चिनार के दरख्त पर गिरती बर्फ

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चिनार के दरख्त पर गिरती बर्फ

अंबरीश कुमार 

बाहर बर्फ गिर रही थी.चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था .वैसे भी बर्फ जब गिरती है तो बहुत ख़ामोशी से गिरती है.बरसात की तरह आवाज नहीं आती.बरसात आप भले देर तक न देखें लेकिन बर्फ़बारी को देखना सुहाता है.पर कई बार यह बर्फ़बारी उदास भी कर जाती है .जिस हाउस बोट की खिड़की के सामने बैठा हूं उसके सामने चिनार के एक नहीं कई दरख्त है.चिनार के पत्ते जब टूट कर गिरते हैं तो सुर्ख हो जाते हैं पर बर्फ़बारी की वजह से वे सफ़ेद हो गए हैं.कांगड़ी में भी कुछ चिनार के सूखे पत्ते पड़े थे.चिनार के सुर्ख दहकते हुए पत्ते जलते भी काफी तेजी से हैं.कभी फायर प्लेस में जला कर देखें .पिछले पंद्रह घंटे से इस बर्फ को गिरते देख रहा रहा था.शुरू में अच्छा लगा फिर ठंढ और दो बार फिसल कर गिरने के बाद सावधान हो गया.खिड़की के सामने शाल ओढ़कर कहवा का ग्लास लिए बैठा हूं .  कहवा के ग्लास की गर्मी हथेलियों से होती हुई मन तक पहुंच चुकी थी.पता नहीं अपने घर में कहवा की ऐसी खुशबू क्यों नहीं आती .नीचे बैठी इलायची और बादाम के टुकड़े अलग से दिख रहे हैं .कमरा पर्याप्त गर्म था और कांगड़ी भी थी पर उसकी जरुरत नहीं लगी .खिड़की के सीसे पर बार बार धुंध जम जा रही थी.साफ़ कर सामने चिनार के दरख्त पर गिरती बर्फ को देखना अच्छा लग रहा था.जब बर्फ गिरती है तो आवाज नहीं होती.पर हवा की आवाज जरुर आती है.        

 झेलम के जिस हाउस बोट पर जगह मिली वह कोई बहुत बड़ा तो नहीं था पर कोई विकल्प भी तो अपने पास नहीं था.बीती शाम जम्मू से चलना हुआ एक खटारा बस से.कब नींद आ गई पता नहीं चला पर नींद खुली तेज ठंढी हवा से जो बगल के मुसाफिर ने खोल दी थी चाय वाले को बुलाने के लिए.बाहर का दृश्य बहुत हैरान करने वाला था.सिर्फ सफ़ेद ही सफ़ेद नजर आ रहा था.यह बर्फ थी रुई की तरह गिर रही थी मानो कोई ऊपर बैठा रुई धुन रहा हो.सड़क सफ़ेद हो चुकी थी तो देवदार के दरख्त भी बर्फ की सफेदी से ढक गए थे.मैने सुना तो बहुत था पर बर्फ गिरते देख पहली बार रहा था.हम बटोत में थे.आगे रास्ता बंद हो गया था बर्फ की वजह से इसलिए बस रुक गई थी.चाय की आवाज आ रही थी.बस से उतर कर सामने ढाबे तक गया.बर्फ पर जूते धंस रहे थे. 

अब भाषा बदल गई थी.लोग कश्मीरी में बात कर रहे थे जिसके कुछ शब्द समझ में आ जाते क्योंकि कश्मीरी परिवारों के साथ रहना था .पता चला बर्फ काटने वाली मशीन आगे चल रही हैकुछ देर और लगेगी तभी आगे बढ़ सकेंगे.एक स्वेटर साथ था जिसे निकाल लिया.और एक चादर जैसी बड़ी शाल भी ताकि ठंढ से बचा जा सके.चाय से नींद जा चुकी थी.बर्फ़बारी देख रहा था जो अब और तेज हो चुकी थी.फिर कुछ देर बाद सो  नींद भी आ गई .श्रीनगर से पहले नींद खुल गई.सामने का दृश्य तो परीलोक जैसा था .सीधी सड़क के दोनों तरफ बर्फ से लदे दरख्त और हर घर पर दो तीन फुट बर्फ.बस अड्डे पर भी चारो तरफ बर्फ ही बर्फ थी.एक आटो मिला जिसने झेलम पर लाइन से लगे हाउस बोट तक पहुंचा दिया.एक दो देखने के बाद मामला जम गया.गर्म पानी और गर्म कमरा यह बड़ी जरुरत थी .खाने में हाक चावल मिल जाएगा यह बताया गया. हाउस बोट में कई कमरे थे जिसमें झेलम की तरफ खुलने वाली खिड़की वाला कमरा पसंद आ गया .दो रजाई और दो कांगड़ी भी कमरे में थी .मुझे पर्याप्त लगी.कहवा के लिए पूछा तो फ़ौरन हां कह दिया. सामान रख कर पैदल ही दूरदर्शन केंद्र की तरफ निकला जहां अपने बचपन के मित्र राजा कौल से मिलना था जिसे आने की सूचना भी नहीं दी थी .पर वहां तक पहुंचते पहुंचते अंधेरा हो चुका था .दफ्तर पहुंच कर पता चला वह घर जा चुका है.घर कहां है पूछने पर बताया गया हब्बा कदल चले जायें एक दो गली छोड़ कर घर है.कोई सवारी नहीं थी और बर्फ बारी रुकने का नाम भी नहीं ले रही थी.कुछ हद तक भीग चुका था.पर तय किया उससे मिलकर कल वापस लौट जाऊंगा.क्योंकि न ज्यादा पैसा लेकर चला था और न ही पर्याप्त कपडे थे इस बर्फ वाली ठंढ के हिसाब से .ठंढी और बर्फ से ढकी सुनसान सड़क पर आगे बढ़ गया .छाता तो हाउस  बोट वाले ने दे दिया था.झेलम पर कई पुल है इन्ही के नाम पर मोहल्ला भी बसा हुआ है.पुल पार करते करते रात हो चुकी थी.नाम से लोग कम जानते थे इसलिए कई गली भटकना भी पड़ा.एक मोड़ पर डबल रोटी की दूकान वाले ने घर का सही पता बता ही दिया .यह लकड़ी का बना तीन मंजिला घर था जिसके दरवाजे पर कोई काल बेल तो थी नहीं .कई बार सांकल पीटने के बाद जो शख्स निकला उसने पहले तो मना कर दिया फिर राजा के बारे में विस्तार से बताने और लखनऊ का हवाला देने पर उसने कहा .भेजता हूं .थोड़ी देर बाद राज कौल सामने था.मुझे देख कर हैरान ,हतप्रभ .अरे तूम यहां पर .कब ,कैसे आए ? जारी

(फोटो साभार)                       

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