एक गुरु की ऐसी विदाई !

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एक गुरु की ऐसी विदाई !

संजय चौहान!

उत्तरकाशी .ये दृश्य न तो किसी बेटी के ससुराल जानें का था, न नंदा देवी राजजात यात्रा मं  नंदा की डोली का कैलाश विदा होने का था बल्कि ये दृश्य शिक्षक आशीष डंगवाल की विदाई समारोह का था जिसमें हर कोई शिक्षक आशीष डंगवाल के गले मिलकर रो रहे थे. क्या बच्चे क्या बुजुर्ग, सबकी आंखों में आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी. सबको अपने इस शिक्षक के तबादला होंने पर यहाँ से चले जाने का दुख है.

सीमांत जनपद उत्तरकाशी के राजकीय इंटर केलसू घाटी में तैनात शिक्षक आशीष डंगवाल की जो विदाई हुई है वैसी विदाई हर कोई शिक्षक अपने लिए चाहेगा. फूल माला और ढोल दमाऊं के संग कभी न भूलने वाली विदाई दी. जहां आज लोग दुर्गम स्थानों पर नौकरी नहीं करना चाहते है तो वहीं गुरू द्रोण आशीष डंगवाल नें दुर्गम को अपनी कर्मस्थली बना डाला. आशीष डंगवाल नें गुरु द्रोण की नयी परिभाषा गढ़ डाली है जो शिक्षा महकमे सहित अन्य सरकारी सेवको के लिए नजीर है, उन्होंने एक मिशाल पेश की है. अन्यत्र तबादला होने के बाद आज उनके विदाई समारोह में एक नही दो नहीं बल्कि पूरी केलसू घाटी के गांवों के ग्रामीण और स्कूल के बच्चे उनके विदाई समारोह में फफककर रो पड़े, हर किसी की आंखों में आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी. शायद ही अब उन्हें आशीष डंगवाल जैसे शिक्षक मिल पाये.

इस अवसर पर शिक्षक आशीष डंगवाल नें एक मार्मिक फेसबुक पोस्ट भी शेयर की है. इस फेसबुक पोस्ट और विदाई समारोह की तस्वीरें देखकर भला किसकी आंखों में आंसुओं की अविरल धारा नहीं बहेगी...

मेरी प्यारी केलसु घाटी, आपके प्यार, आपके लगाव, आपके सम्मान, आपके अपनेपन के आगे, मेरे हर एक शब्द फीके हैं. सरकारी आदेश के सामने मेरी मजबूरी थी मुझे यहां से जाना पड़ा, मुझे इस बात का बहुत दुख है ! आपके साथ बिताए 3 वर्ष मेरे लिए अविस्मरणीय हैं. भंकोली, नौगांव, अगोडा, दंदालका, शेकू, गजोली, ढासड़ा के समस्त माताओं, बहनों, बुजुर्गों, युवाओं ने जो स्नेह बीते वर्षों में मुझे दिया मैं जन्मजन्मांतर के लिए आपका ऋणी हो गया हूँ. मेरे पास आपको देने के लिये कुछ नहीं है, लेकिन एक वायदा है आपसे की केलसु घाटी हमेशा के लिए अब मेरा दूसरा घर रहेगा. आपका ये बेटा लौट कर आएगा. आप सब लोगों का तहेदिन से शुक्रियादा. मेरे प्यारे बच्चों हमेशा मुस्कुराते रहना. आप लोगों की बहुत याद आएगी.

आज के दौर में ऐसी विदाई हर किसी को नसीब नहीं होती है. गुरू द्रोण आशीष डंगवाल जी को हमारी ओर से ढेरों बधाइयाँ. आपने गुरू शिष्य परंपरा का निर्वहन कर समाज में एक मिशाल पेश की है. धन्य हैं वो स्कूल जो आपके जैसे गुरूओं की कर्मभूमि बनेगी.साभार 


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