शाह का मिशन कश्मीर बहुत खतरनाक है

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शाह का मिशन कश्मीर बहुत खतरनाक है

हिसाम सिद्दीकी 

नई दिल्ली. तकरीबन सत्तर साल से जम्मू-कश्मीर के बिगड़े हालात को चन्द महीनों में ही ठीक करने की मरकजी होम मिनिस्टर अमित शाह की उजलत रियासत खुसूसन वादी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है. पार्लियामेंट के दोनों एवानों यानी लोक सभा और राज्य सभा में कश्मीर पर बोलते हुए अमित शाह ने कहा कि दहशतगर्दों और अलाहदगी पसंदों को उन्हीं की भाषा में मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा इसी के साथ अंदर खाने अलाहदगी पसंद (अलगाववादी) हुर्रियत कांफ्रेंस के साथ बातचीत की भी कोशिशें दोनों ही तरफ से हो रही हैं. अपना पहला कश्मीर दौरा करके अमित शाह ने वहां के लोगोंं में मोदी सरकार का एतमाद (विश्वास) मजबूत करने की भी कोशिशें की लेकिन रियासती असम्बली की सीटों की जल्द से जल्द हदबंदी (डिलिमिटेशन) कराकर वह वादी के मुकाबले जम्मू और लद्दाख रीजन की सीटों में इजाफा भी करना चाहते हैं. यह बात भी आम लोगों को हज्म नहीं हो रही है. इन तमाम बातों पर संजीदगी से गौर किए बगैर जल्दबाजी में उठाए गए कदम को किसी भी कीमत पर मुनासिब नहीं कहा जा सकता है. लोक सभा और राज्य सभा दोनों ही एवानों में अमित शाह ने कश्मीर के मौजूदा हालात के लिए पूरी तरह मुल्क के पहले वजीर-ए-आजम पंडित जवाहर लाल नेहरू को ही जिम्मेदार ठहरा दिया. उनका कहना था कि जब पाकिस्तान ने कबायलियों के जरिए कश्मीर पर हमला कराया था और भारतीय फौजों ने उन्हें मार भगाने का काम किया था अगर उस वक्त पंडित नेहरू ने सीज फायर का एलान न कर दिया होता तो आज कश्मीर के जिस हिस्से पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है वह भी हमारे पास ही होता. उन्होंने यहां तक कह दिया कि आजादी मिलने के बाद जूनागढ और हैदराबाद समेत तमाम रियासतों और रजवाड़ों को भारत में मिलाने की जिम्मेदारी पंडित नेहरू ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को सौंपी थी, एक अकेले कश्मीर का मामला नेहरू ने अपने हाथों में रखा था. नतीजा सबके सामने है. इसलिए यह तारीख (इतिहास) मुल्क को बताना बहुत जरूरी है. अमित शाह का बयान अपने वोटरों के लिए था उन्हें यह भी ध्यान नहीं रहा कि जूनागढ हो हैदराबाद हो या देश का दूसरा कोई रजवाड़ा किसी की सरहदें दुश्मन मुल्क पाकिस्तान से नहीं मिलती थी. इसलिए कश्मीर का मुवाजना (तुलना) दूसरी रियासतों के साथ उन्होने सिर्फ नेहरू को बदनाम करने की गरज से ही किया. आजादी के फौरन बाद हालात क्या थे यह बात अमित शाह और नरेन्द्र मोदी समेत देश के आज के शहरियों में से कोई नहीं जानता क्योंकि सभी उसके बाद पैदा हुए हैं. अमित शाह अब सिर्फ बीजेपी के सदर नहीं हैं वह मुल्क के होम मिनिस्टर है. राज्य सभा में आरएसएस के प्रोपगण्डा मास्टर राकेश सिन्हा नामजद मेम्बर हैं. लेकिन अमित शाह की खुशामद में उन्होने राज्य सभा में अमित शाह को दूसरा पटेल करार दे दिया. कोई समझ नहीं सका कि राकेश सिन्हा अमित शाह का कद बढाने की कोशिश कर रहे थे या सरदार पटेल की तौहीन कर रहे थे. खुद अमित शाह भी जानते हैं कि सरदार पटेल के कद तक पहुंचने वाले सियासतदां अब मुल्क में पैदा ही नहीं हो रहे हैं. इसलिए अमित शाह को ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जो कश्मीर और मुल्क के मफाद के खिलाफ हो. उन्हें पार्लियामेंट में अपने वोटरों को खिताब करने के बजाए मुल्क के मफाद में ही बोलना चाहिए.

