किसान कानून-खतरे में सुप्रीम कोर्ट की साख

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

किसान कानून-खतरे में सुप्रीम कोर्ट की साख

हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली.गुजिश्ता लम्बी मुद्दत से कई मामलात में अपनी साख दांव पर लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट ने किसान कानूनों पर माहिरीन कहे जाने वाले चार मेम्बरान की कमेटी बनाकर एक बार फिर अपनी साख दांव पर लगा दी है. किसान लीडरान ने साफ तौर पर कह दिया कि जिन चार मेम्बरान की कमेटी सुप्रीम कोर्ट ने बनाई है वह चारों ऐसे हैं जो किसान कानूनों की हिमायत कर चुके हैं. इनमें एक अशोक गुलाटी तो बाकायदा टीवी चैनलों की डिबेट में शामिल होकर किसान कानूनों को बेहतर कानून बताते रहे हैं. खबर यह भी है कि मोदी सरकार ने यह कानून बनाते वक्त अशोक गुलाटी से भी मश्विरा किया था. बाकी तीन मेम्बरान में भूपेन्दर सिंह मान, एग्रीकल्चर रिसर्च और मैनेजमेंट के साबिक डायरेक्टर डाक्टर प्रमोद कुमार जोशी और अनिल द्दनवत को शामिल किया गया है. हालांकि कमेटी पर हंगामा होने के बाद 14 जनवरी को भूपेन्दर सिंह मान ने खुद को कमेटी से अलग करने का एलान कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बनाने का एलान किया तो किसानों की तरफ से पैरवी करने वाले एडवोकेट एमएल शर्मा ने कहा कि आपके जरिए कमेटी बनाने से मकसद हल नहीं होगा, इसलिए कि किसानों ने सफाई के साथ कह दिया है कि वह किसी कमेटी के सामने पेश नहीं होंगे, उन्हें तो हर हाल में यह कानून वापस कराने हैं. इसपर चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा कि अगर किसान सरकार के सामने जा सकते हैं तो कमेटी के सामने क्यों नहीं? उन्होने कहा कि कमेटी हमने अपने लिए बनाई है ताकि मैं समझ सकूं कि अस्ल मसला क्या है. चीफ जस्टिस बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामा सुब्रामण्यम की बेंच ने फिलहाल किसान कानूनो ंके अमल पर रोक लगा दी है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसान लीडर दर्शनपाल सिंह ने कहा कि हमने अभी पंजाब की किसान तंजीमों के साथ बात की है. पूरे ज्वाइंट किसान मोर्चा के साथ बात करके कोई फैसला करेंगे. हमने पहले ही कह दिया था कि सुप्रीम कोर्ट अगर कोई कमेटी बनाएगी तो वह हमें मंजूर नहीं होगी. फिर भी कमेटी बनी, हमें लगता है कि सरकार सीद्दे जो नहीं कर सकी वह काम वह सुप्रीम कोर्ट के जरिए कर रही है. किसान लीडर बलबीर सिंह ने तो और तल्ख लहजे में बात करते हुए कहा कि यह सरकार की शरारत है जो सुप्रीम कोर्ट के जरिए यह कमेटी ले आई है. कमेटी में शामिल सभी मेम्बरान ऐसे हैं जो शुरू से ही किसान कानूनों को सही ठहराते रहे हैं. इन लोगों ने अखबारात में मजामीन (लेख) लिखकर भी किसान कानूनों की हिमायत की है.

मोदी हुकूमत ने झूट बोल कर दूसरों को बदनाम करने की कोशिश सुप्रीम कोर्ट में किसानों के खिलाफ उस वक्त की जब अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि किसान आंदोलन में बैन किए जा चुकी  मुल्क मुखालिफ तंजीम के खालिस्तानियों ने इस किसान आंदोलन में घुसपैठ की है उन्होने कहा कि खालिस्तान एक ममनूआ (प्रतिबंद्दित) तंजीम है जो किसानों की मदद कर रही है. करनाल में दस जनवरी को जो वाक्या पेश आया वह इसका सबूत है. अटार्नी जनरल ने इस ख्याल से यह इल्जाम लगा दिया था कि उनकी बात मीडिया में आ जाएगी और किसान बदनाम होंगे. लेकिन हुआ उल्टा, चीफ जस्टिस आफ इंडिया ने फौरन उन्हें टोकते हुए कहा कि अगर आंदोलन के पीछे खालिस्तानी तहरीक का हाथ है तो आपको इसकी तस्दीक करनी होगी और हलफनामा पेश करना पड़ेगा. वेणुगोपाल इद्दर-उद्दर देखने लगे फिर बोले कि वह आईबी (इंटेलीजेंस ब्योरो) से इनपुट लेकर अगले दिन हलफनामा पेश करेंगे.

