विजय शंकर सिंह
सुप्रीम कोर्ट किसानों की समस्या के बजाय सरकार की असहजता के प्रति अधिक संवेदनशील है.सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट स्टे हुआ, फिर दस दिन में रोक हट गयी. ऐसे तमाशे यह बताते हैं कि स्टे की क्या मियाद होती है और स्टे कैसे अचानक हटा दिया जाता है. सरकार के दबाव में हटाया गया या विधिसम्मत सुनवाई करके ? और जो कमेटी गठित हुयी है उसमें जो लोग हैं वे ही तो यह कानून ड्राफ्ट करने वाले लोगों के निकट हैं. अब इस कमेटी में कौन कौन है .सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के चार में से तीन सदस्य कृषि कानूनों के बारे सरकार के पक्ष में पहले से ही हैं. कमेटी के सदस्य हैं,
1.भूपिंदर मान सिंह मान, प्रेसिडेंट,
2. अशोक गुलाटी एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट,
3. डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, इंटरनेशनल पॉलिसी हेड, और
4. अनिल धनवत, शेतकरी संगठन, महाराष्ट्र को शामिल किया गया है.
- भूपिंदर मान सिंह राज्यसभा के सदस्य रहे हैं.
- अशोक गुलाटी तो अपने एक लेख में लिख चुके हैं कि,
" इन कानूनों से किसानों को अपने उत्पाद बेचने के मामले में और खरीदारों को खरीदने और भंडारण करने के मामले में ज्यादा विकल्प और आजादी हासिल होगी. इस तरह खेतिहर उत्पादों की बाजार-व्यवस्था के भीतर प्रतिस्पर्धा कायम होगी. इस प्रतिस्पर्धा से खेतिहर उत्पादों के मामले में ज्यादा कारगर मूल्य-ऋंखला (वैल्यू चेन) तैयार करने में मदद मिलेगी क्योंकि मार्केटिंग की लागत कम होगी, उपज को बेहतर कीमत पर बेचने के अवसर होंगे, उपज पर किसानों का औसत लाभ बढ़ेगा और साथ ही उपभोक्ता के लिए भी सहूलियत होगी, उसे कम कीमत अदा करनी पड़ेगी. इससे भंडारण के मामले में निजी निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा तो कृषि-उपज की बरबादी कम होगी और समय-समय पर कीमतों में जो उतार-चढ़ाव होते रहता है, उसपर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी."
- डॉ प्रमोद कुमार जोशी, सार्क एग्रीकल्चर सेंटर्स गवर्निंग बोर्ड के अध्यक्ष रहे हैं. वे वर्ल्ड बैंक के इंटरनेशनल असेसमेंट ऑफ एग्रीकल्चर साइंस के सदस्य रहे हैं.
- अनिल धनवत, शेतकरी संगठन, महाराष्ट्र से हैं और वे कृषि कानूनों के पक्ष में हैं. वे इन बिलो को बड़ा सुधार बता चुके ओर कह रहे हैं कि इससे किसानों को वित्तीय आजादी मिलेगी.
सुप्रीम कोर्ट को यह नाम किसने दिए हैं ? जाहिर है, किसी ने यह नाम सुझाये ही होंगे. अदालत उभय पक्ष से ही नाम, विकल्प और कानून सुझाने के लिये कहती है. यदि यह नाम सरकार ने सुझाये हैं तो सुप्रीम कोर्ट ने आंदोलनकारी किसानों से क्यों नही इन पर उनकी राय मांगी ?
ज़ाहिर है, रोक लगाने के साथ एक मनमाफिक कमेटी के गठन के लिये यह सारी कवायद की गयी है. इन सबसे सुप्रीम कोर्ट के बारे में यह शक और पुख्ता हुआ कि वह कहीं न कहीं से दबाव में है. यह स्थिति न्यायपालिका के लिये दुःखद है.
कमेटी किस एजेंडे पर बात करेगी ?
वह एजेंडा किसने तय किया है, सुप्रीम कोर्ट ने या सरकार ने ?
तीन मन्त्री तो पचास दिन से किसानों से बात कर ही रहे हैं तो फिर अविशेषज्ञों की कमेटी क्या मंत्रीगण से अधिक शक्तिशाली है ?
क्या कमेटी क्या संसद से ऊपर है ?
यह अपनी रिपोर्ट किसे देगी ?
इस कमेटी के रिपोर्ट की क्या वैधानिकता रहेगी.
अगर यह सब स्पष्ट नहीं है तो यह सारी कसरत इस किसान आंदोलन जो येन केन प्रकारेण खत्म कराने की ही है.
कानून यह कह कर लाया जा रहा है कि इससे किसानों की आय बढ़ेगी और वह खुशहाल होंगे. पर कंपनियां कॉरपोरेट की बढ़ रही हैं. खुशहाल कॉरपोरेट हो रहे हैं. कानून एग्रीकल्चर ट्रेड पर बन रहा है. नाम किसानों और कृषि सुधार का लिया जा रहा है !
सरकार कह रही है कि यह आंदोलन, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के किसानों का है. कमेटी में आंदोलनरत किसान संगठनों से जुड़े और इन राज्यों से कितने लोग हैं ?
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एक नाम सुझाया था, पी साईंनाथ का. क्या इस बार यह नाम सुप्रीम कोर्ट की प्रस्तावित कमेटी में है ? ऐसी कमेटी में पी साईनाथ और डॉ देवेंद्र शर्मा Devinder Sharma का नाम तो कम से कम होना ही चाहिए था. यह दोनों अपने अपने विषय के एक्सपर्ट हैं.
सरकार एक अध्यादेश ला कर यह कानून निरस्त करे. कृषि सुधार के लिये अलग से कानून लाये और किसान संगठन तथा आम जनता और कृषि विशेषज्ञों से राय मांगे और फिर स्टैंडिंग कमेटी में उसके परीक्षण के बाद संसद में बहस हो और तब कानून बने.
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