विधानसभा चुनाव और दिग्भ्रम का शिकार कांग्रेस

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विधानसभा चुनाव और दिग्भ्रम का शिकार कांग्रेस

रवि शंकर यादव  
कांग्रेस आज़ादी के बाद अपने सबसे कठिन दौर से गुज़र रही है . आज उसे एक ऐसे विपक्ष का सामना करना है जो न केवल संगठन और संसाधन की दृष्टि से कांग्रेस की तुलना में बेहद मज़बूत है , अलोकतांत्रिक और अनैतिक तरीक़े अपनाने को रणनीति का हिस्सा मानता है .बावजूद इसके कांग्रेस नेतृत्व या तो अनिर्णय का शिकार दिखाई देता है या ऐसे निर्णय ले रहा है जो पार्टी हित के लिहाज़ से उचित या दूरदर्शी नहीं कहे जा सकते . पिछले कुछ वर्षों में राहुल गांधी अपने प्रति एक संगठित एवं गरिमाहीन दुस्प्रचार का सामना करते हुए एक भावुक , संवेदनशील और संजीदा नेता के रूप में उभरने में कामयाब रहे है किंतु एक टीम और रणनीति बनाने में उनकी नाकामी से कांग्रेस की दुस्वारियां कम होने के बजाय बड़ती जा रही है . 
तीन चौथाई बहुमत से छत्तीसगढ़ में जीतने पर नियुक्त मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिसतरह सरकार चलाई है उसने बघेल को एक मेहनती और कार्य करने वाला नेता सिद्ध किया है . राजीवगांधी न्याय योजना और गोधन योजना जैसी लोकप्रिय स्कीम के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने गम्भीर और सफल प्रयास किया है . सीएमआइई का आँकड़ा बताता है कि 2018 में जब उन्होंने सरकार संभाली थी तो बेरोजगारी की दर 22% थी , कोरोंना की त्रासदी के बावजूद बेरोज़गारी की दर कम करना बघेल सरकार की बडी उपलब्धि है . 
भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री पद से हटाना न पार्टी हित में है न छत्तीसगढ़ के हित में मगर उनके हटाने की बात को हवा देने वाले ग्रूप को दिल्ली बुलाना फिर बघेल को दिल्ली बुलाना शीर्ष नेतृत्व के निर्णय की क्षमता पर एक सवालिया निसान है . शीर्ष नेतृत्व को दो टूक स्पष्ट कर देना चाहिए था कि छत्तीसगढ़ में कोई परिवर्तन नहीं होगा .इस मामले को जितना ही लम्बा खींचा जाएगा उतनी ही जटिलताएँ बढ़ेगी . आपस में हो रही बयानबाज़ी से आपसी कटुता ही बढ़ेगी जो अंतत: पार्टी और सरकार के लिए घातक होगी . 
अगले वर्ष गोवा , मणिपुर , पंजाब , उत्तराखंड और यूपी में चुनाव है . 
गोवा में पिछले चुनाव में 40 में 17 सीट कांग्रेस ने जीती जो बहुमत से चार कम थी . पार्टी वहाँ चार अन्य विधायकों को अपने साथ लाने में नाकामयाब रही और 13 सीट जीतने वाली भाजपा ने गोवा में अपनी सरकार बना ली . 
इसी तरह 60 सदस्यीय मणिपुर विधान सभा में बहुमत से 3 सीट कम 28 सीट जीतने वाली कांग्रेस विपक्ष में है और 21 सीट जीत भाजपा सत्ता में .पार्टी वहाँ भी 3 अन्य विधायकों को अपने साथ लाने में नाकामयाब रही .यद्यपि इन दोनों राज्यों में पिछले वार सरकार बना पाने में नाकामयाबी के लिए सिर्फ़ कांग्रेस नेतृत्व ही ज़िम्मेदार नहीं है अनैतिकता और धनबल से सम्पन्न भाजपा के द्वारा नियुक्त राज्यपालो की भूमिका का भी उसमें महत्वपूर्ण योगदान था . लेकिन इन दोनो ही राज्यों में मज़बूत स्थित होने और मामूली अंतर से सरकार बनाने से चूक जाने पर भी अगले वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव के लिए पार्टी उस तरह प्रयास करती नहीं दिखाई दे रही जैसा उसे करना चाहिए .उसका प्रयास गोवा और मणिपुर में नहीं यूपी में है जहाँ वह रोज़ सपा से लड़ रही है . क्या यूपीपीसीसी और केंद्रीय नेत्रत्व को पता नहीं कि यूपी में सरकार सपा की नहीं भाजपा की है ? कांग्रेस ने एक मुस्लिम को सपा पर हमला करने के लिए लगाया हुआ है जो कभी आज़म खान के बहाने सपा पर हमला करते है तो कभी मुस्लिमों की किसी अन्य समस्या के लिए सपा को दोष देते है . उसी तरह एक अन्य यादव नेता को लगाया हुआ है जो सपा द्वारा यादवों से किए गए धोखों को गिनाते रहते है . जबकि राजनीति की थोड़ी सी भी समझ रखने वाला कोई भी व्यक्ति निकट भविष्य में यूपी में कांग्रेस की संभावनाओं को बता सकता है . इसका ये अर्थ नहीं कि कांग्रेस को यूपी में प्रयास नहीं करना चाहिए , हर किसी के लिए अपनी कमज़ोरी पर काम करना ही चाहिए लेकिनअपनी स्ट्रेंथ / मज़बूत पक्ष की अनदेखी कर आप सिर्फ़ कमज़ोरी दूर कर सफल नहीं हो सकते . 
उत्तराखंड में वह आसानी से जीत सकती है जहाँ भाजपा तीन मुख्यमंत्री बदल कर मुसीबत में है और कांग्रेस पास हरीश रावत जैसा मज़बूत , सौम्य और अनुभवी नेता है जिसका क़द और जनस्वीकार्यता उत्तराखंड के किसी भी अन्य नेता की तुलना में अधिक है . कुमायूँ और गढ़वाल दोनो अंचलो के सभी जिलो में उनके समर्थक है .तो उत्तराखंड के अपने प्रमुख नेता हरीश रावत को कांग्रेस ने पंजाब में लगाया है .जबकि उन्हें अब अपना पूरा ध्यान और समय उत्तराखंड में लगाना चाहिए . 
पंजाब जहाँ कैप्टन अमरिंदर सिंह आसान जीत दर्ज करने की स्थिति में है .तीन कृषि क़ानून के अध्यादेश व संसद में बिलों के क़ानून बनने के समय अकाली भाजपा सरकार में शामिल थे . किसान आंदोलन ने कांग्रेस की राह आसान कर दी है .विपक्ष लड़ने की स्थिति में नहीं है वहाँ कैप्टन की असहमति को नज़र अन्दाज़ कर नवजोत सिद्धू की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति और उसके बाद लगातार सिद्धू के असहयोग से स्थितियाँ ख़राब हो रही है . अविलंब हालात को न सम्भाला गया तो आसानजीत हार में भी बदल सकती है . 
लब्बो लुआव ये कि पाँच में चार राज्यों में आसान जीत दर्ज करने की स्थिति में कांग्रेस सात सीट यूपी में जीतने के लिए तो प्रयासरत है लेकिन चार राज्य जिनमें गम्भीरता से लड़ने पर वह सरकार बना सकती है वहाँ कांग्रेस दिग्भ्रमित दिखाई दे रही है . 


 

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