मिर्च के बिना न बातचीत में स्वाद आता है न भोजन में

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मिर्च के बिना न बातचीत में स्वाद आता है न भोजन में

मिर्च हमारी जिंदगी का हिस्सा है. मिर्च का इस्तेमाल खाने में तो होता ही है, जीवन में इसे मुहावरों में भी इस्तेमाल करते हैं. कभी किसी के लिए तीखी मिर्च का इस्तेमाल करते हैं तो कभी लौंगिया मिर्च का. फिर मिर्च मसाला लगा कर बातों को कहने की भी बहुतों को आदत होती है. बहुतों को बात-बात में मिर्ची लग भी जाती है, इसलिए मिर्च के बिना न जीवन में मजा है और न ही खाने में. चाहे चाट हो या सब्जी, मिर्च के बिना तो इसका तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता. मिर्च देश में पुर्तगाली लेकर आए थे. काली मिर्च जरुर हमारी अपनी है. लेकिन आज कई तरह की मिर्च होती है, पूर्वोत्तर की भूत झोलकिया हो या राजस्थान की मथानिया मिर्च या फिर कश्मीर की रंग बिखेरने वाली कश्मीरी मिर्च. मिर्च खाने का जायका तो बढ़ाती है लेकिन सेहत के लिए क्या और कितना जरूरी है इस पर जनादेश के साप्ताहिक कार्यक्रम भोजन के बाद-भोजने की बात में चर्चा हुई. चर्चा में हिस्सा लिया पत्रकार आलोक जोशी, आहार विशेषज्ञ पूर्णिमा अरुण, शेफ अनन्या खरे, जनादेश के संपादक अंबरीश कुमार और बर्लिन की अंजना सिंह ने.

अंबरीश कुमार ने बातचीत की शुरुआत करते हुए कहा कि मिर्च को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां हैं. काली मिर्च को छोड़ दिया जाए तो भारत में मिर्च पुर्तगाली लेकर आए. अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह की मिर्चों का प्रचलन है. अमूमन लोग मिर्च-मसालों से दूर रहने की सलाह देते हैं लेकिन यह तो जड़ी-बूटी की तरह काम करते हैं और कई रोगों में बहुत फायदा पहुंचाता है. चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अंजना सिंह ने कहा कि जर्मनी में खानपान में मिर्च का प्रचलन बहुत पुराना है. करीब 1400 के आसपास शुरू हुआ था. मिर्च और खास कर काली मिर्च को यहां सोने की तरह देखा जाता है. रही बात हरी व लाल मिर्च की तो आजकल जर्मनी में हर मिर्च की खेती होती है. हाल ही में मैंने देखा कि एक खास किस्म की मिर्च 20 हजार यूरो प्रति किलो के भाव से बिक रही है, यानी दो सौ यूरो दस ग्राम के लिए, इससे ही मिर्च की उपयोगिता को समझा जा सकता है. मिर्च का इस्तेमाल जर्मनी में लोग कर रहे हैं क्योंकि कहा जाता है कि मिर्च में एंटीबायोटिक है, लेकिन अपने यहां से तुलना न ही करें तो बेहतर है. यहां बहुत थोड़ी मात्रा में मिर्च डाली जाती है. यहां स्पैनिश मिर्च जिसे कयन पेयपर कहते हैं उसका प्रयोग ज्यादा होता है. हमारे यहां जो लाल मिर्च है वह कम इस्तेमाल करते हैं लेकिन काली मिर्च का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करते हैं.


पूर्णिमा बर्मन ने बातचीत को आगे बढ़ाया और कहा कि हमारे यहां खाने में जिन छह रसों मीठा, कड़वा, कैसला, नमकीन और फिर कटु यानी मिर्च वाले जायका का जिक्र है. तो बिना मिर्च के छह रस पूरे हो ही नहीं सकते. मिर्च लाजमी है लेकिन यह है कि मात्रा कितनी लें, कितनी न ले यह अब लोगों पर है कि खाने वाले को कैसा स्वाद पसंद है. फायदा तो करती है तभी यह छह रस में आती है. अगर फायदा नहीं करती तो छह रस में इसको लिया ही नहीं जाता. काली मिर्च तो फायदा करती ही है, लाल मिर्च भी फायदा करती है. वैसे लाल मिर्च को लेकर बहुत भ्रांतियां हैं, बहुत सारे घरों में लाल मिर्च देखने को नहीं मिलती. लेकिन लाल मिर्च की अपनी खूबियां हैं. हरि मिर्च तो मौसम के हिसाब से लोग इस्तेमाल कर भी लेते हैं लेकिन लाल मिर्च से लोग बहुत परहेज करते हैं. हालांकि इससे बहुत ज्यादा परहेज नहीं करना चाहिए क्योंकि लाल मिर्च ब्लड थिनर का बहुत अच्छा काम करती है. हृदय रोगियों को अपनी नलियों को साफ रखनी होती है, खून को बहता हुआ रखना है तो वे थोड़ी सी लाल मिर्च ले लेंगे या लाल मिर्च और लहसुन की चटनी ले लेंगे तो उनको यह फायदा करेगी. फिर पेट के कीड़ों को भी साफ करती है. सामान्य लोगों को मिर्च नुकसान नहीं करेगी.


आलोक जोशी ने कहा कि दरअसल बहुत सारे लोग लाल मिर्च का इस्तेमाल खाने में बहुत ज्यादा करते हैं इसलिए वह नुकसान करती है. जो खाना मुंह में जलन और लहर पैदा कर सकता है वह शरीर के अंदर के हिस्से को नुकसान नहीं पहुंचागी ऐसा तो हो नहीं सकता. इसलिए मेरा मानना है कि कुछ एहतियात बरतनी चाहिए. अन्नया खरे ने पूर्वोत्तर की भूत झोलकिया मिर्च का जिक्र किया और कहा कि यह असम की मिर्च है और उसी क्षेत्र में उगाई जाती है. यह लंबी नहीं छोटी और थोड़ी गोल सी मिर्च होती है. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड में 2007 में भूत झोलकिया ने जगह बनाई थी. विश्व की सबसे तीखी मिर्च की वजह से गिनीज बुक में इसे जगह मिली थी. हालांकि अब इसकी जगह दूसरी मिर्च ने ले ली है, लेकिन अभी भी यह छठे स्थान पर है. भारत में तो इससे ज्यादा तीखी मिर्च अभी भी दूसरी नहीं है. थोड़ी सी मात्रा सब्जी में डालने पर ही काफी तीखी हो जाता है. असम में अमूमन चटनी और सब्जियों में इसका इस्तेमाल होता है. इसका पाउडर भी बनाया जाता है. इस पूरी चर्चा में यह बात सामने आई कि मिर्च के फायदे हैं, एहतियात जरूरी है लेकिन मिर्च और खास कर लाल मिर्च को लेकर जो भ्रांतियां है दरअसल वैसा है नहीं. मिर्च खाना चाहिए क्योंकि मिर्च खाने को स्वादिष्ट तो बनाती ही है, सेहत भी बनाती है.

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