कांग्रेस की ताकत क्यों कम होती जा रही

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कांग्रेस की ताकत क्यों कम होती जा रही

आलोक कुमार

पटना.बिहार विधानसभा चुनाव में मामूली अंतर से महागठबंधन की हार के बाद आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है. ना केवल महागठबंधन के घटक दल बल्कि खुद कांग्रेसी  अपनी पार्टी के प्रदर्शन पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं.महागठबंधन में आपसी आरोप प्रत्यारोप में कहा जा रहा है कि 70 सीटें लेने के बावजूद कांग्रेस महज 19 सीटें जीत पाई, जिसके चलते राज्य में महागठबंधन सरकार बनाने से चूक गया है.

बता दें कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एक अवकाश प्राप्त अंग्रेज अधिकारी एलन ऑक्टोवियन ह्यूम ने 28 दिसंबर 1875 को की थी.एओ ह्यूम ने दरअसल 1974 में ही एक संगठन की स्थापना की थी, जिसका नाम भारतीय राष्ट्रीय संघ रखा गया था। इसी का नाम अगले साल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पड़ा.


भारतीय राष्ट्रीय संघ का पहला अधिवेशन 28 दिसंबर से 31 दिसम्बर 1875 तक बंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में आयोजित किया गया था.इसी सम्मेलन में दादाभाई नौरोजी ने संगठन का नाम बदलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस रखने का सुझाव दिया जो स्वीकार कर लिया गया.भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अध्यक्ष व्योमेश चंद्र बनर्जी को बनाया गया.बनर्जी कोलकाता उच्च न्यायालय के प्रमुख वक़ील थे.

अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी है 145 साल पुरानी. कांग्रेस दिन प्रति दिन मजबूत होने के बदले कमजोर होती जा रही है.बिहार विधानसभा में कांग्रेस की बुरी तरह से हार के बाद कलह रोज सामने आ रहा है. एक दूसरे के खिलाफ नेता रोज बयान दे रहे हैं. कई नेताओं ने कांग्रेस नेताओं पर टिकट बेचने तक का आरोप लगाया है. कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन सिर्फ 19 सीट पर ही जीत पायी है. कल तारिक अनवर ने भी बिहार कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठाया था और कहा था कि यहां पर नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत है. 

इनकी बातों में दम है.पूर्व शिक्षा मंत्री व कांग्रेस नेता नागेंद्र झा के घर एक अगस्त, 1956 को डॉ मदन मोहन झा का जन्म हुआ था.जो अभी कांग्रेस के अध्यक्ष हैं.एनएसयूआई से राजनीति की शुरुआत करनेवाले मदन मोहन झा युवा कांग्रेस में महासचिव बने. बाद में वह बिहार कांग्रेस में महासचिव नियुक्त किये गये. 1985 से 1995 तक विधानसभा के सदस्य रहे. मई 2014 से बिहार विधान परिषद में कांग्रेस कोटे से सदस्य थे. दरभंगा जिले के निवासी झा के पिता नागेंद्र झा बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री रहे. स्वयं मदन मोहन झा नीतीश सरकार में महागठबंधन के दौर में राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री रहे हैं.बावजूद इसके बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की मतगणना पूरी हो चुकी है.दरभंगा की दस में से नौ सीटों पर एनडीए का कब्‍जा रहा.केवल एक सीट महागठबंधन के खाते में गई. दरभंगा ग्रामीण सीट पर महागठबंधन के राजद प्रत्‍याशी ललित यादव को जीत मिली. कुशेश्‍वरस्‍थान में जदयू के शशिभूषण हजारी, बेनीपुर में जदयू के विनय कुमार चौधरी और गौराबौराम में वीआइपी की स्‍वर्णा सिंह ने सफलता हासिल की.


कांग्रेस के 19 सीटों पर सिमट जाने के बाद पार्टी महासचिव तारिक अनवर ने कहा कि हमें इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए कि कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के कारण ही महागठबंधन की सरकार नहीं बन पाई और ऐसे में हमारी पार्टी को आत्मचिंतन करना चाहिए कि चूक कहां हुई. तारिक अनवर ने ट्वीट किया, ‘हमें सच को स्वीकार करना चाहिए. कांग्रेस के कमज़ोर प्रदर्शन के कारण महागठबंधन की सरकार से बिहार महरूम रह गया. कांग्रेस को इस विषय पर आत्म चिंतन ज़रूर करना चाहिए कि उस से कहां चूक हुई ?’

उन्होंने कहा कि एआईएमआईएम का बिहार में प्रवेश शुभ संकेत नहीं है. कांग्रेस नेता ने कहा कि बिहार चुनाव में भले ही बीजेपी गठबंधन येन केन प्रकारेण चुनाव जीत गया,परन्तु सही में देखा जाए तो बिहार चुनाव हार गया. उन्होंने कहा कि इस बार बिहार परिवर्तन चाहता था और पांच वर्षों की निकम्मी सरकार से छुटकारा और बदहाली से निजात चाहता था.

कांग्रेस के नेताओं की तरह ही भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस के चलते बिहार में महागठबंधन की सरकार नहीं बन पाई है. दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा है कि महागठबंधन में कांग्रेस को ज्यादा सीटें दी गईं अगर हमारे ज्यादा प्रत्याशियों को टिकट दिए जाते तो परिणाम हमारे पक्ष में होता.पत्रकारों से बातचीत में दीपांकर ने कहा बिहार की जनता ने चुनाव में महागठबंधन को व्यापक समर्थन दिया है.हम एनडीए की सरकार के खिलाफ मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाएंगे. जनता के हितों और अधिकारों को लेकर जनांदोलन को तेज करेंगे.


शुक्रवार को बिहार में कांग्रेस विधायक दल की बैठक में नेता चुनने के सवाल पर जमकर हंगामा हुआ और दो नेताओं के समर्थकों के बीच हाथापाई तक हो गई .इस वक्त की बड़ी खबर कांग्रेस मुख्यालय से आ रही है. विधायक दल की बैठक से पहले ही कांग्रेस के कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए हैं. दोनों तरफ से जमकर मारपीट हुई हैं. 

बताया जा रहा है कि बैठक से पहले कांग्रेस नेता विजय शंकर दुबे को विधायक सिद्धार्थ सिंह के समर्थकों ने चोर बोल दिया. जिसके बाद हंगामा और हाथापाई शुरू हो गई. सिद्धार्थ सिंह और विजय शंकर दुबे के समर्थक आपस मारपीट करने लगे. बताया जा रहा है कि विजय शंकर दुबे और सिद्धार्थ के समर्थक विधायक दल के नेता के लिए नाम आगे कर रहे थे. इसको लेकर ही दोनों गुटों के बीच मारपीट और गाली गलौज की नौबत आ गई.

इसके अलावा बिहार कांग्रेस के पटना दफ्तर सदाकत आश्रम में भी गुरुवार को चर्चाएं होती रही कि क्या कांग्रेस का मौजूदा राज्य नेतृत्व जनता का मूड समझने में असफल रहा है. कई कांग्रेसी सवाल उठा रहे हैं कि बिहार में पार्टी का नेतृत्व संभाल रहा मौजूदा नेतृत्व गठबंधन में सीट तय करने में असफल रहा.इसी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने कांग्रेस के नवनिर्वाचित विधायकों को एनडीए में आने का ऑफर दे दिया है.मांझी के इस ऑफर के बाद बिहार में चर्चाओं का बाजार गरम है.


इन चर्चाओं की वजह देशभर में कांग्रेस के विधायकों की टूट की घटनाएं हैं.मध्य प्रदेश, गुजरात, गोवा जैसे राज्यों में हाल के वर्षों में कांग्रेस के विजयी विधायक बीजेपी में चले गए जिसके चलते पार्टी या तो सरकार बनाने से चूक गई या फिर बनी बनाई सरकारें गिर गईं.इसके अलावा बिहार में ही 2017 में जब नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होकर एनडीए में आए तो कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी समेत कई कांग्रेस भी पाला बदलकर जेडीयू में आ गए थे. इस वक्त अशोक चौधरी जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष और नीतीश कुमार के खास हैं.हालांकि कांग्रेस के नवनिर्वाचित विधायक महागठबंधन का हिस्सा रहते हुए विपक्ष में रहेंगे या एनडीए में शामिल होंगे यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन इतना तय है कि हालिया घटनाओं और मांझी की ओर से दिए गए ऑफर के बाद राजनीतिक गलियारे में गहमागहमी बनी रहेगी.

बिहार विधानसभा चुनाव में बेहद रोमांचक मुकाबले में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 243 सीटों में से 125 सीटों पर कब्जा कर बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल कर लिया जबकि महागठबंधन खाते में 110 सीटें आई. बीजेपी की 74 और जेडीयू की 43 सीटों के अलावा सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को चार और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को चार सीटें मिलीं.वहीं, विपक्षी महागठबंधन में राजद को 75, कांग्रेस को 19, भाकपा (माले) को 12 और भाकपा एवं माकपा को दो-दो सीटों पर जीत मिली.बिहार में कांग्रेस ने 70 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा था और उसे सिर्फ 19 सीटों पर जीत हासिल हुई। वहीं असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की.

2015 के विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने बिहार की 243 सीटों पर से 80 सीटों पर जीत दर्ज कर पहले नंबर की पार्टी रही. चुनावों में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) को 71 सीटें मिलीं और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 53 सीटें हासिल करके तीसरे नंबर पर रही.नीतीश और लालू की जोड़ी ने चुनावों में बेहतरीन सफलता हासिल करते हुए बीजेपी को करारी हार दी. आरजेडी और जेडीयू ने मिलकर सरकार बनाई और मुख्यमंत्री के रूप में एक बार फिर नीतीश कुमार को चुना गया.2020 के बिहार विधानसभा चुनावों के लिए राज्य में कुल तीन चरणों में वोटिंग हुई.पहले चरण को वोटिंग 28 अक्टूबर को, 3 नवंबर को दूसरे और 7 नवंबर को तीसरे और अंतिम चरण की वोटिंग हुई. 10 नवंबर मंगलवार को वोटों की गिनती हुई.

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