आलोक कुमार
पटना.तीनों कृषि कानून की वापसी के सवाल पर दिल्ली बॉर्डर और पूरे देश भर में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में राष्ट्रव्यापी आह्वान पर आज पटना में महिला संगठनों के संयुक्त बैनर के तले मार्च का आयोजित किया गया.इस अवसर पर सभा भी की गई.
इस कार्यक्रम का नाम "महिला किसान दिवस" दिया गया था. विदित हो कि विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि किसान आंदोलन में महिलाएं क्या कर रही हैं. आज का प्रतिवाद सुप्रीम कोर्ट के उसी आपत्तिजनक बयान के बाद निर्धारित हुआ था.
पटना में कारगिल चौक पर प्रतिवाद मार्च निकाला गया जिसका नेतृत्व संयुक्त रूप से ऐपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह बिहार राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे व राष्ट्रीय सचिव सह राज्य सचिव शशि यादव, बिहार महिला समाज की राज्य महासचिव राजश्री किरण व पटना सचिव अनिता मिश्रा, ऐडवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामपरी व नेत्री सरिता पांडेय, 'नारी गुंजन' से पद्मश्री सुधा वर्गीज, बिहार घरेलू कामगार यूनियन से सिस्टर लीमा, विमुक्ता स्त्री संगठन से आकांक्षा, ऑल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन की राज्य सचिव अनामिका, एएसडब्लूएफ से आस्मां खान, इंसाफ मंच से नसरीन बानो, बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ (ऐक्टू) की कोषाध्यक्ष राखी मेहता, 'चेतनालय' राजगीर से लीना तथा चंद्रकांता, सुष्मिता, तबस्सुम आदि ने किया. मार्च में महिलाएं 'मोदी सरकार मुर्दाबाद', 'काले कृषि कानून वापस लो', 'लोकतंत्र का गला घोंटना बंद करो', 'कंपनी राज नहीं चलेगा', 'तानाशाही मुर्दाबाद' आदि नारे लगा रही थीं.
सभा को संबोधित करते हुए महिला नेताओं ने कहा कि देश भर के किसान भयानक ठंड में दिल्ली को चारों ओर से घेरकर पिछले 26 नवंबर 2020 से तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने अशकी मांग कर रहे हैं. इससे पहले, जबसे अध्यादेश आया था तभी से किसान आंदोलनरत हैं. इस क्रम में 70 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है जिनमें मानसा की एक महिला किसान भी हैं. इस आंदोलन में बड़ी संख्या मे महिलाएं भी शामिल हैं. आंदोलन में किसान शांतिपूर्ण रूप अख्तियार कर रहे हैं फिर भी सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है. उसे किसानों की बजाय अम्बानी-अडानी की चिंता अधिक है.
ऐसे में सरकार एक तरफ किसानों को वार्ता के नाम पर उलझाए हुए है, तो दूसरी तरफ फर्जी किसान संगठनों का समर्थन हासिल कर किसान आंदोलन को तरह-तरह से बदनाम कर रही है. जब उसके सारे हथकंडे फेल हो गए तो सुप्रीम कोर्ट के जरिए एक ऐसी कमेटी का निर्माण कर दिया जिसमें इस कानून के समर्थक लोग ही शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने तो यहां तक कह दिया कि इस आंदोलन में महिलाओं को नहीं शामिल किया जाना चाहिए. कोर्ट के इस महिला विरोधी फैसले की महिला संगठन निंदा करते हैं और पूरे देश से महिलाएं "महिला किसान दिवस" के अवसर पर दिल्ली बॉर्डर पर जुटीं और कार्यक्रम आयोजित कर सरकार व कोर्ट की कॉरपोरेट-परस्ती का करारा जवाब दिया. इससे पहले भी विभिन्न महिला संगठन तीनों कृषि कानूनों की वापसी के लिए आंदोलन कर चुकी हैं. नेताओं ने कहा मांगें पूरी नहीं हुईं तो आंदोलन और तेज किया जाएगा.
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