पर सीबीआई इन्हें नहीं देख पाती !

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पर सीबीआई इन्हें नहीं देख पाती !

संजय कुमार सिंह 

नई दिल्ली .पी चिदंबरम की गिरफ्तारी को ताकतवर लोगों के खिलाफ भाजपा सरकार की कार्रवाई के रूप में पेश किया गया है और बहुत सारे लोग इसे ऐसा ही मान भी रहे हैं. दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद खबरों की शैली बताती है कि चिदंबरम को गिरफ्तार किया जाना बहुत जायज है और इसके अलावा कि वे पूर्व वित्त व गृहमंत्री हैं, उनकी गिरफ्तारी में कुछ भी खास नहीं है. बेशक, भष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किए जाने वाले पी चिदंबरम पहले ऐसे बड़े नेता हैं पर कई ऐसे मामले हैं जिनकी जांच (भिन्न कारणों से) नहीं हुई और होती तो कुछ मौजूदा शक्तिशाली लोगों तक आंच पहुंच सकती थी. इसमें सबसे ताजा मामला सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक राकेश अस्थाना का ही है और यह सर्वविदित है कि राकेश अस्थाना को बचाने के लिए क्या किया गया. मुझे नहीं लगता कि सीबीआई कार्यालय में आधी रात की कार्रवाई सिर्फ राकेश अस्थाना को बचाने के लिए की गई होगी पर सच यही है कि जांच तो उस मामले की भी नहीं हुई. हाईकोर्ट का आदेश तब भी बहुत साफ था. 

मुझे भाजपा सरकार को पी चिदंबरम या पूर्व गृहमंत्री या सरकार के मौजूदा आलोचकों में सबसे प्रमुख को गिरफ्तार करने का श्रेय देने में कोई हिचक नहीं है पर पूर्व गृहमंत्री और मौजूदा गृहमंत्री में अंतर होता है. सरकारी की कार्रवाई बड़ी तब होती जब वह मौजूदा गृहमंत्री के मामले में भी इतनी ही निष्पक्ष नजर आती. पी चिदंबरम के खिलाफ जांच तो पांच साल से भी ज्यादा समय से चल रही है और जैसा कि गिरफ्तारी से पहले उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा, आईएनएक्स मामले में मेरे खिलाफ आरोप नहीं हैं. मैं कानून से भागा नहीं हूं. मैं न्याय की कोशिश कर रहा था. मैं अपना सिर ऊंचा करके रहूंगा. जीवन और आजादी में बेहिचक आजादी चुनूंगा और आजादी के लिए लड़ना पड़ता है. दूसरी ओर, सीबीआई को उनके घर की दीवार फांदनी पड़ती है, कारण चाहे जो हो, मुझे तो जल्दबाजी दिखाई देती है. जो भी हो, सरकार का विशेषाधिकार है कि वह किस मामले में कार्रवाई करेगी और किसमें नहीं और इसी तरह यह भी कि किस मामले को पहले देखेगी और किसे बाद में. अगर चिदंबरम ने भागकर या जमानत की कोशिश करके गलती की तो सीबीआई ने दीवार फांदकर कोई भारत रत्न पाने का काम नहीं किया है. इंतजार किया जा सकता था. 

वैसे मामला इतना ही नहीं है. द प्रिंट ने शिवम विज की एक खबर छापी है जिसका शीर्षक है, सात भ्रष्टाचारी राजनेता जिनपर सीबीआई और ईडी छापा नहीं मारेगी. काम करने वाली यह बहादुर सरकार जवाब नहीं देती है. इस मामले में भी नहीं देगी. पर खबर पढ़ने और जानने लायक है. शिवम विज की इस खबर के मुताबिक, नरेन्द्र मोदी सरकार 2014 से ही भ्रष्टाचार के आरोपों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है. छापे और समन के मामले चुनाव के समय खासतौर से बढ़ जाते हैं. पर यह भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष नहीं है क्योंकि अगर ऐसा ही होता तो भ्रष्टाचार के आरोपी भाजपा नेताओं को नहीं बख्शा जाता. चुनकर की जा रही यह कार्रवाई बदले की भावना से की जाती लग रही है और सबसे बड़ी बात तो यही है कि सरकार ने विवादास्पद, राफेल सौदे की जांच कराने से साफ मना कर दिया है. यही नहीं, लोकपाल की नियुक्ति भी जिस ढंग से पांच साल तक टलती रही उससे भी यही साबित होता है. 


