ये है संघ स्वदेशी का किसानी सरोकार !

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

ये है संघ स्वदेशी का किसानी सरोकार !

अरुण कुमार त्रिपाठी

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उदारीकरण विरोधी संगठन `स्वदेशी जागरण मंच’ ने कृषि सुधार के लिए लाए गए तीन कानूनों में संशोधन की जरूरत जता दी है. हालांकि उसने आंदोलन कर रहे किसानों के पक्ष में इतनी बात रखने के बाद यह भी कह दिया है कि इन कानूनों के पीछे सरकार का इरादा नेक है इसलिए कानूनों को वापस लिए जाने की जरूरत नहीं है. उदारीकरण का चालाक विरोध करने का संघ परिवार का यह रवैया बहुत पुराना है. ऐसा इसलिए कि जब देश में उदारीकरण के विरोध का आंदोलन हो तो उसके साथ भी खड़े हो जाएं और जब अपनी सरकार हो और वह उदारीकरण तेज करे तो उसका बचाव भी कर लिया जाए.

यह अजीब बात है कि जब पंजाब और हरियाणा के किसानों ने कृषि क्षेत्र में तीव्र उदारीकरण का सबसे सशक्त विरोध किया है तब केंद्र सरकार ने उन्हें खालिस्तानी और टुकड़े- टुकड़े गैंग कहना शुरू कर दिया है. इस काम में भाजपा की आईटी सेल के लोग तो हैं ही संघ से निकले हिंदी मीडिया के पत्रकार भी पूरी शिद्दत से लगे हैं. ऐसे मौके पर जब  `स्वदेशी जागरण मंच’ यह कहता है कि किसानों को एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी मिलनी चाहिए तब यह सोचना लाजिमी हो जाता है कि आखिर इस संगठन की पृष्ठभूमि क्या है और ऐसा वह क्यों कह रहा है? यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि अतीत में इस संगठन ने उदारीकरण के समर्थन और विरोध में क्या रुख अपनाया है?

हाल में अपने सम्मेलन में स्वदेशी जागरण मंच ने यह प्रस्ताव पारित किया कि कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए लाए गए मौजूदा कानून बड़ी कंपनियों को किसानों का शोषण करने का अवसर देंगे. इस कानून के कारण एपीएमसी(न्यूनतम समर्थन मूल्य) की अहमियत समाप्त हो जाएगी. मंडी के बाहर अनाज बेचने के लिए किसान मजबूर हो जाएंगे. इसलिए किसानों को एमएसपी देना जरूरी है. हालांकि इन तीन केंद्रीय कानूनों के कारण किसानों को अपना उत्पाद बेचने के ज्यादा विकल्प मिले हैं. संगठन ने माना है कि इससे गरीब किसान बुरी तरह प्रभावित होंगे क्योंकि वे बाहर बैठे ताकतवर खरीदारों से सौदेबाजी नहीं कर पाएंगे. मंच ने सरकार से मांग की है कि वह तेजी से मंडियां कायम करे क्योंकि उसने पहले वादा किया था कि देश भर में 22,000 मंडियां कायम की जाएंगी.

दूसरी तरफ जब संघ के प्रचारकों से बात करो तो वे कहते हैं कि यह तो आढ़तियों का आंदोलन है. यह किसानों का आंदोलन है ही नहीं. जब तक आढ़त के व्यवसाय में हिंदू बनिया थे तब तक स्थिति ठीक थी. वे किसानों को कर्ज देते थे लेकिन वसूलने के लिए कड़ाई नहीं करते थे लेकिन जब से आढ़त के धंधे में जाट-सिख आ गए हैं तबसे किसान अपमानित होकर आत्महत्या कर रहे हैं. इस बीच प्राइवेट बैंक भी अपने गुंडों से किसानों पर कर्ज वसूली के लिए जुल्म करते हैं. आज आढ़त के धंधे की कमान चौटाला और बादल परिवार के हाथ में है. इसलिए किसान आढ़तियों के नियंत्रण में आ गए हैं और जब आढ़तियों पर चोट हो रही है तो उन्होंने आंदोलन खड़ा करवा दिया है और आंदोलन को एक-- एक करोड़ रुपए चंदा दिया है. वे यह भी कह रहे हैं कि सरकार तो इस आंदोलन को एक हफ्ते में ही कुचल देती लेकिन खतरा यही है कि यह सिख किसान लौटकर पंजाब में हिंदुओं को सताएंगे.

