ऐसी सहुलियत औरों को क्यों नहीं?

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ऐसी सहुलियत औरों को क्यों नहीं?

आलोक कुमार 

आदिवासियों के अधिकार के लिए कार्य करने वाले फादर स्टेन स्वामी  ने पर्किंसन रोग का हवाला देते हुए जेल में चाय आदि पीने के लिए स्ट्रा-सिपर कप (बंद कप और पाइप) की मांग की है. हालांकि एनआईए  ने इस पर जवाब देने के लिए 20 दिन का वक्त मांगा है.फादर स्टेन ने मुंबई स्थित विशेष कोर्ट के समक्ष यह मांग रखी थी. उन्हें भीमा कोरेगांव हिंसा  के मामले में पिछले माह आठ अक्टूबर को रांची से गिरफ्तार किया गया था. कोर्ट जेल परिसर के बाहर से यह सामग्री लाने की इजाजत दे सकती है. उसने इस मामले की सुनवाई 26 नवंबर तक के लिए टाल दी है.

स्टेन स्वामी पर्किंसन रोग से ग्रसित हैं, इससे उनका नर्वस सिस्टम कमजोर होता जा रहा है और अचानक ही उनके हाथ-पैर में कंपन होता है या मांसपेशियों में अकड़न होती है. इस कारण उन्हें रोजमर्रा के कामकाज यहां तक कि कुछ खाने-पीने में भी दिक्कत होती है. यहां तक कि फादर स्टेन स्वामी को कुछ चबाने या निगलने में भी परेशानी महसूस हो रही है. करीब एक माह तक तलोजा सेंट्रल जेल में बंद स्टेन स्वामी ने कोर्ट को दिए अपने आवेदन में कहा कि वह पर्किंसन के कारण अपने हाथ में एक गिलास भी नहीं पकड़ सकते. फिलहाल वह जेल के अस्पताल में इलाज करा रहे हैं.


बता दें कि महाराष्ट्र के बहुचर्चित भीमा कोरेगांव में हिंसा की साजिश रचने की संलिप्तता के आरोप में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी को उनके नामकुम बगईचा स्थित आवास से हिरासत में ले लिया था.इस वर्ष जनवरी में एनआईए ने यह केस टेकओवर किया है. पहली बार फादर स्टेन स्वामी से अगस्त में पूछताछ भी की थी.खुद को मानवाधिकार कार्यकर्ता बताने वाले फादर स्टेन स्वामी पर आरोप है कि उनके और उनके साथियों के भड़काऊ भाषण के बाद ही एक जनवरी 2018 में भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़की थी.

इस मामले में एनआईए दो माह पहले छह अगस्त को भी फादर स्टेन स्वामी के घर पहुंची थी और करीब ढाई घंटे तक उनके आवास में छानबीन करते हुए पूछताछ की थी. इस मामले में एनआईए से पहले महाराष्ट्र पुलिस अनुसंधान कर रही थी. महाराष्ट्र पुलिस भी फादर स्टेन स्वामी से पूर्व में दो बार पूछताछ कर चुकी है.पहली बार 28 अगस्त 2018 को महाराष्ट्र पुलिस उनके आवास पर पहुंची थी.

पुणे के भीमा कोरेगांव में एक जनवरी 2018 को हिंसा भड़की थी.इस रैली के बाद संसावाड़ी में हिंसा भड़क उठी थी. कुछ क्षेत्रों में पत्थरबाजी की घटना हुई.उपद्रव के दौरान एक नौजवान की जान भी गई थी.हिंसा की घटना के एक दिन पहले वहां यलगार परिषद के बैनर तले एक रैली भी हुई थी. आरोप है कि इसी रैली में हिंसा भड़काने की भूमिका तैयार की गई थी.इस संगठन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने का आरोप भी लगा था.पुलिस ने कई साक्ष्य भी बरामद किए थे. इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार भी किया था.


जेसुइट पुरोहित फादर स्टेन स्वामी कहते हैं कि छोड़कर पुणे के भीमा कोरेगांव नहीं गये है. न ही नक्सलवादियों से ही सांठ-गांठ है.मैं तो सरकारी योजनाओं को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने में योगदान कर रहे थे.मगर एनआईए ने मेरे कम्प्यूटर में गैरवाजिब दस्तावेज अपलॉड कर अर्बन नक्सलाइट घोषित कर दिया.वह भी हिरासत में लेने की जरूरत नहीं थी.रांची में ही बेहतर ढंग से पूछताछ की जा सकती थी.84 साल में हिरासत में लेकर तलोजा जेल में डाल दिया गया.जेल जाने के पूर्व थैला रख लिया गया.उसमें पानी और चाय पीने के लिए स्ट्रा-सिपर था.

साथ में लाने देने में पानी और चाय पीने में दिक्कत हो रही है.इसी की मांग फादर के द्वारा की गयी है.

दूसरी ओर साल 2018 के एक इंटीरियर डिजाइनर और उनकी मां के सुसाइड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई करते हुए रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्णब गोस्वामी को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया. आठ दिनों में ही जमानत पर रिहा हो गये.उनके साथ ही इस मामले के सह-आरोपियों को भी रिहा किया गया.कोर्ट ने पचास हजार रूपये के बॉन्ड पर अर्णब को अंतरिम जमानत दी है.अर्णब की रिहाई के एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने तत्काल उनकी याचिका पर सुनवाई करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा था.दवे ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि अर्णब के मामले में इतनी मेहरबानी क्यों हो रही है? दवे ने पत्र में आपत्ति जताते हुए कहा था कि अर्णब की याचिका दो दायर होते ही लिस्ट हो गई लेकिन ऐसे ही कुछ मामलों में इस तरह की त्वरित कार्रवाई नहीं हुई थी.ऐसी सहुलियत अर्बन नक्सलियों को क्यों नहीं?


फोटो साभार

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