कोंकण की बरसात में

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कोंकण की बरसात में

 अंबरीश कुमार

रायगढ़ के तारा स्थित युसूफ मेहर अली सेंटर की सीमा से लगा एक बगीचा है ' गो ग्रीन ' संस्थान का जिसके अतिथि गृह में दस अगस्त को जब पहुंचा तो बरसात हो रही थी .पता चला मुंबई में इस साल छाछठ साल का बरसात का रिकार्ड टूट गया है और फिर मुंबई से करीब सत्तर किलोमीटर दूर कोंकण के जिस अंचल में आया हूँ वह समूचा इलाका वर्षा वन जैसा है . मुझे सेंटर में हो रहे समाजवादी समागम में सुबह ग्यारह बजे पहुंचना था पर पहुंचा साढ़े बारह बजे .हालाँकि कोशिश पूरी थी समय पर पहुँचने की पर एक चूक हुई और करीब घंटा भर समय ज्यादा लग गया . मुंबई के हासिम भाई समय पर यानी सुबह साढ़े दस बजे हवाई अड्डे लेने आ गए थे और उन्हें ही मुझे सभा स्थल तक पहुँचाना था .वे नहीं आते तो अपने पुराने मित्र और सीएनबीसी के संपादक आलोक जोशी जिनके घर ठाह्राना था उनका ड्राइवर मुझे कुर्ला स्टेशन तक छोड़ आता और वहां से लोकल ट्रेन से पनवेल तक जाता . 

बरसात को देखते हुए लोकल से जाने के नाम पर ही परेशानी महसूस हो रही थी इसलिए हाशिम भाई के आने पर राहत की सांस ली .वे भी मुंबई से बाहर कम निकलते थे इसलिए हर चौराहे पर पूछ पूछ कर चल रहे थे . पर पनवेल में हमें जिस गोवा मार्ग पर पुल के नीचे से मुड़कर जाना था वहां कोई बोर्ड नजर नहीं आया और हम करीब दस किलोमीटर आगे पहुंचे तो सड़क के दोनों तरफ का दृश्य देख कर रोमांचित हो रहे थे . पर चिंता पेट्रोल ख़त्म होने की थी और कोई पेट्रोल पंप नजर नहीं आ रहा था .छह सात किलोमीटर बाद जब रास्ता पूछा तो पता चला हम लोनावाला पहुँचने वाले है और गोवा मार्ग तो बहुत पीछे छूट चूका है .पेट्रोल पंप भी कुछ किलोमीटर दूर मिलेगा तभी लौट भी पाएंगे . हम हैरान पर अब कोई चारा भी नहीं था .पर भारी बरसात में लोनावाला की हरियाली देखकर जाने का मन भी नहीं कर रहा था .हर पहाड़ी हरीभरी और जहां हरियाली नहीं थी उन चट्टानों से पानी रिस रहा था . 