शिवम विज ने जिन सात भाजपा नेताओं के नाम लिखकर कहा है कि उनके खिलाफ सीबीआई ईडी कार्रवाई नहीं करेगी वे हैं - हाल में नाम बदलकर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने बीएस येदियुरप्पा. उनपर भ्रष्टाचार के ढेरों आरोप हैं  पर ज्यादातर से बरी किए जा चुके हैं. सीबीआई ने उनके खिलाफ वर्षों जांच की लेकिन मोदी सरकार के सत्ता में आने पर पर्याप्त सबूत नहीं दे सकी. दूसरे हैं, बेल्लारी के रेड्डी बंधु. खबर के मुताबिक, 2018 के चुनाव से पहले सीबीआई ने जल्दबाजी में इनके खिलाफ जांच पूरी कर ली और इन्हें तर्कसंगत अंत तक नहीं पहुंचाया गया. भाजपा ने उन्हें बच जाने दिया क्योंकि उसे इनकी जरूरत है. तीसरे नेता हैं, हिमंता बिस्वा शर्मा. इन्हें उत्तर पूर्व का अमित शाह भी कहा जाता है. भाजपा ने इनके खिलाफ अभियान चलाया था एक पुस्तिका भी जारी की थी और गुवाहाटी के जलापूर्ति घोटाले में मुख्य अभियुक्त कहा था. अब वे भाजपा में हैं और उनके खिलाफ जांच धीमी हो गई है. 

चौथे नंबर पर शिवराज सिंह चौहान हैं. सीबीआई ने 2017 में उन्हें व्यापम घोटाले में क्लिन चिट दे दिया था जबकि इस मामले में मीडिया का अनुमान है कि 40 लोगों की संदिग्ध मौत हो चुकी है. क्या वे कांग्रेस में होते तो बच पाते?  पांचवा नाम मुकुल रॉय का है. भाजपा को पश्चिम बंगाल में अपना आधार मजबूत करना था तो उसने भ्रष्टाचार के आरोपी तृणमूल कांग्रेस नेता को भाजपा में शामिल कर लिया. प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें एक मामले में समन किया था उसके तुरंत बाद वे भाजपा में शामिल हो गए. कहने को वे कहते हैं कि कानून अपना काम करेगा पर कानून के काम करने की गति उनके भाजपा में शामिल होने के बाद से धीमी हो गई है. छठे नंबर पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का नाम है. उत्तराखंड के मुख्य मंत्री के रूप में वे दो बड़े घोटालों के केंद्र में थे. उनके शासन में भाजपा की छवि इतनी खराब थी कि 2011 में उनसे इस्तीफा ले लिया गया था. कहने की जरूरत नहीं है कि इस मामले में सीबीआई या उत्तराखंड सरकार को कोई जल्दी नहीं है.  सातवें नंबर पर नारायण राणे का नाम है. आप महाराष्ट्र के पूर्ण मुख्यमंत्री हैं और गए साल भाजपा में शामिल हुए हैं. अब पार्टी ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बना दिया है. अभ सीबीआई और ईडी को राणे की संपत्ति की जांच की कोई जल्दी नहीं है. राणे पर मंनी लांडरिंग और भूमि घोटाले के आरोप हैं.     

ठीक है कि सीबीआई ने पूर्व गृहमंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया है। पर तथ्य यही है कि उनके खिलाफ चार्जशीट नहीं है, एफआईआर में उनका नाम नहीं है। अदालत से 14 दिन की बजाय पांच दिन का रिमांड मांगने लायक होने में सीबीआई को पांच साल से ज्यादा लगे। और क्या-क्या नहीं खोया। आलोक वर्मा जैसे डायरेक्टर, राकेश अस्थाना जैसे दूसरे नंबर के अधिकारी और अपने अंतरिम प्रमुख को सजा दिलवाने के बाद सीबीआई की साख ही क्या रह गई थी. सब खोकर ही सीबीआई पांच दिन का रिमांड मांगने लायक हुई है. 

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