भवाली में इंदिरा गांधी

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भवाली में इंदिरा गांधी

शैलेंद्र प्रताप सिंह 

 इंदिरा गांधी , जब अपनी माँ कमला नेहरू को लेकर अक्टूबर 1934 में भवाली आयी थी ,  वह उस समय शांतिनिकेतन में पढ़ रही थी.उसी वर्ष जुलाई में इंदिरा ने शांतिनिकेतन में प्रवेश लिया था , जहाँ की दिन चर्या से उन्होने जल्दी ही तालमेल बिठा लिया था .सहपाठियों के साथ ज़मीन पर सोना , बाल्टी से स्नान करना , बाहरी शौचालय जाना , बिना बिजली के रहना , सुबह 4.30 घंटी बजते ही उठना, बिस्तर ठीक करना , स्नान करना , कमरे की सफ़ाई करना , अपना ब्रेकफास्ट बनाना , उसे खाना और 630 बजे से ध्यान और मंत्र जाप के लिये इकत्रित होना , आधा घंटा बाद पेड़ों के बीच होने वाली कक्षाओं में पहुँचना आदि आदि .

     उन्हे शांतिनिकेतन में अच्छा लगने लगा था , यह बात उनके द्वारा पापा को लिखे गये पत्रों से स्पष्ट होती है  .शांति निकेतन में ललित कला , संगीत  तथा भारत विद्या  पर दिया जा रहा विशेष जोर इंदिरा को लुभा रहा था .वहाँ विद्यार्थियों को अपने हाथ से काम करने , अपनी कला और प्रतिभा दिखाने का खूब अवसर मिलते थे .सभी छात्रों और गुरुजनों को नंगे पैर चलना होता था .सभी प्रकृति के साथ एकाकार महसूस करते थे .

      इंदिरा को शांतिनिकेतन आये हुये क़रीब एक माह ही हुआ था कि उन्हे टेलीग्राम मिला कि फेफडे के गम्भीर शोथ तेज बुख़ार और साँस लेने की समस्या के कारण कमला जी की तवियत बहुत ख़राब हो गयी है .पहली ट्रेन से ही इंदिरा इलाहाबाद के लिये चल कर 9 अगस्त , 1934 को घर आनंद भवन पहुंची .दो दिन बाद नेहरू जी को भी जेल से घर भेज दिया गया था .कमला जी की तवियत में धीरे धीरे सुधार हुआ तो नेहरू पुन: देहरादून जेल भेज दिये गये , कुछ दिनों बाद इंदिरा भी भारी मन से मां को छोड़ वापस शांतिनिकेतन आयी .माँ को लेकर वह काफी चिंतित रहने लगी .एक दिन स्वप्न में देखा कि वह गहरे समुद्र में डूब रही है और तैर नहीं पा रही है .इंदिरा को स्पष्ट हो गया कि  आनंद भवन में माँ की ठीक से  देखभाल नही हो रही है .एक पत्र में इंदिरा ने पापा को लिखा कि उनकी अनुपस्थिति में माँ के पास कोई जाता नहीं , पास बैठता नही , वह बहुत एकाकी हो जाती है और यह भी कि जैसे ही मम्मी की तवियत सुधरती है उन्हे इलाहाबाद से कहीं दूर रखा जाय .इसी पत्र में इंदिरा ने पापा को यह  भी लिखा कि आप भी बहुत कमजोर लग रहे थे और अपनी सेहत का ध्यान न रख पाने वाले को मैं पाप के स्तर तक का दोषी समझती  हूँ . इस पत्र से नेहरू बहुत दुखी हुये थे ।उन्होने न चाहते हुये , एक पत्र विजय लक्ष्मी ( नान ) को लिखा था ताकि कमला जी की देखभाल की स्थिति में कुछ सुधार हो सके .

       थोड़े दिन बाद ही अक्टूबर में कमला जी की पुन: तवियत ख़राब हुई .इंदिरा को पुन: इलाहाबाद बुलाया गया .इस बार उन्हे यह स्पष्ट हुआ कि उन्हे ही माँ को लेकर भवाली हिल स्टेशन जाना है , जहां किंग एडवर्ड सप्तम सेनेटोरियम में इलाज भी हो सकेगा .बाबा मोती लाल पहले ही अलविदा कर चुके थे , पापा नेहरू जेल में थे , कोई भाई था नही , घर में महिलायें ही थी और इस कारण यह ज़िम्मेदारी इंदिरा को लेनी पड़ी .इंदिरा ने मां के सामान /कपड़े आदि पैक किये और इलाहाबाद से माँ को लेकर ट्रेन से भवाली के लिये रवाना हुई , साथ मे , कमला जी के काफ़ी नज़दीकी हो गये फ़िरोज़ गांधी , डा मदन अटल ( कमला जी के चचेरे भाई ) , और नेहरू जी के मुख्य सेवक हीरालाल भी थे  .उस समय इंदिरा की उम्र क़रीब 17 वर्ष और फ़िरोज़ क़रीब 22 वर्ष के थे .लम्बी यात्रा कर पहले हलद्वानी और फिर कार से भवाली सेनेटोरियम आई जहां  पहुंचते ही उन्हें एक वार्ड दिया गया .एक हफ़्ते बाद नेहरू जी को भी देहरादून से अल्मोडा जेल स्थानांतरित कर दिया गया ताकि वह कमला जी को सरकार द्वारा निर्धारित समय सीमा के बाद ( प्रत्येक  तीन हफ़्ते बाद ) एक दिन के लिये भवाली आकर मिल सके .

       भवाली सेनेटोरियम में कमला जी को दिये वार्ड का बाद में नामकरण ही कमला नेहरू काटेज के रूप में हुआ जो आज भी उसी नाम से जाना जाता और सुरक्षित है .    ( वर्ष 2019 में  विभूति नरायण राय ( आईपीएस / वरिष्ठ साहित्यकार ) के साथ भवाली सेनेटोरियम/ कमला नेहरू काटेज का भ्रमण )

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