राज्य सभा में लीडर आफ अपोजीशन गुलाम नबी आजाद, डिप्टी लीडर आनन्द शर्मा समेत अपोजीशन पार्टियों के कई मेम्बरान, उससे पहले लोक सभा में कांग्रेस के मनीष तिवारी वगैरह ने नेहरू को ही कश्मीर के मौजूदा हालात के लिए सबसे बड़ा जिम्मेदार करार देने के होम मिनिस्टर अमित शाह के बयान पर सख्त एतराज किया. मनीष तिवारी ने जब अमित शाह से कहा कि दहशतगर्दी के बारे में आपने सिर्फ सुना होगा हमने तो भुगता है. मेरे वालिद यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे पंजाब में दहशतगर्दी के दौरान कुछ गुमराह और सिरफिरे नौजवानों ने हमारे घर पर आकर उन्हें शहीद कर दिया था. सरकार ने तमाम कोशिशें कर ली लेकिन पंजाब में दहशतगर्दी पर तभी काबू पाया जा सका था जब रियासत के अवाम का पूरा तआवुन (सहयोग) सरकार को मिला था. इसीलिए हमारा कहना है कि कश्मीर मे भी अवामी तआवुन के बगैर इस पर काबू पाना मुमकिन नहीं है. सख्ती करने के साथ सरकार को आम लोगों को एतमाद (विश्वास) में लेना चाहिए.

होम मिनिस्टर अमित शाह ने कांग्रेस मेम्बरान के एतराज पर उल्टा हमला करते हुए जब यह कहा कि उस वक्त यानी आजादी मिलने के फौरन बाद कश्मीर मामले में जो भी गलतियां हुइंर् वह नेहरू और उनकी सरकार ने की थी. हमने नहीं की थी. यह कहते वक्त अमित शाह भूल गए कि उस वक्त न वह थे न आरएसएस था न भारतीय जनसंघ थी न आज की बीजेपी. यह सब जब थे ही नहीं तो गलती कैसे करते. यह सब लोग आजादी की लड़ाई में भी कहीं नहीं थे इसलिए उसमें भी किसी सतह पर शामिल नहीं थे. अब आप सरकार में हैं मोदी सरकार के पहले दौर में पठान कोट एयरबेस पर पाकिस्तानी दहशतगर्दों का हमला हुआ हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दोनों ने उस हमले की सख्त मजम्मत की फिर तय हुआ कि दोनों मुल्कों की जांच टीमें पूरे मामले की तहकीकात करेंगी. पहले पाकिस्तान की टीम आई जिसमें वहां की खतरनाक खुफिया एजेंसी के वही सीनियर अफसरान शामिल थे जो सरहद पार से दहशतगर्दों को हिन्दुस्तान में भेजते हैं. उस टीम ने पठान कोट जैसे अहम एयरबेस में दाखिल होकर सबकुछ देख लिया उसके बाद जब भारतीय टीम के पाकिस्तान जाने का मौका आया तो पाकिस्तान ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि टीम वहां जा ही नहीं सकी. तो क्या यह मान लिया जाए कि पठान कोट में पाकिस्तानी टीम को इजाजत देने में  नरेन्द्र मोदी ने मुल्क के डिफेंंस मफाद का ख्याल न रखा. नेहरू के वक्त भी ऐसे ही कुछ हालात रहे होगे. 