यह संघ का दोहरा चरित्र भी हो सकता है और उसके भीतर चल रही खींचतान भी. पर हकीकत यह है कि अपने को सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन बताने वाला संघ अब पूरी तरह से अपने राजनीतिक संगठन भाजपा और उसके केंद्रीय नेतृत्व का पिछलग्गू हो चुका है. उसका स्वतंत्र चिंतन कागजी लगता है. यही वजह है कि वह अब कई मुद्दों पर अलग राय रखते हुए भी सरकार के स्पष्ट विरोध का साहस नहीं दिखाता. वह साहस जो उस समय दिखता था जब अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र में सरकार थी. तब कहा भी जाता था कि सत्ता और विपक्ष दोनों की भूमिका संघ परिवार निभाना चाहता है. स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना 1991 में दत्तोपंत ठेंगड़ी ने तब की थी जब दुनिया के मंच पर डंकल प्रस्ताव आया था और विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की कोशिश चल रही थी. ठेंगड़ी जी भारतीय मजदूर संघ के भी नेता थे. इसलिए जब तक जीवित थे तब तक दिखावे के लिए ही सही लेकिन उदारीकरण के विरुद्ध कुछ कार्यक्रम लिया करते थे. एक बार जब उन्होंने रामलीला मैदान में मजदूरों की रैली करते हुए आरोप लगाया कि हम विदेशी पूंजी के हाथों देश को बिकने नहीं देंगे, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना मशहूर डायलाग मारा था कि  `कौन माई का लाल इस देश को बेच सकता है?’ इसी दौरान स्वदेशी जागरण मंच की पत्रिका  `स्वदेशी’ ने अपने संपादकीय में लिखा—अपरिहार्य है राष्ट्रहित की उपेक्षा के विरुद्ध राष्ट्रीय संघर्ष. उस बीच हस्तिनापुर में हुए किसान सम्मेलन में संघ ने केद्र सरकार की आर्थिक नीतियों को बदलने की चेतावनी दे दी थी. बाद में सरकार ने न सिर्फ विश्व व्यापार संगठन (WTO) का विरोध करने वाले उस प्रस्ताव को बदलवा दिया बल्कि  `स्वदेशी’ पत्रिका का संपादकीय लिखने वाले उमेंद्र दत्त को संपादक मंडल से हटवा दिया. उमेंद्र दत्त पंजाब में  `खेती किसानी विरासत’ नाम का संगठन चलाते हैं.

संघ का स्वदेशी जागरण मंच एक तरफ तो भारतीयता का झंडा थाम कर उदारीकरण विरोध के स्थान को घेर लेना चाहता है और दूसरी तरफ किसी और खेमे से उठने वाले विरोध को अपने भीतर समाहित कर लेता है. ऐसा उसने उस `आजादी बचाओ आंदोलन’ के साथ किया जिसका गठन 1985 में तब हुआ था जब दिसंबर 1984 में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में गैस लीक करने के कारण भोपाल गैस त्रासदी हुई थी. यानी `आजादी बचाओ आंदोलन’  का जन्म ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मनमानेपन का विरोध करने के लिए हुआ था. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर और गांधीवादी विचारों से जुड़े डा बनवारी लाल शर्मा ने कुछ युवाओं के साथ उसकी स्थापना की थी और एक दौर में उसका प्रभाव पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान तक फैल गया था. उन्होंने पेप्सी कोला के विरुद्ध बनारस, इलाहाबाद और जौनपुर को घेरकर एक वृहत्त मानव श्रृंखला बनवाई जिसमें स्कूलों के बच्चों और शिक्षकों ने हिस्सा लिया और वे डंकल प्रस्ताव और विश्व व्यापार संगठन विरोधी वैश्विक चेतना के हिस्से बने.

