यात्रा तो जारी है

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यात्रा तो जारी है

शिवानंद तिवारी 

नौ दिसंबर 1943 को मेरा जन्म हुआ था. इस प्रकार अपने जीवन का 77 वर्ष पुरा कर लेने के बाद 78 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ. इतना लंबा जीवन कम नहीं होता है. अब तो कई मित्र दुनिया को अलविदा कहने लगे हैं. मैं भी मानसिक रूप से तैयार ही हूँ.

जीवन का बहुलांश लगभग राजनीति में ही गुज़रा. 1965 में घेरा डालो आंदोलन के सिलसिले में पहली जेल यात्रा हुई. वही वर्ष था जब गांधी मैदान में पुलिस को बेवजह बेरहमी के साथ बड़े-बड़े नेताओं को पीटते हुए देखा. कर्पूरी जी, तिवारी जी, सीपीआई के चंद्रशेखर सिंह, पटना के सांसद रामअवतार शास्त्री आदि , सबके सब बुरी तरह पीटे गए थे. पुलिस की लाठी का पहला स्वाद मुझे भी उसी घटना में मिला. उस समय बिहार में कांगरेस की सरकार थी. के बी सहाय जी मुख्यमंत्री थे. मेरा पहला राजनीतिक बयान भी उसी घटना के संदर्भ में छपा था. प्रणव (चटर्जी) दा ने उस बयान को ड्राफ़्ट किया था. लाठीचार्ज का औचित्य साबित करने के प्रयास में सरकार की ओर से नेताओं पर सफ़ेद झूठा आरोप लगाते हुए बयान अख़बारों में छपा था. उसी के प्रतिवाद में उस घटना का आँखों देखा गवाह के रूप में मेरी ओर से वह बयान था. आर्यावर्त ने पहले पन्ने पर वह बयान छाप दिया था. उसके बाद तो पुलिस मेरे पीछे ही पड़ गई थी. अंततोगत्वा अदालत में आत्मसमर्पण कर मैं जेल गया. लगभग डेढ़ महीने की वह जेल यात्रा थी. इसमें क़रीब एक सप्ताह आरा जेल में रहा. क्योंकि घेरा डालो आंदोलन से संबंधित मामला वहीं का था. उस जेल यात्रा की सुखद याद अभी भी ताज़ा है. इस प्रकार वह मेरी पहली राजनीतिक जेल यात्रा थी. उसके बाद से राजनीति के एक कार्यकर्ता रूप में मेरी वह यात्रा आज भी जारी है. 

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