कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग

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कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग

आलोक कुमार 

पटना.देश में गरीबों की आवाज को ताकत देने वाले जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न नहीं देना दुर्भाग्यपूर्ण है.दुर्भाग्यपूर्ण तो उनका है जो केवल  जयंती के अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री को भारत रत्न देने की मांग करते हैं.

जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को हुआ था.भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं.लोकप्रियता के कारण उन्हें जननायक कहा जाता था. कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया, जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है, में नाई जाति में हुआ था.जननायक जी के पिताजी का नाम श्री गोकुल ठाकुर तथा माता जी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था.इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे तथा अपने पारंपरिक पेशा नाई का काम करते थे.भारत छोड़ो आन्दोलन के समय उन्होंने 26 महीने जेल में बिताए थे.वह 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तथा 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे.कर्पूरी ठाकुर का पत्नी का नाम कुलेश्वरी देवी था.


बिहार में गरीबों के सबसे बड़े नेता के रूप में कर्पूरी ठाकुर जाने जाते रहे हैं और इसलिए प्रदेश के एकलौते जननायक भी थे. जननायक के नाम पर नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव से लेकर बिहार के अधिकांश पार्टियां राजनीति करती रही हैं. जननायक को भारत रत्न मिले, इसके लिए मांग भी लगातार होती रही है. लेकिन केंद्र और बिहार में एनडीए सरकार है और डबल इंजन की सरकार में भी अब तक फैसला नहीं हो पाया है.


जननायक कर्पूरी ठाकुर की सादगी की चर्चा खूब होती रही है. लोगों के लिए सहज उपलब्ध रहने वाले जननायक दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. कर्पूरी ठाकुर अति पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत आने वाले नाई समाज से आते थे. लेकिन अपनी सादगी और गरीबों के लिए लिए गए फैसलों के कारण ही जननायक बन गए. इसलिए लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान, सुशील कुमार मोदी जैसे नेता उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते रहे.


रामविलास तो नहीं रहे. लेकिन तीनों लालू, नीतीश और सुशील मोदी अभी भी हैं और उनके बताए रास्ते पर चलने की बात करते हैं. 64 साल की उम्र में जितनी लोकप्रियता हासिल की. नीतीश कुमार भी कहते रहे हैं कि वे जीवित रहते तो, देश के प्रधानमंत्री तक बन सकते थे. जननायक की उपलब्धियों को लेकर ही बिहार विधानसभा से लेकर संसद तक भारत रत्न देने की मांग होती रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर राजद सुप्रीमो लालू यादव तक ने कई बार इस मांग को रखा है. जदयू के सांसद चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी यहां तक कहते हैं, जब तक भारत रत्न मिल नहीं जाएगा, तब तक हम लोगों का संघर्ष चलता रहेगा.


जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की लंबे समय से मांग होती रही है. लेकिन डबल इंजन की सरकार में भी इस पर फैसला नहीं हो सका. वहीं जदयू सांसद चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी ने कहा कि जब तक भारत रत्न मिल नहीं जाएगा, तब तक हम लोगों का संघर्ष चलता रहेगा.


कर्पूरी ठाकुर के पुत्र और वर्तमान में राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर से जब जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि 1989 में जब भागवत झा आजाद बिहार के मुख्यमंत्री थे, तो दोनों सदनों से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार के पास भेजा गया. फिर लालू प्रसाद यादव के समय भी जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की अनुशंसा की गई. इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में भी दोनों सदन से भारत रत्न देने का प्रस्ताव पास कर सरकार के पास भेजा गया. उन्होंने कहा कि उनके द्वारा भी केंद्र सरकार को पत्र लिखा गया. यह केंद्र सरकार ही तय करेगी, वह तो सिर्फ मांग करेंगे.


"हम लोगों को पूरी उम्मीद है कि जननायक को भारत रत्न मिलेगा और इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रधानमंत्री और अमित शाह से भी अब बात करेंगे"- संतोष महतो, अध्यक्ष, जदयू अति पिछड़ा प्रकोष्ठ 


"हम लोगों को पूरी उम्मीद है और उम्मीद पर ही दुनिया है कि भारत रत्न जननायक को मिलेगा. जब तक नहीं मिलेगा तब तक संघर्ष चलता रहेगा"- कुमुद वर्मा, विधान पार्षद



कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में 4 बड़े फैसले लागू किए. पिछड़ा वर्ग का ध्रुवीकरण के लिए मुंगेरीलाल आयोग के फैसलों को लागू किया. हिंदी को सरकारी कार्य में अनिवार्य कर दिया. तो वहीं समाजवादी विचारधारा का विस्तार करने का फैसला लिया. कृषि का सही लाभ किसानों तक पहुंचाने का भी निर्णय लिया गया. इन चारों फैसलों की खूब चर्चा होती रही. पिछड़ों के लिए जो आरक्षण लागू किया, उसकी वजह से निशाने पर भी रहे और सरकार भी गई.


जननायक की जयंती के मौके पर हर बार भारत रत्न को लेकर चर्चा जोर पकड़ती है. इस बार भी खूब चर्चा हो रही है. हालांकि अब केंद्र और बिहार दोनों में एनडीए की सरकार है. यानी डबल इंजन की सरकार है. ऐसे जदयू नेताओं को लगता है कि जल्द ही फैसला हो जाएगा और पूरे बिहार के लोग जो चाहते हैं कि भारत रत्न मिले, वह मिलेगा.