अमित शाह राज्य सभा में गुलाम नबी आजाद के इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं दे पाए कि यूपीए सरकार के जमाने में 2014 तक कश्मीर में दहशतगर्दी तकरीबन पूरी तरह खत्म हो गई थी. लेकिन 26 मई 2014 को मुल्क में नरेन्द्र मोदी सरकार आने के बाद दहशतगर्दी में इजाफा क्यों हो गया? उन्होने कहा कि गुजिश्ता पांच सालों में कश्मीर मे हमारी फोर्सेज के जितने अफसर और जवान शहीद हुए उतने कभी नहीं हुए थे. इसकी जिम्मेदारी आखिर किसकी है. होम मिनिस्टर अमित शाह ने यह भी गलतबयानी की कि अगर जनवरी 1949 में कश्मीर वादी को पाकिस्तानी कबायलियों से खाली कराया जा रहा था तकरीबन एक-चौथाई कश्मीर खाली होने से रह गया था तभी जवाहर लाल नेहरू ने सीज फायर का एलान कर दिया. उन्होंने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के फैसले का जवाब भी सरसरी तरह से ही दिया और कह दिया कि कश्मीरी अवाम की राय के मुताबिक ही वहां साझा सरकार बनाई गई थी.

होम मिनिस्टर अमित शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को खुसूसी दर्जा देने वाली दफा तीन सौ सत्तर (370) आरजी (अस्थाई) तौर पर संविधान में डाली गई थी उसे और उसके साथ दफा 35ए दोनों को हटाने में कोई संवैधानिक दुश्वारी नहीं है. इसपर सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट शबनम लोन का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के इंतखाबी मंशूर (चुनावी घोषणा पत्र) में लिख देने से ही दफा 370 नही हटाई जा सकती. साबिक चीफ मिनिस्टर महबूबा मुफ्ती पहले ही कह चुकी हैं कि अगर दफा 370 और 35ए के साथ छेड़छाड़ की गई तो कश्मीर वादी में तिरंगा थामने वाले हाथ नहीं मिलेंगे. डिफेंस मामलात के माहिर रिटायर अफसर कपिल काक कहते हैं कि अगर दफा 370 हटाई गई तो कश्मीर का साथ छोड़ने वालों की तादाद में आज के मुकाबले दस गुना ज्यादा इजाफा हो जाएगा. उन्होने कहा कि वह खुद भी दफा 370 हटाए जाने के खिलाफ हैं. जो लोग जज्बाती होकर दफा 370 हटाने की बातें करते हैं वह मुल्क के मफाद मे नहीं सोचते हैं. नेशनल कांफ्रेंस के तर्जुमान (प्रवक्ता) समीर कौल कहते हैं कि कानूनी और संवैधानिक तरीकों से ही लोगों को जोड़ा जा सकता है. हमारी बदकिस्मती यह है कि मौजूदा सरकार में बैठे जिम्मेदार लोग इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत का नारा तो लगाते हैं लेकिन इन तीनों बातों पर अमल करने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि उन्हें इनमें एतमाद (विश्वास) ही नही है. उन्होंने कहा कि जहां तक दफा 370 मुल्क के संविधान के साथ आरजी (अस्थाई) तौर पर जुडे़ होने की बात है तो हम पूछते हैं कि एससी/एसटी रिजर्वेशन एक्ट तो सिर्फ दस सालों के लिए आरजी तौर पर संविधान में जोड़ा गया था क्या सरकार में इतनी हिम्मत है कि एससी/एसटी रिजर्वेशन खत्म कर सके. उन्होने कहा कि दफा 371 नार्थ ईस्ट की रियासतों को कश्मीर की तरह ही खुसूसी दर्जा देती है. अरूणाचल प्रदेश और मिजोरम जाने के लिए तो अभी तक परमिट लेना पड़ता है. उसका क्या करेगे उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में भी बाहर से जाकर कोई बस नहीं सकता जमीन जायदाद नही खरीद सकता फिर सिर्फ 370 पर ही इतना शोरशराबा क्यों है? उन्होंने कहा कि सरकार को कश्मीर की तारीख (इतिहास) याद रखनी चाहिए कि आम कश्मीरी भारत के साथ क्यों आए थे? जब अवाम को आप अपने साथ कर लेंगे फिर 370 हटाएं या रखें सब लोग सरकार का फैसला तस्लीम कर लेंगे जबरदस्ती कोई नहीं मानेगा.

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