आलोक कुमार
पटना। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और पूर्व मंत्री नागमणि की तरह ही सुशील कुमार मोदी भी रिकॉड बनाने की दहलीज पर है.आज बिहार में राज्यसभा की एक सीट को लेकर राजद की सोची समझी प्लानिंग पर लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने पानी फेर दिया है.राजनीतिक हलकों से जो खबरे आ रही है, के मुताबिक लोजपा ने राजद की तरफ से मिले इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है.जिससे अब सुशील मोदी की राह राज्यसभा जाने में आसान होती नजर आ रही है.अगर वे चुनाव जीत गए तो लालू प्रसाद यादव एवं और नागमणि की ही तरह ही राज्यसभा व लोकसभा तथा बिहार विधान परिषद व बिहार विधानसभा के सदस्य हो सकेंगे.
बताते चलें कि सबसे पहले यह रिकार्ड आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने बनाया हैं. लालू प्रसाद यादव 1977 व 1999 में लोकसभा के सदस्य रहे. वे केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे.वे 2002 में राज्यसभा के लिए भी निर्वाचित हुए.लालू 1980 से विधायक तथा 1990 में विधान पार्षद रहे. बिहार की बात करें तो पूर्व मंत्री नागमणि भी चारों सदनों के सदस्य रहे हैं. वे 1977 में विधायक, 2006 में विधान पार्षद, 1995 में राज्यसभा सांसद तथा 1999 में लोकसभा सांसद निर्वाचित हो चुके हैं.आपको बता दें कि साल 1977 में पहली बार विधायक बने नागमणि अब तक कई पार्टियों में रहकर अपनी राजनीति चमका चुके हैं
नागमणि जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय जनता पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी, जेडीयू, आरएलएसपी और कांग्रेस सहित कई पार्टियों में रह चुके हैं.पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष पद से बर्खास्त किए जाने के बाद इसी साल अप्रैल महीने में नागमणि जेडीयू में शामिल हुए थे.
मालूम हो कि सुशील कुमार मोदी बिहार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की पिछली सरकार में उपमुख्यमंत्री थे.वे बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ लंबे समय तक उपमुख्यमंत्री रहे.लेकिन नई सरकार में बीजेपी ने उनकी जिम्मेदारी बदल दी है.अब वे बिहार विधान परिषद की आचार समिति के अध्यक्ष हैं.फिलहाल वे विधान परिषद के सदस्य हैं.अभी तक सुशील कुमार मोदी तीन सदनों के सदस्य रहे हैं.चौथे राज्यसभा का चुनाव लड़ रहे हैं.2 दिसंबर को सुशील कुमार मोदी राज्यसभा के लिए नामांकन करेंगे. दोपहर 12.30 बजे मोदी पर्चा दाखिल करेंगे. इस दौरान उनके साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मौजूद रहेंगे. बिहार से एक सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए 14 दिसंबर को मतदान होगा. 3 दिसंबर को नामांकन की आखिरी तारीख है.
बताते चले कि सुशील कुमार मोदी 1990 में पहली बार पटना सेंट्रल (अब कुम्हरार) सीट से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. आगे साल 2004 के लोकसभा चुनाव में भागलपुर से निर्वाचित होकर वे सांसद बने थे.हालांकि, एक बाद ही 2005 में जब उन्हें बिहार बीजेपी विधान मंडल दल का नेता चुन लिया गया, उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद वे बिहार विधान परिषद् के लिए निर्वाचित हुए.वे दूसरी बार 2012 में विधान पार्षद निर्वाचित हुए.अब बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा भेजने का फैसला किया है.
विदित है कि बीते कुछ दिनों राजनीतिक गलियारे में काफी जोर से उठी थी कि बिहार में राज्यसभा के लिए एक सीट पर हो रहे उपचुनाव में महागठबंधन भाजपा को मात देने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई सीट पर उनकी पत्नी और लोजपा प्रमुख चिराग पासवान की मां रीना पासवान को बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान किया था.वहीं अब खबर है कि लोजपा ने राजद की तरफ से मिले इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है.
जानकारी के मुताबिक राजद और कांग्रेस रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई सीट पर उनकी पत्नी रीना पासवान को ही भेजे जाने के पक्ष में है, लेकिन भाजपा ने अपने कोटे से खाली इस सीट पर पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी को उम्मीदवार बनाकर लोजपा को बैकफुट पर ला खड़ा किया है.जिसके बाद महागठबंधन ने सहानुभूति बटोरने के लिए रीना पासवान के जरिए गेम खेलने की तैयारी में था, लेकिन राजद के प्रस्ताव पर लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने महागठबंधन में जाने से साफ इंकार कर दिया है.जिससे माना जा रहा है कि सुशील मोदी के लिए आगे का रास्ता काफी आसान हो गया है.लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि राजद चिराग के इंकार के बाद अब दूसरे प्रत्याशी खड़ा करने में जुट गई है.ऐसा करने से सुशील मोदी को कष्ट न होगा और न राज्यसभा जाने में रोढ़ा अटका पाएंगे.
तब देश के चारों सदन में जा कर सुशील मोदी इस मामले में न केवल लालू प्रसाद यादव की राह पर चलते दिखेंगे, बल्कि अपने करीबी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पीछे भी छोड़ देंगे. नीतीश कुमार लोकसभा के सदस्य व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. वे बिहार विधान परिषद व बिहार विधानसभा के सदस्य रहे हैं.फिलहाल वे बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं. हालांकि, वे कभी राज्यसभा में नहीं रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र भी चारों सदनों के सदस्य नहीं रहे.
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