मधु लिमये बोलते थे तो खामोश हो जाती थी संसद

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

मधु लिमये बोलते थे तो खामोश हो जाती थी संसद

चंचल 

वर्ष 1972 में  हमे मरहूम  देवब्रत मजूमदार  ने काशी विश्वविद्यालय  में सयुस (समाजवादी युवजन सभा ) का संयोजक बना दिया .  तुर्रा यह कि तब तक हमने विश्वविद्यालय को जाना भी नही था और हम सबसे जूनियर रहे .बहैसियत हमने संयोजक एक खत मधु लिमये  को लिखा .यह वो दौर था जब मधुलिमये  सरकारी मंत्रियों के लिए बाघ घोषित हो चुके थे .प्रश्नकाल में जब मधु लिमये सदन में खड़े  हों और जिस मंत्री की तरफ निगाह उठा दें ,वह बगल झांकने लगता था .डॉ लोहिया  के असल उत्तराधिकारी घोषित हो  चुके थे .हमें  उम्मीद नही थी कि हम जैसों के खत का जवाब भी मधु जी देंगे .लेकिन ऐसा नही हुआ .वापसी का खत मधु जी मिला और यह  खत  75 तक  तक हमारी थाती रही .आपातकाल में पुलिस ने जो  कमरे की जामा तलासी ली उसमे जो कई अमूल्य जिनिस गायब हुए उसमे कई बेहतरीन खत रहे , मधुलिमये का जवाब उनमे ऊपर था .

बहरहाल मधु जी से रिश्ता बन गया .एक दिन देबू दा ने बताया कल 'डीलक्स ' से मधु जी आ रहे हैं सुबह सात बजे  स्टेशन पहुंच जाना .पहुंच गए .पहली मुलाकात जो रुबरु हो रही थी , बहुत अच्छी नही रही .मधु जी देखा  डिब्बे से बाहर निकले .देबू दा ने हमारा परिचय कराया .मधु जी कहा हाँ जानता हूँ इसकी चिट्ठी मिली  थी .अब और क्या चाहिए था , जिसके नाम पर सरकार कांपती है वह पुरालाल जैसे गांव के एक किसी तरह  बारहवीं पास गवार को जानते हैं यह कम बात है?  तब तक हम फूल चुके थे .इसी  झटके में हिंदी पट्टी का गांव जग गया और हमने अपनी रवायत का निर्वहन करते हुए अपना हाथ उनके बैग की तरफ  बढ़ा दिया कि हम लेते चलते हैं .लेकिन मामला उलट गया , बड़े जोर से मधु जी चीखे , हम अपाहिज हैं क्या ? हम अपना सामान  ले चल सकते हैं .जितना हम फूले थे उसी अनुपात में पिचक गए .इसी बात को आराम से बोल सकते थे लेकिन वह  ऊंची आवाज ?   बाद में पता चला वो कभी धीमी आवाज में बोलते ही नही थे .बाद में हम मधु जी के प्रिय और सबसे छोटे लोंगों में दर्ज हो गए और आखीर तक रहे .

    आपातकाल में हम बनारस सेंट्रल जेल में रहे और मधु जी नरसिंहगढ़ जेल में .मधु जी  से खूब खतो किताबत हुई .सब संकलन में था लेकिन सब गायब .शायद प्रो0 अरुण   ( मुजफ्फर पुर  )  के पास सुरक्षित हो जिसे हमने जार्ज के चुनाव प्रदर्शनी में लगाये थे जब जार्ज जेल में थे . बहरहाल .77 चुनाव में हमने मधु जी कहा हम भी चुनाव लड़ेंगे .मधु जी उसी पंचम सुर में बोले ,बिल्कुले नही , तुम विश्वविद्यालय का चुनाव  लड़ो .इस आंधी में मत उलझो यहां तो गधे भी जीतेंगे .वह जरूरी है .

और हम संसद तक नही पहुंच पाए .

नमन मधु जी

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :