ये किसान नहीं, आज़ादी के रक्षक हैं- सरोज चौबे

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ये किसान नहीं, आज़ादी के रक्षक हैं- सरोज चौबे

पटना.तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ पटना सिटी के गाय घाट स्थित डॉ. अम्बेडकर चौराहे के पास ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम (एआइपीएफ) के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम "किसानों के साथ हम पटना के लोग" में राजधानी के नागरिक समाज के अनेक प्रबुद्ध जन जुटे और कृषि कानूनों के दुष्प्रभावों से लोगों को अवगत कराते हुए इनके खिलाफ आवाज़ उठाने का आह्वान किया.

कार्यक्रम की मुख्य वक्ता वरिष्ठ वामपंथी महिला नेता सरोज चौबे ने कहा कि अपने सौ से ज़्यादा साथी खो चुके दिल्ली की सीमा पर डटे किसान केवल खेती नहीं बल्कि देश की आज़ादी बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. वे सच्चे देशभक्त हैं. देश उनका ऋणी रहेगा. मेहनतकाश जनता की कमाई से सेठों की थैली भरने वाली सरकार को इस आंदोलन के आगे झुकना ही होगा.  

उन्होंने आगे कहा कि ऐसा दुष्प्रचार चलाया जा रहा है मानो यह महज पंजाब - हरियाणा के किसानों की ज़िद हो. दरअसल यह आंदोलन पूरे देश की खाद्य सुरक्षा की गारंटी के लिए लड़ा जा रहा. नई कंपनी राज के हाथों गुलामी के खिलाफ लड़ा जा रहा है. इसलिए यह हम सबका आंदोलन है. इसे मिलकर जीतना ही होगा.

पर्यावरण और जल संरक्षण विशेषज्ञ , प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता रणजीव ने कहा कि लोक कल्याणकारी  राज्य व्यवस्था में अब आम लोगों की थाली से रोटी छीनी जा रही है और चहेते पूंजीपतियों की तिजोरी भरी जा रही है. चोरी से ये कानून लाये गए हैं. खाद्यान की हमारी आत्मनिर्भरता खत्म की जा रही है. किसानों की जमीन पर सरकार अपने चहेते पूंजीपतियों को कब्ज़ा दिलाया जा रहा है. पूरी खेती उनके अधीन की जा रही है. उन्होंने कहा कि ये कृषि कानून भूख और बदहाली पैदा करेंगे इसलिए हम सबका दायित्व है कि इनके खिलाफ चल रही लड़ाई में एकजुट हो व्यापक समर्थन पैदा करें. 

मौके पर मौजूद युवा कवि प्रशांत विप्लवी ने आंदोलनरत किसानों के साथ खड़ा होने की अपील करते हुए 'सर्वज्ञ की चिंता', 'जीभ', 'स्वाधीनता' और 'बहुत मुश्किल से आदमी बना हूं' शीर्षक अपनी कविताओं का असरदार पाठ किया.

कार्यक्रम का संचालन करते हुए इस नागरिक अभियान के संयोजक एआइपीएफ से जुड़े वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता ग़ालिब ने कहा कि इस आंदोलन से व्यापक समाज का जुड़ाव हो इसे संभव करना आज हम सबकी ऐतिहासिक जिम्मेदारी हो गयी है. यही इस अभियान का मकसद है."किसानों के साथ हम पटना के लोग" नामक इस नागरिक अभियान का यह तीसरा दिन था. पटना के विभिन्न मुहल्लों, बाजारों, इलाकों में गणतंत्र दिवस 26 जनवरी तक यह चलेगा जिसमें सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, कवि-साहित्यकार, प्राध्यापक-चिकित्सक, कवि,गायक, रंगकर्मी, युवा-मजदूर आदि समाज के सभी तबके भाग ले रहे हैं. गीत, कविता, नुक्कड़ नाटक व वक्तव्यों से किसान आंदोलन के समर्थन का आह्वान किया जा रहा है.


उक्त वक्ताओं के साथ कार्यक्रम में अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश सह सचिव उमेश सिंह, इंसाफ मंच के संयोजक नसीम अंसारी, आसमा खान, जन संस्कृति मंच के संयोजक राजेश कमल, अनय मेहता, राजेश कुशवाहा, ललन यादव, रामनारायण सिंह, चंद्रभूषण शर्मा, मो. सोनू समेत प्रबुद्ध नागरिक समाज के दर्जनों लोग मौजूद थे.


भारतीय किसान यूनियन (असली) के नेता चौधरी हरपाल सिंह ने कहा कि 26 जनवरी को हम दिल्ली के रिंग रोड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में ट्रैक्टर रैली निकालेंगे. पूरे यूपी में विरोध प्रदर्शन होंगे. उन्‍होंने कहा कि जब तक भारत सरकार तीनों कानून रद्द नहीं करती, चाहे 6 महीना लगे या एक साल, हमारा विरोध जारी रहेगा. यह आर-पार की लड़ाई है.


26 जनवरी के दिन ग्राम पंचायतों में ग्राम सभा भी होती है. जो लोग ट्रैक्टर रैली में नहीं जायेंगे वे किसान मजदूर ग्राम सभाओं में उपस्थित होकर इन तीनों काले कानूनों को वापस लेने का प्रस्ताव पारित कर महामहिम राष्ट्रपति महोदय और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, जिलाधिकारी समेत राज्य के राज्यपाल को भेजें.ग्राम सभा लोकतंत्र की एकमात्र ईकाई है जो कभी विघटित नहीं होती है.असली मालिक जनता है.

हम सभी जानते हैं कि देश भर के किसानों ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए लगातार शांति पूर्ण अहिंसक लोकतांत्रिक संघर्ष कर  रहे हैं. इसमें 70 से अधिक किसानों की शहादत हुई है. उनकी शहादत इस आंदोलन का गौरव बढ़ाया है.इसी कड़ी में 26 जनवरी को तीनों किसानी कानूनों को वापस लेने के लिए पूरे देश में ट्रैक्टर रैली होगी.

बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 की धारा-3 के अन्तर्गत ग्राम सभा की बैठक हर तीन महीने में एक बार होनी आवश्यक  है. अर्थात् दो ग्राम सभा के बीच की अवधि तीन माह से अधिक का नहीं होना चाहिए. एक कैलेण्डर वर्ष (1 जनवरी से 31 दिसम्बर तक) में न्यूनतम चार ग्राम सभा आयोजित किया जाना अनिवार्य है.आवश्यकतानुसार ग्राम सभा चार से अधिक आयोजित किया जा सकता है. इसे आसानी से याद रखने के लिए बैठक प्रमुख राष्ट्रीय दिवस/अन्तर्राष्ट्रीय दिवस को आयोजित का सुझाव दिया गया है.

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