बादल पहाड़ों की चोटी से बहते हुए इधर उधर घूम रहे थे. समूचा माहौल ही भीगा भीगा नजर आ रहा था . खैर वापस हुए और जब गोवा मार्ग पर स्थित सेंटर में पहुंचे तो किसान नेता डा सुनीलम सभा से बाहर आए और मुझे बताया कि मुझे गो ग्रीन के अतिथि गृह में रुकना है जहां कश्मीर के एक पूर्व राज्यसभा सांसद शेख साहब भी ठहरे हुए है .वे मुझे बांस से घिरे कच्चे रास्ते से उस जगह पहुंचा आए .ठीक एक दिन पहले ही पहली बार सुगर की समस्या का पता चला था और सुबह लखनऊ में उसकी दवा  भी ले ली थी . रास्ते के लिए सविता ने खाना दिया था जिसे लोनावाला के रास्ते में खा लिया था .अब नींद आ रही थी पर सामान रखकर सभा में पहुंचा और भाई वैद्य ,आनंद कुमार समेत कई को सुना .अचानक मेधा पाटकर दिखी और नमस्कार के बाद बगल की कुर्सी पर बैठ गई तो कुछ देर उनसे चर्चा हुई .जब बैठने में दिक्कत महसूस हुई तो गेस्ट हाउस की तरफ चल दिया और कमरे में पहुँच कर सो भी गया .अचानक तेज आवाज से नींद खुली तो खिड़की के बाहर तेज बरसात दिखी .थकावट दूर हो गई थी और अब कैमरा लेकर बाहर आ गया .अतिथि गृह बहुत ही साधारण था पर हरियाली और वातावरण उसे भव्य बना रहे थे . बाथरूम भी अलग था और हर जगह चप्पल उतार कर जाना पड़ता था .नीचे एक पैंट्री किचन था पर रसोइए ने बताया कि सिर्फ काम करने वाले कर्मचारियों का सादा खाना यहां बनता है और अतिथियों यानी हमारी कोई व्यवस्था नहीं है .मैंने उससे रोटी के लिए पूछा था क्योंकि सभा स्थल के किचन में जो खाना बन रहा था उसमे पूड़ी और चावल आदि था . मेरे लिए यह खाना मुश्किल था पर मुख्य आयोजक गुड्डी ने मेरे और सुनीलम के लिए रोटी की व्यवस्था करा दी थी .भोजन के बाद सभी को छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की तरह यहां पर भी अपने अपने बर्तन साफ़ करने थे और सभी ने यह किया भी .कार्यक्रम में कुछ समय गुजरने के बाद सेंटर के परिसर को देखा जो कई एकड़ में फैला हुआ था और जंगल जैसा था . ज्यादातर लोगों के रहने कि व्यवस्था तीन बड़े बड़े हाल और बंबू हट में थी . बाक़ी लोगो को बाहर ठहराया गया था .मै अपने गेस्ट हाउस में लौटा तो नर्सरी देखने लगा .तरह तरह के फूल पौधे और हर पौधे पर उसकी कीमत भी पड़ी थी .डेढ़ सौ से लेकर पचास हजार रुपए वाले बोनसाई पौधे भी थे . नर्सरी तो बहुत देखी पर इतने सुरुचिपूर्ण तरीके से बनाई नर्सरी पहली बार देखी . यह एक विशाल बगीचा था जो बार बार भीग रहा था . इसका अतिथिगृह और कैंटीन खुला हुआ था जिसके एक तरफ बड़ी बरसाती लगी हुई थी तो हर स्विच बोर्ड प्लास्टिक के आवरण में था . यह सब बरसात से बचाने के लिए.कोंकण के इस अंचल में ज्यादा बरसात होती है और इसीलिए हरियाली भी देखते बनती है . रसोइयें ने बताया कि अक्सर तरह तरह के सांप घूमते हुए इधर आ जाते है जिन्हें आदिवासी लोग पकड़ कर जंगल में छोड़ देते है इन्हें मारा नहीं जाता है . रात का खाना खाकर गेस्ट हाउस पहुँचने के लिए एक साथी की मदद ली क्योंकि आंध्र था और रास्ता झाड़ियों के बीच से . रिमझिम जारी थी . भोर में जब नींद टूटी तो मुसलाधार बरसात हो रही थी .नीचे उतरा तो कैंटीन से काली और फीकी चाय मिल गई तो बालकनी में बैठ गया . अपने रामगढ़ जैसा नजारा था . वाकई देश में ऐसी कितनी छोटी छोटी जगहें है जहां कई दिन ठहरा जा सकता है . समाजवादी समागम से शाम चार बजे एक मजदूर नेता सुरेश चिटनिश के साथ निकला वे छिंदवाड़ा की आंदोलनकारी वकील अराधना भार्गव को दादर छोड़ने जा रहे थे तो मुझे भी साथ ले लिया . मुझे शाम को निकलना जरुरी था क्योंकि दूसरे दिन सुबह नौ बजे से पहले एयरपोर्ट पहुंचना था जो सेंटर से जाना संभव नहीं था खासकर बरसात और सड़क जाम को देखते हुए . इसलिए मै भी उनके साथ चल दिया . सुरेश जार्ज फर्नांडीज से प्रभावित होकर राजनीति में आए थे और आज भी उन्हें अपना प्रेरणा स्रोत मानते है .उन्हें पता चला कि मेरा बचपन चेंबूर में गुजरा है और मुझे उस समय का सिर्फ आरके स्टूडियो और देवनार काटेज याद है तो वे मुझे बचपन में लौटा ले गए . कार रुकी तो बाई और आरके स्टूडियो था . कुछ बदला हुआ पर बहुत कुछ याद दिलाने वाला . स्कुल का रास्ता इसके सामने से होकर जाता था और रोज इसे देखता था इसलिए सब याद आ गया .बरसात में गम बूट और बरसाती के बावजूद कई बार ठीक से भीग कर घर पहुँचता था .साथ ही गुलमेहंदी के रंग बिरंगे फूलों वाले पौधे लेकर जिन्हें एपार्टमेंट के नीचे मिटटी में हाथ से ही लगा देता था और वे दूसरे दिन तरोताजा नजर आते थे . याद नहीं पर स्कुल के रास्ते में पड़ने वाले कई बंगलों के बाहर गुलमेहंदी के बहुत से पौधे लगे रहते थे . यादों में डूबा था तभी आलोक जोशी का फोन आ गया कि वे ड्राइवर को कहा पर भेज दे और रात में खाना कैसा लूंगा . ड्राइवर को केएम अस्पताल के बाहर बुला लिया और खाने के बारे में कहा जब समुद्र तट पर आए है तो मछली खासकर पमफ्रेट का स्वाद लेना चाहूँगा . सुरेश जी ने हमें अस्पताल के पास आलोक की गाड़ी में बैठा दिया और वे चले गए . वे कुछ साल पहले तक मुंबई की एक चाल में रहते थे अब ठाणे के एक छोटे से फ़्लैट में रहते है .बाद में ड्राइवर मुझे समुद्र के किनारे ले गया ताकि कुछ फोटो ले सकूँ पर बरसात के चलते यह संभव नहीं हुआ और लौट कर सीएनबीसी के दफ्तर पहुंचा जहां काफी दिन बाद सीएनबीसी आवाज के मुखिया संजय पुगलिया से मुलाक़ात हुई . बातचीत हुई और कुछ देर बाद आलोक के साथ उनके घर लौटा . उन्होंने किसी कोलकोता क्लब से बंगाली ढंग से सरसों में बनी कई तरह कि मछली मंगवा ली थी . बेटकी और रोहू में नमक कुछ ज्यादा था पर स्वाद अद्भुत .कुछ और सामिष व्यंजन नमिता ने बनाए थे वे और स्वादिष्ट थे . बारहवी मंजिल पर आलोक का फ़्लैट है और तेज हवा आती रहती है .बरसात के मौसम में ठंड इतनी थी कि पंखे में भी ठंड लग रही थी . मुंबई की दिनचर्या बहुत व्यस्त होती है इसलिए ग्यारह बजे सोने गया तो कमरे से सामने दूर समुंद्र के किनारे की लाईट भी दिख रही थी .

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