रोशनी गुल कर दी खानदानी लुटेरों ने!

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रोशनी गुल कर दी खानदानी लुटेरों ने!

के विक्रम राव

आजकल कश्मीर की वादियां जमीन घोटाले से गुलजार हो गईं हैं. पच्चीस हजार करोड़ की लूट है. नाम है ‘‘रोशनी‘‘. तुलना में चंबल घाटी के डाकुओं की बटमारी भी बड़ी हल्की लगेगी. नोयडा, गुड़गांव (वाड्रा वाला) और लखनऊ विकास प्राधिकरण की बड़ी लूट भी दोयम या थर्ड क्लास की लगेगी. खेतिहरों की जमीन राजनेताओं, व्यापारियों, शासकीय अफसरों आदि ने मट्टी के मोल खरीदा और कब्जिया लिया. इसमें शीर्ष पर ग्राहक हैं डा. फार्रूख अब्दुल्ला जो पन्द्रह वर्षों तक तीन बार सूबे के मुख्यमंत्री रहे. मुफ्ती मोहम्मद सईद का भी बड़ा हिस्सा रहा. सोनिया-कांग्रेस के नेता और मुख्ममंत्री रहे आजाद जो नबी के गुलाम है, भी शामिल है. करीब तीस साल हुये (1990 के आस पास) नेशनल कांन्फ्रेंस के मुख्यमंत्री और शेरे-कश्मीर जन्नतनशीन शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के वली अहद रहे डा. फारूख ने एक अत्यंत लुभावनी विकास योजना गढ़ी थी. लक्ष्य था कि ‘‘हर घर में बिजली‘‘ मिलेगी. हिमालयी जलस्रोतों को साधकर जलविद्युत उत्पादन होगा. इससे रोशनी मिलेगी. अतः मंसूबा का नाम रखा ‘‘रोशनी‘‘. लागत का अनुमान था करीब 25 हजार करोड़ रूपये. इसे जमा करने के लिए भूमि की बिक्री की योजना बनायी गयी. इससे धनराशि आसानी से मिली. फिलहाल योजना भ्रूणावस्था में ही मर गई. हां कुछ महाबली लोग जरूर अपने खातों को मोटा करने में सफल रहे. जमीन बेचने में कंट्रोलर एण्ड आडिटर जनरल (कैग) के अनुसार केवल 76 हजार करोड़ मिले. मगर जमीन धड़ल्ले से बिकी थी.

फिर वही किस्सा पुराना. कुछ लोग हाई कोर्ट गये. पूरी योजना निरस्त हुई. न्यायालय ने सीबीआई जांच निर्देशित की. मगर बड़े मगरमच्छ बचे रहे. डा. अब्दुल्ला द्वारा प्रत्याशित आरोप रहा कि उन्हें सियासी कारणों से तंग किया जा रहा है. वे भूल गये कि उनके मरहूम वालिद मोहम्मद अब्दुल्ला अपने को अमीरात खाड़़ी राष्ट्र की भांति वादी का शेख बनाने की मंशा पालते थे. रफी अहमद किदवई, केन्द्रीय मंत्री, ने ध्वस्त कर दिया. जेल में डाल दिया.

भला हो पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट नेता सत्यपाल मलिक (अधुना मेघालय राज्यपाल, तब जम्मू-कश्मीर के गवर्नर) ने रोशनी एक्ट को ही रद्द कर दिया (नवम्बर 2018). इस एक्ट के तहत जमीनदार बने महापुरूषों की सूची में सोनिया कांग्रेस के नेता जनाब माजिद वानी, पूर्व वित मंत्री हसीब ड्राबू (पत्रकार बरखा दत्त के पूर्व पति), नेशनल कांफ्रेंस के पुरोधा सज्जाद किचलू, जम्मू एण्ड कश्मीर बैंक के अध्यक्ष एमवाई खान आदि. मगर मुख्यमंत्री (सभी नेशनल कान्फ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस) लाभार्थी रहे. गुलाम नबी आजाद ने तो गजब ढा दिया. उन्होंने जमीन बिक्री के सरकारी नियम बनाये जिन्हें बिना राज्य विधानमण्डल की स्वीकृति के लागू कर डाले. केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर शासन में गत माह (22 अक्टूबर 2020) को उन सभी लाभार्थियों की सूची बनवाई जिनमें मंत्री, विधायक, शासनाधिकारी, पुलिसवाले, राज्यकर्मचारी, व्यापारी और अन्य प्रभावशाली सतपुरूष शामिल रहे. भारत सरकार का एक सचिव भी पुरस्कृतों में है. 

यदि भाजपायी गृहमंत्री अमित अनिलचन्द शाह की बात मान लें तो गत सात दशकों में कश्मीर के भारतीय संघ में विलय के बाद से तीन परिवारों ने घाटी को जमकर लूटा है . जवाहलाल नेहरू के वंशज, मुफ्ती और अब्दुल्ला के लोग. इतिहास में तो कई इस्लामी, अरब और पठान लुटेरे आये थे. वे कम ही माल ले गये. हैदराबाद निजाम की संपत्ति तो उनकी स्वार्जित थी. कश्मीर में तो मामूली राजनेता रातोरात अरबपति बन गये.

          मुझे याद है जब भारतीय प्रेस कांउसिल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति राजेन्द्र सिंह सरकारिया ने ‘‘कश्मीर में आंतक‘‘ की जांच करने मुझे और विख्यात संपादक बीजी वर्गीज को श्रीनगर (1990) भेजा था तो राज्यपाल जगमोहन थे. उनके बारे में तब आम आदमी का कहना था कि पहली बार घाटी उन्हें अनाज, बिजली और पानी नसीब हो रहा है. सड़कें भी बेहतर हो गई हैं. पर मेरा प्रश्न उनसे था कि निर्वाचित विधानसभा हमेशा राज्यपाल शासन से तो अधिक लोकतांत्रिक होती है. फिर इससे नफरत क्यों? कश्मीर के कई बौद्धिक मुझसे असहमत थे. वे बोलें, ‘‘लूटतंत्र है, यह लोकतंत्र नहीं.‘‘ मैं खामोश रह गया.  इस आमजन की भावना को पनपाया अब्दुल्ला, मुफ्ती, नबी आजाद और उनके उत्तराधिकारियों ने. रोशनी योजना के नाम पर अंधेरा इसी व्यवस्था की चरम अधोगति है. दोषी को दण्ड कब मिलेगा?


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