बागा से वेगातोर के समुद्र तट पर

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बागा से वेगातोर के समुद्र तट पर

अंबरीश कुमार 

समुद्र किनारे पहाड़ पर चढ़ना बड़ा अटपटा लगता है .चाहते तो नीचे उतरते हुए सीधे समुद्र तट तक जा सकते थे पर इस बार समय नहीं था .मापुसा की आखिरी बस से लौटना था और कोई टैक्सी उपलब्ध भी नहीं थी .हम लोग वेगाटार समुद्र तट पर थे इसे आप वगातोर भी कह सकते हैं .दरअसल गोवा का यह समुद्र तट पहाड़ी के नीचे चट्टानी तट पर है .नारियल के आड़े तिरछे दरख्त समुद्र तट से लगे हुए अदभुत और सम्मोहक चित्रकला बनाते हैं जो बरसात में आपको बांध लेती है .पता नहीं क्यों लोग बरसात में समुद्र तट पर क्यों नहीं जाते .यही तो समय होता है समुद्र को भीगते हुए देखने का .खैर हम कैंडोलिम से अपने ठिकाने से कुछ देर से निकले तो न्यूटन सुपर मार्केट के आगे का टैक्सी स्टैंड खाली था .पता चला सब निकल चुकी थी .एक सज्जन मिले तो बोले सामने की सड़क पर कुछ दूर जाएं तो बस स्टैंड है वहां से वेगातोर की बस मिल जाएगी .यह चौड़ी सड़क आगे बाजार की तरफ से गुजरती है .बस स्टैंड कुछ दूर पर ही मिल गया .कोई और नहीं था इसलिए बस आई तो आसानी से जगह भी मिल गई .फेनी की गंध भरी हुई थी .लोग काम से लौट रहे थे तो फेनी भी ले ली होगी .यह बस समुद्र तट के साथ साथ बागा बीच होते हुए एक पहाड़ी पर चढ़ गई .कैंडोलिम से वेगातोर की दूरी करीब दस किलोमीटर की है अगर आप बीच रोड पकड़ कर चलें .अगर मापूसा के बाजार वाला रास्ता पकड़ेंगे तो दूरी भी बढ़ जाएगी .

बस में स्थानीय लोग ही थे हम ही सैलानी थे जो बार बार वेगातोर बस अड्डे के बारे में पूछ रहे थे ताकि आगे न चले जाएं .एक तिराहे पर कंडक्टर ने उतरने के लिए कहा और बता दिया कि सीधी सड़क आगे वेगातोर ले जाएगी .यह बाजार था पर ज्यादातर रेस्तरां ही नजर आये .गोवा में सड़क पर ही कई रेस्तरां बार भी खोले रहते हैं .पर ज्यादातर सैलानी विदेशी होते हैं जो बीयर का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं .साथ तली हुई या रोस्टेड मछली का .यूरोप के कुछ सैलानी बीफ के व्यंजन लेते है .ज्यादातर रेस्तरां जो कैंडोलिम ,बागा और वेगातोर समुद्र तट पर हैं वे शाम होते होते बाहर व्यंजनों का बोर्ड लगा देते है.और इन व्यंजनों में बीफ के बने तरह तरह के व्यंजन शामिल होते है .हम बाजार से होते हुए अब पहाड़ी पर चढ़ रहे थे .बाजार पीछे छूट गया था .अब नारियल के पेड़ों से घिरे छोटे छोटे घर और कुछ इन्ही घरों को तब्दील कर बने होटल नजर आ रहे थे .आम भी काफी था और उसमें टिकोरे भी लगे हुए थे .यह कोंकण का समूचा इलाका आम की विभिन्न प्रजातियों और बांगडा मछली के लिए मशहूर है .हम अब पहाड़ी के ऊपर थे .लाल मिटटी पर कुछ बेंच भी लगी थी जो भरी थी .पर हम उन पत्थरों पर बैठ गए जो बेतरतीब निकले हुए .थे .एक नारियल का पेड़ सामने था तो नीचे नारियल का जंगल था .समुद्र किनारे भीड़ हो चुकी थी .पर हमे तो जल्दी लौटने था क्योंकि अंतिम बस छूट जाने का भी डर था . 


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