हरे से ज्यादा फायदेमंद होता है लाल साग

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हरे से ज्यादा फायदेमंद होता है लाल साग

फजल इमाम मल्लिक
नई दिल्ली
.साग-भाजी स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है और स्वाद के लिए. हर इलाके में साग-भाजी के नाम भी बदल जाते हैं और उसका स्वाद भी. लेकिन साग-भाजी की अपनी खूबी है. साग और भात कहीं चाव से खाए जाते हैं तो कहीं साग और गोश्त के साथ जायकेदार डिश बनाया जाता है. वैसे साग-भाजी शाकाहारी ही होती हैं लेकिन मांसाहारी लोग इसे अपने लिए भी उपयोगी बना लेते हैं. जनादेश के साप्ताहिक कार्यक्रम में आज बात साग भाजी की हुई.
काठमांडू में रायो का साग हो या लखनऊ में करमुआ का साग या फिर पंजाब का सरसों का साग या छतीसगढ़ की लाल भाजी. इन पर हुई बातचीत में हिस्सा लिया पूर्णिमा अरुण, जानेमाने चित्रकार और लेखक चंचल, टीवी पत्रकार आलोक जोशी, प्रियंका संभव, जनादेश के संपादक अंबरीश कुमार और शेफ अनन्या खरे ने.
अंबरीश कुमार ने बातचीत की शुरुआत करते हुए कहा कि शहरों में तो चावल और साग खाने का रिवाज ही खत्म हो गया है. हमलोग बचपन में साग और चावल काफी खाते थे, गांव में भी और शहर में भी. मैं कई राज्यों में रहा हूं, खास कर छत्तीसगढ़ में तो, भाजियां कई प्रकार की हुआ करती थीं. लाल भाजी वहां मशहूर भी है. चौलाई की एक प्रजाति है. लेकिन मेरा सबसे अलग किस्म का अनुभव काठमांडो का रहा. वहां पांच सितारा होटल में बहुत सारा नानवेज था, मैंने वेज ढूंढा तो साग मिल गया. मैंने इस बाबत पूछा तो उन्होंने बताया कि यह रायो का साग है. वहां मैंने चावल और साग खाया तो मुझे ध्यान आया कि यह सरसों से मिलता-जुलता है. तो पता चला कि राई से बदल कर यह रायो का साग बना. रायो का साग नेपाल ही नहीं पहाड़ में बहुत ज्यादा मशहूर हैं. उसके बाद रामगढ़ में मैंने हाक मंगाया था. यह कश्मीर में पाया जाता है. कश्मीर में तो बिना इसके खाना ही नहीं बनता है.

पूर्णिमा अरुण ने कहा कि सागों के रंग बदलने से भी उसकी खूबी और खासियत है. हरे साग में तो क्लोरोफिल बहुत ज्यादा है लेकिन लाल साग ज्यादा फायदेमंद होता है. उसमें आयोडीन काफी मात्रा में होता है. हरे साग से थोड़ा सा बचने की मैं सलाह दूंगी. रंग वाले साग अच्छे होते हैं. चंचल ने कहा कि गांव में यह प्रथा है कि साग-सब्जी वगैरह की कोई कीमत नहीं होती थी. यह विनम्य का ढांचा था. सब्जियों के बदले अन्न ले जाते थे. लेकिन अब शहर का जो हिस्सा गांव पहुंचा है तो सब्जियां अब खरीदी जाने लगी है. लेकिन कुछेक सब्जियां अब भी खरीदी नहीं जाती हैं, उनमें साग भी हैं. जैसे बथुए का साग है, तो ऐसा है नहीं. दिल्ली का एक लड़के ने देखा था कि बथुए का साग बिकता है. लेकिन गांव में इसको कोई पूछता नहीं है. खेत में अपने आप यह उग आता है. उसने सोचा कि इसे बेच डाला जाए तो एक ठेले में पर उसने लगाया तो गांव के एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या है तो उसने बताया साग है, उसने कीमत बताई तो वे नाराज हो गए और कहा कि अब बथुआ भी बिकने लगा है. हम लोगों ने बीच-बचाव कर बचाया. गांव में आज भी कुछसाग-सब्जियां हैं जो बिना कीमत के मिलती हैं. चने के साग का जिक्र चंचल ने किया तो अंबरीश कुमार ने बताया कि चना का साग काफी स्वादिष्ट होता है और बथुए का साग पहाड़ में भी कोई बोता नहीं है, अपने आप निकल आता है. इसी तरह पहाड़ में बिच्छू घास होता है उसका भी साग बनता है. अन्नया खरे ने बताया कि पालक पनीर, पालक मटर और सरसों के साग तो होटल में बनते ही हैं, इसके साथ-साथ मेथी-मटर मलाई काफी लोकप्रिय डिश है. वैसे होटलों में साग का बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता. यही कुछ साग हैं जो होटलों में इस्तेमाल किया जाता है. होटलों में सब्जियों का इस्तेमाल ज्यादा होता है. लेकिन कई जगह खानों के खास रेस्तरां (स्पेशलिटी रेस्तरां) या होटलों में साग जरूर मिल जाएगा. चंचल ने गांव के कुछ रोचक किस्से भी सुनाए साग-भाजी के संदर्भ में.
https://youtu.be/sTwboBSfSV8


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