अंबरीश कुमार
नैनीताल .कुमायूं के नैनीताल जिले का रामगढ़ ,सतबुंगा और मुक्तेश्वर अंचल फलों का टोकरा माना जाता है .आजादी से पहले शौकीन किस्म के अंग्रेजों ने इस तरफ ब्रिटेन से सेब की कई प्रजातियों को लाकर बड़े बड़े बगीचे विकसित कराए .डेल्शियस ,फेनी , किंग डेविड जैसी कई प्रजातियां जो तब लगी वह आज भी फल दे रही हैं .पर बाद में इसे कोई प्रोत्साहन नहीं मिला और सेब की बागवानी का रकबा घटता चला गया .इसकी कई और वजह भी रही .इधर के बागवानो को खाड़ी देशों में आड़ू का भाव बेहतर मिला तो सेब के बाग़ और घटने लगे .बदलते मौसम ने भी खेती बागवानी पर काफी असर डाला .पिछले एक दशक में एक और बड़ी समस्या का सामना किसानो बागवानो को करना पड़ा है .यह समस्या शहरी इलाकों से बंदर लाकर इस फल पट्टी में छोड़ने से हुई है .सिर्फ रामगढ़ अंचल में बीस करोड़ से ज्यादा के फल खासकर आड़ू ,खुबानी ,प्लम ,अखरोट ,नाशपाती से लेकर सेब तक पैदा किये जाते हैं .पर बंदरों की वजह से काफी नुकसान होता है .न तो कांग्रेस सरकार ने इस समस्या से निपटने में में कोई दिलचस्पी दिखाई न ही भाजपा सरकार को कोई चिंता है .जब किसान बागवान खुद ही ज्यादा चिंता नहीं करेंगे तो जन प्रतिनिधियों को क्या चिंता होगी .खैर यह रिपोर्ट खेती बागवानी के उस आयाम पर फोकस है जिससे किसानो बागवानो को कम जमीन में भी अच्छा मुनाफा हो सकता है .यह नया आयाम हर्बल खेती का है .इसे बढ़ावा दे रहा है सतबुंगा का ' द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट ' यानी टेरी .यह सतबुंगा के सूपी में है .सामने हिमालय की खुली वादियां हैं .सीढ़ीदार खेतों में जड़ी बूटियां लगाईं गई हैं तो ऊपर की तरफ सेब आदि की नई प्रजातियां भी .साथ ही टेरी की अत्याधुनिक प्रयोगशाला भी है .
पहाड़ के संकरे रास्ते पर चढ़ते हुए हम टेरी की प्रयोगशाला तक पहुंचे तो हमें वहां टेरी के प्रोजेक्ट मैनेजर डा नारायण सिंह मिले .आसपास के गांवों में के किसानो के बीच टेरी के कामकाज का ब्यौरा दिया तो साथ ही हर्बल खेती के बारे में विस्तार से जानकारी दी .
डा नारायण सिंह दरअसल हिमाचल से इधर आएं है इसलिए सेब की बागवानी की अच्छी जानकारी रखते हैं .हालांकि वे रहने वाले इधर के ही हैं .डाक्टर सिंह के मुताबिक आसपास के गांव के किसान टेरी की मदद और सहयोग से जेरेनियम ,रोजमेरी ,चेमोमाइल ,पार्सले ,थाइम ,जंगली गेंदा ,लेमन ग्रास जैसी बहुत सी जड़ी बूटियां लगा रहे हैं .टेरी खेती में मदद के साथ उन्हें मार्केटिंग में भी मदद करता है .जड़ी बूटियों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है इसलिए यह किसानो के लिए मुनाफे की खेती भी है .डाक्टर सिंह ने बताया कि पहाड़ की एक नाली जमीन जो करीब 2100 वर्ग फुट होती है उसे यदि आधार माना जाए तो विभिन्न किस्म की जड़ी बूटियों के उत्पादन का आकलन आसानी से किया जा सकता है .जैसे रोजमेरी का उत्पादन एक नाली जमीन पर अस्सी से सौ किलो तक होता है .इसे अगर सुखा दें तो यह बीस से पच्चीस किलो तक हो जाता है .इसकी कीमत दो सौ रूपये किलों आसानी से मिल जाती है .जबकि चेमोमाइल फूलों की पैदावार करीब अस्सी किलो तक होती है और यह सूख कर पच्चीस किलो हो जाता है .इसकी कीमत चार सौ रूपये किलो है .इसी तरह जेरेनियम और जंगली गेंदा के तेल की कीमत सोलह से बीस हजार रूपये किलो तक मिल जाती है .यह सब उत्पाद की गुणवत्ता और बाजार स्थिति पर ज्यादा निर्भर करता है .पर हर्बल खेती किसानो के लिए वरदान बन सकती है .
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