जननायक कर्पूरी ठाकुर गरीबों के मसीहा थे. जब वह बिहार के मुख्यमंत्री बने तो, हमेशा ही गरीबों के हित में सोचा करते थे. यदि कर्पूरी ठाकुर नहीं होते तो आज हम बिहार की राजनीति में नहीं आ पाते. क्योंकि कर्पूरी ठाकुर जाति धर्म से ऊपर उठकर राजनीति करते थे. राज्य का विकास कैसे हो, गरीबों का उत्थान कैसे हो, इसको लेकर ही हमेशा सोचा करते थे"- रामचंद्र पूर्वे, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, राजद



बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी एवं शिक्षक 'जननायक' कर्पूरी ठाकुर जी की जयंती पर कोटि कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि। 

 

आंखों देखी खबर...जननायक कर्पूरी ठाकुर का आगमन... बिना लाव-लश्कर के कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल में...किसी परिजन से मिलने आये थे... कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल के दरबान पूर्व मुख्यमंत्री को अंदर जाने से रोक दिये...दरबान ने कहा कि अभी मिलने का समय नहीं है...तब राजनेता बेंच पर जाकर बैठ गए...

उस समय फिजियोथेरापी में सिस्टर मरिया पी आकर कहती हैं...आलोक कुमार जी जननायक कर्पूरी ठाकुर को देख लीजिए....दरबान अंदर जाने से रोक दिए हैं..11 बजे तक का इंतजार करेंगे...


तब याद आयी कांग्रेसी नेता चंदन बागची की...जो ओपीडी में सीएमओ की कुर्सी पर जा बैठे थे....सीएमओ ने कुर्सी पर से उठने को कह दिये..कांग्रेसी नेता ने देख लेने की धमकी दे डाली..सच में कांग्रेसी नेता देख ही लिया..दर्जनों सार्थियों के साथ हॉस्पिटल पर हमला कर दिये..पूछताछ में बैठे जोसेफ मार्क की धुनाई कर दी गयी..धुनाई तो मामूली था पर केस बनाने के लिए..हॉस्पिटल में भर्ती जोसेफ को किया गया...पेपर एवं पत्रिका में आलोक कुमार न्यूज प्रकाशित करवाया..


कुछ दिनों के बाद सरदार कृष्णा सिंह ने हॉस्पिटल पर हमला किया...प्रशासिका के कहने पर प्रेस कॉन्फ्रेंस आलोक कुमार ने करवाया..इन हादसों के आलोक में सिसिल साह कांग्रेस के सदस्य बने..तब जाकर हॉस्पिटल पर आक्रमण कम हुआ..


हॉस्पिटल में दबंग लोगों को आवाजाही करने में दरबान बाधक नहीं बनते हैं...सभ्य लोगों को समय पर ही जाना है...एक पुलिस अधिकारी को रोक दिया गया..वह भी जननायक की तरह समय का इंतजार करने लगे..


बताते चले कि सत्ता पाने के भारत में अन्‍नत काल से बहादुरी की अनेक गाथाओं को जन्‍म दिया है.संभवत: उनके बलिदानों को मापने का कोई पैमाना नहीं है, यद्यपि हम उन लोगों से भी अपनी आंखें फेर नहीं सकते जिन्‍होंने अपने-अपने क्षेत्रों में उत्‍कृ‍ष्‍टता प्राप्‍त कर हमारे देश का गौरव बढ़ाया है और हमें अंतरराष्‍ट्रीय मान्‍यता दिलाई है.भारत रत्‍न हमारे देश का उच्‍चतम नागरिक सम्‍मान है, जो कला, साहित्‍य और विज्ञान के क्षेत्र में असाधारण सेवा के लिए तथा उच्‍चतम स्‍तर की लोक सेवा को मान्‍यता देने के लिए प्रदान किया जाता है.यह भी अनिवार्य नहीं है कि भारत रत्‍न सम्‍मान हर वर्ष दिया जाए.

बताते चले कि भारत रत्‍न पुरस्‍कार की परम्‍परा 1954 में शुरु हुई थी. सबसे पहला पुरस्‍कार प्रसिद्ध वैज्ञानिक चंद्र शेखर वेंकटरमन को दिया गया था.तब से अनेक विशिष्‍ट जनों को अपने-अपने क्षेत्र में उत्‍कृष्‍टता पाने के लिए यह पुरस्‍कार प्रस्‍तुत किया गया है. वास्‍तव में हमारे पूर्व राष्‍ट्रपति, डॉ. ए. पी. जे. अब्‍दुल कलाम को भी यह प्रतिष्ठित पुरस्‍कार दिया गया है (1997).इसका कोई लिखित प्रावधान नहीं है कि भारत रत्‍न केवल भारतीय नागरिकों को ही दिया जाए.यह पुरस्‍कार स्‍वाभाविक रूप से भारतीय नागरिक बन चुकी एग्‍नेस गोंखा बोजाखियू, जिन्‍हें हम मदर टेरेसा के नाम से जानते है और दो अन्‍य गैर-भारतीय - खान अब्‍दुल गफ्फार खान और नेल्‍सन मंडेला (1990).2009 में यह पुरस्कार प्रसिद्ध भारतीय गायक पंडित भीमसेन गुरूराज जोशी को प्रदान किया गया था.4 फरवरी 2014 को नई दिल्ली में भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा प्रसिद्ध क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर एवं प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो सीएनआर राव को भारत-रत्न से सम्मानित किया गया.

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