सबसे ज्यादा दुर्दशाग्रस्त बिहार के किसान हैं

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सबसे ज्यादा दुर्दशाग्रस्त बिहार के किसान हैं

पटना.कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का आज 28वां दिन है, गतिरोध खत्म करने के लिए सरकार की ओर से एक बार फिर से बातचीत का प्रस्ताव भेजा गया, जिसे किसानों ने ठुकरा दिया.आज भाकपा-माले के तरारी से विधायक व अखिल भारतीय किसान महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य सुदामा प्रसाद, घोषी से विधायक रामबली सिंह यादव, अखिल भारतीय किसान महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य व भोजपुर के युवा नेता राजू यादव, जन कवि कृष्ण कुमार निर्मोही आदि नेताओं के नेतृत्व में किसानों का एक जत्था 24 दिसम्बर को दिल्ली रवाना होगा.

किसान नेताओं का यह जत्था 28 दिसम्बर तक दिल्ली में कैम्प करेगा और फिर 29 दिसम्बर को पटना वापस लौटकर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर आयोजित राजभवन मार्च में हिस्सा लेगा.


दिल्ली में किसान नेताओं का यह जत्था तीनों कृषि कानून को रद्द करने की मांग पर दिल्ली के बोर्डरों को चारों तरफ से घेरे हुए किसान आंदोलन के समर्थन में भूख हड़ताल में शामिल होगा.इन नेताओं के वापस लौट आने पर किसानों का दूसरा जत्था बिहार से दिल्ली की ओर प्रस्थान करेगा और यह धारावाहिकता बरकरार रहेगी.


स बीच विपक्षी दलों को बिहार में किसान आंदोलन को गोलबंद करने के लिए आगे आने का आह्वान किया गया है.लोकतांत्रिक जन पहल की ओर से देशभर में चल रहे किसान आन्दोलन के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करते हुए आज यहां डाकबंगला चौराहा पर प्रदर्शन किया गया जिसमें सैकड़ो की संख्या में नागरिकों ने हिस्सा लिया जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल थीं.लोकतांत्रिक जन पहल ने तीनों फसल  कानूनों एवं प्रस्तावित बिजली संशोधन  बिल 2020 को वापस लेने की किसानों की मांग का पुरज़ोर समर्थन किया है.

लोकतांत्रिक जन पहल के नेताओं ने विपक्षी दलों को आगाह किया है कि किसानों के मुद्दों पर केवल बयानबाजी करने और कार्यक्रम की खानापूरी से काम नहीं  चलेगा. नीतीश सरकार के डपोरशंखी दावों के बावजूद देशभर में सबसे ज्यादा दुर्दशाग्रस्त बिहार के किसान हैं. उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति पंजाब-हरियाणा की तरह  स्वंयस्फूर्त आन्दोलन की नहीं है.यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी का तीनों फसल कानून और प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल के किसान विरोधी होने के बावजूद जो गोलबंदी बिहार में दिखनी चाहिए थी,वह नहीं है.किसानों के सवालों पर नरेन्द्र मोदी और नीतीश सरकार दोनों कटघरे में हैं. इसलिए विपक्षी दलों और प्रगतिशील शक्तियों का सर्वोच्च दायित्व है कि बिहार में किसानों को संगठित करने के लिए आगे आयें।


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