अंबरीश कुमार
लखनऊ में अपने घर से दस मिनट की दूरी पर है यह चर्च .1866 में बना था .वास्तुशिल्प उन्ही का बनाया है जिन्होंने लखनऊ का ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन और किंग जार्ज मेडिकल कालेज डिजाइन किया .इसकी कर्ता धर्ता एक महिला थी जिनका निधन 1876 में हो गया .उनके नाम की एक पट्टी भीतर लगी हुई है .यह दौर की बात है जब उत्तर भारत में कई जगह चर्च का निर्माण हो रहा था दस साल आगे पीछे .अंग्रेजों का दौर था और चर्च के लिए स्कूल कालेज के लिए उन्होंने सबसे ज्यादा जमीन भी ली .आज भी देश में रेलवे के बाद सबसे ज्यादा जमीन चर्च के ही पास है .इसके मौजूदा कर्ताधर्ता बिशप डा अरुण सिंह के मुताबिक यह लखनऊ का सबसे पुराना चर्च है जो करीब पांच एकड़ में बना है .कैंट में 28 /29 नेहरु रोड इसका पता है .बिशप का घर ही एक बीघे में बना होगा .
जुनून फिल्म याद है उसकी शूटिंग 1979 में इस चर्च और आसपास भी हुई .आज भीतर जाना हुआ .ज्यादातर लोग गैर ईसाई थे .पर हर बेंच पर हिंदी में यीशु की पुस्तक नजर आ रही थी .ईसाई बिरादरी ने धर्म के साथ शिक्षा पर जोर दिया .गैर बराबरी के साथ.न कोई जाति का लफड़ा न गोत्र का .हिंदुओं में हाशिये के लोग यूं ही नहीं ईसाई बने .गैर बराबरी के चलते ही वे इस धर्म की तरफ आकर्षित हुए .दूसरा मुद्दा शिक्षा का था मिशनरी स्कूलों में कौन नहीं पढ़ा जरा राष्ट्रवादी दल के बड़े नेताओं और उनके पुत्र पुत्रियों का पता करे ज्यादातर इन्ही चर्च से संचालित स्कूल कालेजों में पढ़े .सरस्वती शिशु मंदिर में नहीं.वजह भाषा और अवसर .
बिशप अरुण सिंह के मुताबिक आज सत्तर फीसद से ज्यादा हिंदू लोग इसे देखने आये .वैसे तो आज के दिन अमूमन समुद्र तट पर रहना होता था और किसी न किसी चर्च को देखने जाते पर आज इसी को देखने गए
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