लेकिन संघ ने बहुत खामोशी से उसके तेज तर्रार नेता राजीव दीक्षित को अपने पाले में खींच लिया. राजीव दीक्षित वर्धा में केंद्रित रह कर उदारीकरण का विरोध और स्वदेशी का अभियान चला रहे थे. वे भारतीयता के नाम पर हिंदुत्व की भाषा बोलने लगे और नेहरू, टैगोर सभी को टोडी बच्चा कहने लगे. बाद में वे ही बाबा रामदेव के आइडियोलाग बने और उनकी स्वाभिमान पार्टी के प्रचार के दौरान रहस्यमय मृत्यु के शिकार हुए. हालांकि `स्वदेशी जागरण मंच’ जिससे कभी एस गुरुमूर्ति जैसे संघ के विचारक जुड़े थे वह अपनी पत्रिका के ध्येय वाक्य में लिखता है—भारत को भारतीयता के आधार पर फिर से खड़ा करना होगा. वह पत्रिका यह भी लिखती है कि जीएम फसलों से तैयार उत्पादों के आयात पर रोक लगे. बीच बीच में यह समाचार आते रहते हैं कि रिजर्व बैंक रघुराम राजन को दूसरा कार्यकाल न दिए जाने के पीछे स्वदेशी जागरण मंच का दबाव था क्योंकि वे उदारीकरण के ज्यादा आक्रामक समर्थक थे. लेकिन स्वदेशी जागरण मंच उस तरह का प्रतिरोध नहीं प्रकट करता जिस तरह का प्रतिरोध वामपंथियों ने उदारीकरण के विरुद्ध डा मनमोहन सिंह सरकार के समक्ष किया था और बैकों के निजीकरण समेत कई सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश को रुकवा दिया था. वामपंथी तो अमेरिका से परमाणु करार के मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापस लेने तक चले गए. हालांकि बाद में उन्हें उसका राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ा.

जबकि  `स्वदेशी जागरण मंच’ जो भारतीयता के आधार पर भारत को फिर से खड़ा करने का दावा करता है वह रक्षा, मीडिया और अन्य क्षेत्रों में सौ प्रतिशत निवेश की छूट पर आंख मूंद लेता है. दरअसल स्वदेशी जागरण मंच का असली उद्देश्य उदारीकरण का विरोध कम उदारीकरण के विरोध का हिंदूकरण करना ज्यादा लगता है. हालांकि संघ के लोग बहुत तेजी से गो पालन, आर्युवेदिक दवा उत्पादन, आर्गैनिक खेती, जल संरक्षण और खेती के विविध कार्यक्रमों में लगे हैं. रचनात्मक विकल्प के नाम पर यह उनका व्यावसायिक कार्यक्रम है. बाबा रामदेव का भी सारा व्यापार स्वदेशी के नारे का उपयोग करके ही आगे बढ़ा है. उनके उत्पाद भारतीयता के नाम पर ही बढ़े और बिके हैं. इस दौरान पैदा होने वाले विमर्श में `स्वदेशी जागरण मंच’ के लोगों को विदेशी पूंजी, बड़ी पूंजी और उसके शोषण का चरित्र भी कुछ हद तक समझ में आता है. लेकिन वे उसका प्रतिरोध करने की बजाय उससे सहयोग का शास्त्र और कौशल विकसित करते हैं. यही वजह है कि वे किसानों की मांग का एक हद तक समर्थन भी कर रहे हैं और सरकार के इरादों को नेक भी बता रहे हैं. वे सरकार के लिए सेफ्टी वाल्व का काम करना चाहते हैं. इसी को कहते हैं भ्रम फैलाने वाला कृषक सरोकार जिसमें मुट्ठी भी तनी रहती है और कांख भी ढकी रहती है.



  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :