के विक्रम राव
व्हाइट हाउस से जाते जाते डोनल्ड ट्रंप ने लिख डाला ,डियर जोय, तुम जानते हो, जीता मैं ही हूं.' कल (20 जनवरी प्रात:, लखनऊ में रात) शपथ की बेला पर विजयी राष्ट्रपति बाइडेन ने अपना सपना रेखांकित किया : ''अमेरिका की आत्मा लौटानी है. नस्लवाद का खात्मा होगा. कोरोना को हराना है. अनसिविल जंग आज नहीं, कल नहीं, कभी भी नहीं होगी. पर्यावरण को सुधारेंगे.'' (ट्रंप ने विश्व जलवायु संबंधी 135 नियम नष्ट किये हैं). अपने 38—मिनट के भाषण में बाइडेन की उक्ति थी , ''एकता, न कि विघटन की दिशा में चलें. प्रकाश, न कि अंधकार की ओर जायें.' यह एक सूचक है. भारत में पुरानी कहावत है ,''तमस्योर्मा ज्योतिर्गमय.''हमारी प्राचीन संस्कृतवाली यह उक्ति वाशिंगटन में प्रयुक्त हुई! पता चला कि आठ हजार किलोमीटर दूर तेलंगाना के करीमनगर में एक किसान कुटुम्ब के डा. चोल्लेटि विनय रेड्डी गत बारह वर्षों से बाइडेन का भाषण लिख रहें हैं. इस बार का तो विशेष तौर पर विनय ने ही तैयार किया था. कौन है यह विनय जिन्हें इतना महत्वपूर्ण लेखन कार्य सौंपा गया है? निजामशाही ग्राम पोतिरेड्डिपेटा के डा. चोल्लेटि नारायण रेड्डि दशकों पूर्व मेडिसिन पढ़ने ओहायो आये थे. वहां उनका पुत्र तेलुगुभाषी विनय जन्मा जो डेमोक्रेटिक पार्टी का अगुवा बना. पिता डा. नारायण और पुत्र विनय रेड्डि अपने गांव में प्राचीन मंदिर में अर्चना—पूजा करते थे. उनके गृहक्षेत्र हुजूराबाद का इतिहास है. शातवाहन, राष्ट्रकूट और चालुक्य साम्राज्य की राजधानी यह कोटिलिंगम स्थल रहा. श्रीशैलम ज्योर्तिंग के समीप. सम्राट प्रतापरुद्र का राज था.
निजामशाही में यह हिन्दू नाम करीमनगर हो गया. चोल्लेटि तिरुपति रेड्डि यहां के भूस्वामी थे. जिनका पोता लेखक विनय रेड्डि अब अमेरिकी है. कल जो भी राष्ट्रपति बाइडेन बोले वे सब विनय रेड्डि की कलम से उपजा. उसे स्वर दिया बाइडेन ने. उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के भी विनय सहायक हैं.
बौद्धक दृष्टि से बाइडेन के शपथ समारोह में जो परम्परागत विशिष्टता है, इसे भारत में भी अपनाया जाना चाहिये. साहित्यिकों को मांग करनी चाहिये. हर बार एक कवि अपनी सामयिक रचना विशेषकर प्रस्तुत करता है. मसलन 1961 में जॉन कैनेडी के समय मशहूर अमेरिकी कवि राबर्ट फ्रास्ट ने अपनी रचना पढ़ी थी. फ्रास्ट वहीं हैं जिनकी कविता : ''अभी तो मीलों जाना है'', को जवाहरलाल नेहरु के टेबुल की कांच के नीचे रखा जाता रहा. सिरहाने भी. स्व. प्रधानमंत्री इससे कार्य के दौरान प्रेरणा लेते रहते थे. नेहरु के इस प्रिय कवि फ्रास्ट की मशहूर कविता : ''स्टापिंग बाइ वुड्स आन ए स्नोयी इवेनिंग'' (1943 की लिखी) के अंश को भी कैनेडी के खातिर गाया गया था. अवसर था जब राष्ट्रपति का शव व्हाइट हाउस लाया गया था (23 नवंबर 1963). अंत्योष्टि हेतु आर्लिंगटन समाधि स्थल ले जाया जा रहा था. रेडियो के ख्यात एंकर सिड डेविस ने तब इन प्रिय और भावनाभरी पंक्तियों को दोहराया था. कैनेडी की हत्या डलास नगर में कर दी गयी थी.
बाइडेन के समारोह में 22 वर्षीया कवियित्री अमोण्दा गोरमन ने कल रात पेश किया था : ''दि हिल वी क्लाइम्ब'' (पर्वत जो हमें चढ़ने हैं). पूरे समारोह की विषयवस्तु ही थी कि : ''अमेरिका एक है.'' मोरमन के साथ लातीनी गायिका जेनिफर लोपेज तथा लेडी गागा की भी मनभावन प्रस्तुतियां रहीं.
भारत की युवा कवियित्रियों को अमान्दा गोरमन की रचनाओं का अपनी भाषाओं में अनुवाद कराना चाहिये. नोबेल पुरस्कार विजेता पठान किशोरी मलाला युसुफजाई का प्रभाव अमान्दा पर पड़ा. मलाला वही हैं जिसे तालिबानियों ने गोली से भूना था. बालिका शिक्षा को अवरुद्ध करने के लिये. अमान्दा ने बाइडेन से कहा कि 2036 में वह राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी बनेंगी.
कल केपिटल हिल (शपथ ग्रहण स्थल) पर एक नजारा भी दिखा था जो शायद पुनीत अवसरों पर भारत में भी दिखा करता है. कई महिलायें बैंजनी रंग के परिधान, खासकर कीमती मोतियों की लड़ियां पहने दिख रहीं थीं. यूं बैंजनी रंग के बारे में मान्यता है कि इसमें चुंबकीय गुण होते हैं. यह अन्तर्मन के भाव, शौर्य, शक्ति, शुचिता, ऐश्वर्य, सहनशीलता, नारीत्व आदि का बोध कराता है.
जैकलीन कैनेडी जब 1962 में नेहरु की अतिथि बनकर दिल्ली आयीं थीं तो बैंजनी रंग के मोती का हार धारण किये थीं. कल कमलादेवी हैरिस, मिशाइल ओबामा और हिलेरी क्लिन्टन बैंजनी परिधान में दिखीं. अब विकसित राष्ट्र अमेरिका पर अंधविश्वास तथा दकियानूसीपन का इल्जाम तो थोप नहीं सकतें हैं. पुरातन भारतवासियों को रंगों की पारम्परिक महत्ता का ज्ञान था. इसको स्वीकारना चाहिये.एक राजनीतिक पहलू. बाइडेन का एक खास आग्रह रहा. चीन पर वह नरम नहीं रहेंगे. शायद बैंजनी वर्ण इसी का कारक रहा हो. भारत की कम्युनिस्ट चीन के साथ जंग में अमेरिका सहायक होगा? उसकी पूंछ बने पाकिस्तान की भी दुर्गति तब तय है.
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