजर नहीं आ रहे हैं .रैली कल है पर सांस आज ही फूल रही है बाकी रही सही कसर मुंबई में शरद पवार ने दो दर्जन जिलों के किसानो की रैली में अपनी बात कह कर पूरी कर दी है .


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