चंचल
15/16 तक आते आते कांग्रेस अंग्रेजी निजाम के विरुद्ध जनमत बनाना शुरू कर दिया था , लेकिन आमजन तक नही पहुंच पा रही थी . इसके दो मुख्य कारण थे - भारतीय जनमानस के सूक्ष्म तंतु समझने में लापरवाही या उसकी अनुपयोगी अवधारणा . दूसरा नेताओं के बीच साधन पर मतभेद. ये मुहावरा था - बाल , गोपाल, पाल , और लाल ( बाल गंगा धर तिलक , गोपाल कृष्ण गोखले , विपिंनचन्द पाल और लाल लाजपत राय ) सब का ध्येय एक था ,सुराज . लेकिन डगर मुख्तलिफ रही . यहां तक कांग्रेस भारत के जनमानस तक नेताओं की पहुंच बधुत कम रही और कांग्रेस जनमन को आत्मसात किये कोई बड़ी लड़ाई नही लड़ी जा सकती , इस तरफ उनका ध्यान ही गया था. चुनांचे नेताओं की जीवन पद्धति आमजन से दूर रही और विशिष्ठ होने के आभा मंडल में लिपटी हुई . 16 में गांधी के आगमन , कांग्रेस में प्रवेश और देश को देखने के बाद गांधी जी का आम आदमी से जुड़ना और उसी तरह के जीवन को अपनाना ने , उस चरखे को बाहर निकाल दिया जो सैकड़ों साल से तोड़ फोड़ कर अंग्रेजी निजाम ने गहरे कुएं में डाल दिया था . चरखे के साथ भारत का सुनहरा अतीत भी निकला, जब भारती वस्त्र दुनिया के लिए अमूल्य निधि बने हुए थे और भारत सोने की चिड़िया बोला जाता था . इस अलंकरण में अन्य कुटीर उद्योगों के साथ भारतीय वस्त्र भी था और जो चरखे के सूत से निकलता था .
गांधी जी उसे झाड़ा फूंका और जनसाम्य के हाथ मे पकड़ा दिया और कहा कि यह चरखा केवल काठ का यंत्र भर नही है , यह आपको अदभुत स्वाभिमान देगा और स्वावलंबी बनाएगा . आप गुलामी को हरा कर जीत हासिल करेंगे . बाद में यही संक्षिप्त हो गया - '
' खादी एक विचार है . '
16 कांग्रेस तक तकरीबन सारे नेता सूट बूट और टाई में होते थे . 17 चंपारण से खादी को मंत्र मान लिया . एक दिलचस्प वाकया है -
चंपारण आंदोलन चलाकर गांधी जी बम्बई लौटे . जिन्ना हाउस में उनका स्वागत था .पटेल जी सबसे मुलाकात करा रहे थे . अब बारी आई जवाहरलाल नेहरू की . पटेल जी ने नाम लिया - ये हैं पंडित जवाहरलाल नेहरू . गांधी जी रुके , गौर से नेहरू को देखा , मुस्कुराए और बोले- ' हां अब पहचानने लगा हूँ , जवाहरलाल नेहरू को . ' पंडित नेहरू का लिबास बदल गया था सूट बूट टाई की जगह खादी का कुर्ता और पजामा था . परोक्ष में बोला गया खादी का यह संदेश 17 से कांग्रेस और जनमन की पहचान बन गया . खादी मतलब भारतीय . और इस खादी ने कितने सम्भ्रान्त तरीके से भारत को गर्वान्वित करती है ,इसके अनेकों उदाहरण हैं .
ब्रिटिश राज के सरकारी भोज के अवसर पर गांधी जी ने खादी के बहाने से जो मान दिया उस पर हर भारतीय को नाज होना चाहिए . ब्रिटिश राज महल में प्रवेश के जो कई सलीके तय है उसमें एक लिबास भी है . मेहमान को ड्रेस कोड के तहत सूटबूट टाई में ही जाना पड़ता है . गांधी जी ने मना कर दिया अंत मे हुकूमत को झकना ही पड़ा . बापू खादी और अधनंगे बदन से ही गए . किसी मेहमान का इस तरह राज महल ने प्रवेश पहला और आख़िरीहै .
कहते हो खादी महंगी पड़ती है ?
कुछ मत करो , इसे गले से.लगा लो , और सस्ती करदो .
सूत्र-
एक चरखा ले लो
खादी आश्रम से रुई लो , कम दाम पर मिलेगी
केवल आधा घंटा सूत कातो
खादी आश्रम को बेचो , अतिरिक्त मूल्य के साथ आमदनी होगी .
नकद मुद्रा मत लो एवज में खादी का कपड़ा लो उसमे लम्बी छूट मिलेगी .
रुई और एवज में चरखे से निकले सूत से जब कपड़ा खरीदोगे तो मुफ्त की हो जाएगी . ककेवल आपका आधा घण्टा ही लगेगा .
खादी को सामान्य साबुन से धोकर पहनो बस .
विशेष -
खादी के कपड़े पर नील , टिनोपाल ,या कोई भी केमिकल मत.लगाओ . यह नुकासान करता है कपड़े को और और आपकी चमड़ी को .
खादी को इस्त्री क़त्तई मत कराओ . इससे खादी के रोएं खत्म हो जाते हैं और यही रोएं खादी की जान हैं .
आजल खादी यह है . अब तो कांग्रेस भी यह सब भूल गयी है .
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