किसान आंदोलन के पीछे खालिस्तान तहरीक का हाथ है, सुप्रीम कोर्ट में सरकार की जानिब से यह बात कहे जाने की खबर ने किसानों को और भड़का दिया. किसानों ने सवाल किया कि तकरीबन दो महीने से वह लोग सिंघु बार्डर पर बैठे हुए हैं, सख्त सर्दी की वजह से रोज एक या दो लोगां की मौत हो रही है, इसके बावजूद आज तक किसी किसान ने हिंसा का सहारा नहीं लिया, यहां तक किसी ने एक पत्थर भी नहीं फेंका. इसके बावजूद सरकार खुद और अपने गुलाम मीडिया के जरिए आंदोलन के पीछे खालिस्तान का हाथ होने का इल्जाम लगाकर हमें बदनाम कर रही है. अब तो इतेहा हो गई कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट तक में इतना झूट बोल दिया. हम साफ तौर पर कहना चाहते हैं कि अगर इसी तरह हमें बदनाम किया जाता रहा तो हम भी इंसान हैं हम भी कभी ‘रिएक्ट’ कर सकते हैं. हमें पता है कि हमें उकसा कर हिंसा में फंसाने की साजिश के तहत इस तरह का झूट बारबार बोल रही है.

चीफ जस्टिस आफ इंडिया ने उम्मीद जाहिर की कि 26 जनवरी को किसान दिल्ली में टै्रक्टर रैली नहीं निकालेंगे लेकिन किसानों ने फिर कहा कि हमने ऐसा कुछ नहीं कहा है. हम रैली निकालेंगे और हमारे खिलाफ जो झूटा प्रोपगण्डा किया जा रहा है कि रैली के दौरान हम हिंसा कर सकते हैं पार्लियामेंट या लाल किले पर कब्जा कर सकते हैं यह सरासर झूट है. हम किसी भी तरह की हिंसा में मुलव्विस नहीं होंगे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट कहे या सरकार किसान कानून वापसी के अलावा हम दूसरी कोई बात सुनने और मानने को तैयार नहीं हैं जब तक यह कानून वापस नहीं लिए जाएंगे तब तक हमारा पुरअम्न (शांतिपूर्ण) द्दरना जारी रहेगा, हमें कोई भी ताकत इसके लिए रोक नहीं सकती.

चार मेम्बरान की कमेटी बनाने से पहले सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर कई दिनों से बहस चल रही थी, इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन सरकार को डांट लगाते हुए यह तक कहा कि आखिर यह नए कानून लागू करने की इतनी जल्दी क्यों है? क्या सरकार इस कानून को कुछ दिनों के लिए ‘होल्ड’ नहीं कर सकती अगर नहीं करेगी तो हम ‘इसे होल्ड’ कर देंगे. अदालत ने 12 जनवरी को कानून होल्ड करने का आर्डर कर दिया और कमेटी बना दी. अब सवाल यह है कि इस कमेटी के लिए सुप्रीम कोर्ट को चार लोगों के नाम किसने दिए थे? ऐसा तो हो नही सकता सुप्रीम कोर्ट में बैठे जज साहबान इन सभी के नामों से वाकिफ हों और अगर अदालत ने सरकार के मश्विरे पर इन लोगों की कमेटी बनाई है फिर तो किसानों का यह इल्जाम सच ही है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जरिए यह कमेटी बनाने की साजिश की है.

अभी तक सरकार खुसूसन हरियाणा की खटटर सरकार यह दावा करती आई थी कि किसानों के आंदोलन में हरियाणा के किसान शामिल नहीं हैं. लेकिन दस जनवरी को जब मनोहर लाल खटटर ने अपने गढ करनाल के कैमला में फर्जी किसानों की किसान पंचायत करने का प्रोग्राम बनाया तो हरियाणा के ही बड़ी तादाद में किसानों ने वहां इकटठा होकर न सिर्फ हंगामा किया कुर्सियां फेंक दीं बल्कि खटटर के लिए बना डायस तोड़ दिया उनका हेलीपैड को भी तोड़ा, नतीजा यह कि खटटर के हेलीकाप्टर को आसमान में ही चक्कर लगाकर वापस जाना पड़ा. पुलिस ने किसानों पर लाठी चार्ज किया, आंसू गैस के गोले दागे और पानी की बौछार की, फिर भी किसानों का हौसला तोड़ नहीं सके. साथ ही यह भी साबित कर दिया कि हरियाणा के  किसान भी पूरी तरह इस आंदोलन में शामिल हैं.जदीद मरकज़  

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :