कोविड वैक्सीन, भरोसे की कमी

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

कोविड वैक्सीन, भरोसे की कमी

हिसाम सिद्दीक़ी 

कोविड वैक्सीन कितना कारगर होगा इसका सही अंदाजा लगने में तकरीबन छः महीने से एक साल तक का वक्त लग सकता है. हालांकि नार्वे में वैक्सीन लगवाने वाले सत्तर साल के ऊपर के तकरीबन तीस लोग मौत का शिकार हो गए. यह इदारिया (सम्पादकीय) लिखे जाने तक मुल्क में चार लाख चौबीस हजार (424000) लोगों को टीका लगाया जा चुका था. जिनमें तकरीबन साढे चार सौ लोगों के जिस्म पर इस वैक्सीन का बहुत बुरा असर पड़ा है. पहली ट्रायल वैक्सीन लगने से ही भोपाल में एक गरीब जितेन्दर की मौत हो चुकी है. उसे यह कहकर हेल्थ मोहकमे के लोग ट्रायल के लिए ले गए थे कि अगर वह अभी वैक्सीन लगवा लेगा तो उसे साढे सात सौ (750) रूपए मिलेंगे और अगर अभी न लगवाया तो बाद में उसे एक वैक्सीन के लिए हजार से डेढ हजार रूपए तक का भुगतान करना पड़ेगा. गरीब जितेन्दर साढे सात सौ रूपयों और मुफ्त के वैक्सीन के चक्कर में चला गया उसपर ट्रायल किया गया तीसरे दिन उसे घबराहट होने लगी और उसकी मौत हो गई. चूंकि मामला सरकारी था, इसलिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी उसकी मौत की वजह हार्ट अटैक बता दिया गया. जबकि उसके घरवालों का कहना था कि वैक्सीन लगने के बाद से ही वह परेशान रहने लगे थे हर वक्त डरे-डरे से दिखते थे, तीसरे दिन उनका इंतकाल हो गया. सरकार ने उनके घरवालों की न कोई सुनी न कोई उनके घर यह देखने के लिए गया कि उसके बच्चों के खाने का क्या इंतजाम है.

उत्तर प्रदेश में बड़ी द्दूम-द्दाम से यह कहा गया कि मकर सक्रांति के मौके पर वैक्सीन की शुरूआत की जाएगी, बीजेपी और मोदी चूंकि हर अच्छे बुरे काम को इवेंट में तब्दील कर देते हैं इसलिए वैक्सीन के मामले को भी वही रंग दिया गया. खुसूसी हवाई जहाज से वैक्सीन लखनऊ आती है तो उसे ‘जेड कैटेगरी’ की सिक्योरिटी में स्टोर तक पहुचाया गया फिर वहां पुलिस ऐसी लगी जैसे वैक्सीन के बजाए अंदर कोहेनूर रखा हो, अगर यह सब ड्रामा नहीं तो क्या है. चूंकि इस वैक्सीन पर अभी भी तमाम लोगों को एतबार नहीं है इसलिए न तो इसे कोई चुरा कर ले जाने वाला था न लूटकर. लेकिन यह ड्रामा दिल्ली से लेकर पूरे देश में फैलाया गया. प्राइम मिनिस्टर मोदी ने महज चंद दिन पहले बिहारियों के वोट ठगने के लिए बिहार की पब्लिक मीटिंगों में एलान किया था कि वैक्सीन आई तो बिहार के लोगों को तरजीह (प्राथमिकता) की बुनियाद पर मुफ्त वैक्सीन दी जाएगी. यही राग उनकी पूरी पार्टी ने भी पूरे बिहार में अलापा था. अब वैक्सीन आ गया तो मोदी और उनका झूटों का पूरा परिवार अब बिहार को मुफ्त में वैक्सीन देने पर खामोश है.

इस मामले में वैक्सीन का ट्रायल और वैक्सीन के लगाए जाने के सिलसिले में इतना उतावलापन प्राइम मिनिस्टर नरेन्द्र मोदी की जानिब से क्यों दिखाया जा रहा है यह बात किसी की समझ में नहीं आई. देश की जिन दो प्राइवेट कम्पनियों ने वैक्सीन बनाने का सबसे पहले दावा किया वह है सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया और भारत बायोटेक, सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने पहली जनवरी को ही एक बम जैसा फोड़ते हुए मीडिया से कहा था कि उनकी कम्पनी के अलावा जिन कम्पनियों ने भी वैक्सीन बनाई है उन सबमें सिर्फ पानी है. फिर आखिर क्या हो गया कि अदार पूनावाला भारत बायोटेक के चेयरमैन व एमडी डाक्टर कृष्ण एम एल्ला मिल गए और दोनों की बनाई हुई वैक्सीन को ट्रायल की मंजूरी भी मिल गई और दोनों एक दूसरे के गले में हाथ डालकर बातें भी करने लगे. अब तो लगता है कि दोनों की वैक्सीन में सिर्फ पानी है.

बहुत द्दूम-द्दाम से कहा गया कि सोलह जनवरी की सुबह प्राइम मिनिस्टर नरेन्द्र मोदी वैक्सीन लगाने का इफ्तेताह (शुभारम्भ) करेंगे. पता चला कि मोदी ने तो वीडियो कांफ्रेंसिग के जरिए एक लम्बी-चौड़ी तकरीर करके वैक्सीनेशन का इफ्तेताह कर दिया. जैसा हमने शुरू में ही लिखा कि वैक्सीन के असरात व नतायज छः महीने से एक साल तक में पता चल पाएंगे, लेकिन मोदी ने जिस तरह इफ्तेताह किया उससे तो लगता है कि उन्हें खुद ही वैक्सीन पर भरोसा नहीं है. जब इतना बड़ा इवेंट खड़ा कर दिया था तो पहली वैक्सीन खुद मोदी को और रियासतों के चीफ मिनिस्टर्स को लगवानी चाहिए थी. उनके वजीरों और कैबिनेट सेक्रेटरी समेत देश में बड़े कहे जाने वाले किसी भी सियासतदां या आला अफसर ने वैक्सीन नहीं लगवाईं. हेल्थ वर्कर पर एहसान करते हुए यह कहा गया कि पहले कोरोना की जंग में शामिल रहे हेल्थ वर्कर्स को वैक्सीन दी जाएगी. उन बेचारों ने लगवा भी ली उत्तर प्रदेश में साढे चार सौ लोगों को रि-एक्शन की शिकायतें भी आ गई. पहले दिन मुरादाबाद के एक वार्ड ब्वाय महिपाल को वैक्सीन दी गई, घर पहुंचते ही उसने घरवालों से बेचैनी की शिकायत की उसे बुखार भी हो गया और अगले दिन उसकी मौत हो गई. सरकारी डाक्टरों की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के मुताबिक मौत दिल का शदीद दौरा पड़ने से हुई.

इन वैक्सीन पर अगर प्राइम मिनिस्टर मोदी और रियासतों के चीफ मिनिस्टर्स ने भरोसा नहीं किया तो कुछ गलत नहीं किया. सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया ने पहले और दूसरे टेस्ट के बाद ही वैक्सीन जारी कर दी. तीसरा टेस्ट कम्पनी ने किन लोगों पर किया इसका पता नहीं चल सका. क्योकि तीसरे टेस्ट में कम्पनी ने वालेटियर की कोई फेहरिस्त अभी तक किसी को दिखाई नहीं है. इसी तरह भारत बायोटेक का तो दूसरे मरहले का ही टेस्ट मुकम्मल नहीं हुआ. उन्हें टेस्ट के लिए देश भर में वालेंटियर ही नहीं मिले. लेकिन उन्हें भी वैक्सीन जारी करने की इजाजत दे दी गई. भारत सरकार यह भूल गई कि लंदन की वैक्सीन बनाने वाली कम्पनी आस्ट्राजोनेका की वैक्सीन को अमरीका समेत कई बडे़ मुल्कों ने मंजूरी नहीं दी क्योकि आस्ट्राजोनेका ने ट्रायल की कार्रवाई मुकम्मल नहीं की थी तो क्या यह वैक्सीन आने वाले दिनों में इसका इस्तेमाल करने वालों और देश के लिए कितनी बड़ी तबाही की वजह बनेगी यह ख्याल भी खौफनाक है.

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :