वीर विनोद छाबड़ा
गुरुदत्त को एक पार्टी में वहीदा रहमान दिखीं. जाने क्या तूने कही... दिल में घंटियां सी बजीं. सीआईडी (1956) में ले लिया. वैंप की भूमिका थी. वहीदा जी ने एक बार भी नहीं सोचा कि यह उनकी पहली हिंदी फिल्म है. वैंप का ठप्पा लग गया तो टाइप्ड होने का बहुत ख़तरा है. सीआईडी के निर्देशक राजखोसला थे. नायक देवानंद और नायिका शक़ीला. कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना...के फिल्मांकन के समय वहीदा को समझाया गया, आप वैंप हैं और विलेन को रिझा रही हैं. जिस्म पर कपड़े कम करें. वहीदा भड़क गयीं. यह नहीं होगा मुझसे. मेरे कॉन्ट्रैक्ट में भी लिखा है कि ड्रेस मेरी पसंद की होगी. राजखोसला भी बौखला गए, इतनी ही फ़िक्र है तो फिल्मों में काहे आईं? मामला बढ़ गया. प्रोड्यूसर गुरुदत्त उस दिन शहर से बाहर थे. बहदवास राजखोसला ने उन्हें फ़ोन मिलाया. यूनिट के लोग इस ख्याल के थे कि इतनी भी 'ख़राब' ड्रेस नहीं है. वहीदा बेकार का बतंगड़ बना रही है. उसकी हो गई छुट्टी.
गुरुदत्त ने बड़े ध्यान से बात सुनी. उन्होंने कहा कि यह सही है. कॉन्ट्रैक्ट में ऐसा लिखा है. आप डायरेक्टर हो. बिना बदन दिखाए भी मादक दिखा सकते हैं. जिस्म का नहीं भावनाओं का ख्याल रखें.
राजखोसला की पहली फिल्म 'मिलाप' फ्लॉप हो चुकी थी. यों भी भिखारी के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं होता.
वहीदा जी ने बिना जिस्म उघाड़े ज़बरदस्त लटके-झटके दिए. खुद राज खोसला हैरान रह गए. सुपर-डुपर हिट हुई. नायिका शकीला की बजाये फोकस में वहीदा रही. गुरुदत्त की अगली फिल्म 'प्यासा' में वहीदा तवायफ़ थीं. जाने क्या तूने कही जाने क्या मैंने सुनी...नायिका थी माला सिन्हा. लेकिन सहनायिका वहीदा ज्यादा चर्चा में रही. गुरू-वहीदा प्रेम के किस्से आम हो गए. घर में ख़बर हुई. गुरू और पत्नी गीता में अनबन शुरू हो गयी. गुरुदत्त ने 'कागज़ के फूल' शुरू की. इसमें वहीदा नायिका थी. वक्त ने किया क्या हसीं सितम...वस्तुतः गुरुदत्त ने अपनी और वहीदा की प्रेम का दुखांत भांप लिया था. वहीदा भी समझ गयी. उनकी कहानी अंत में फ्लॉप ही होनी है. शायद फिल्म का फ्लॉप होना इसी की ओर संकेत भी था.
लेकिन इसके बावजूद वहीदा गुरुदत्त की ज़िंदगी में बनी रही. 'चौदहवीं का चाँद' में वहीदा को उन्होंने ग्लैमरस भूमिका में कास्ट किया. गुरूदत्त बताना चाहते थे कि उनकी निगाहों में वहीदा बलां की खूबसूरत हैं.
इधर गुरुदत्त और गीता के रिश्तों में खाई और चौड़ी हो गयी. वहीदा के लिए गीता ने नहीं लता जी ने गाया - बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं...
गीता ने क़सम खायी कि वो वहीदा को कभी प्लेबैक नहीं देंगी. इसी बहाने लता जी गुरुदत्त के कैंप में एंट्री भी हुई. 'कागज़ के फूल' की रीलें रीयल लाईफ़ में दिखने लगी. 'साहिब बीवी और गुलाम' में गीता ने गाने गाये, लेकिन वहीदा के लिए नहीं. इसमें वहीदा तुच्छ सेकंड लीड में थी. लीड में तो मीना कुमारी थी - न जाओ सैयां छुड़ा के बैयां... वहीदा अगर थीं तो शायद इसलिए की कि वो गुरूदत्त का शुक्रिया अदा करना चाहती थीं - भंवरा बड़ा नादान है...इसके बाद वहीदा गुरूदत्त की ज़िंदगी से बिलकुल बाहर हो गयी. वो गुरू का घर नहीं तोड़ना चाहती थीं. लेकिन इसके बावजूद गुरू भूल नहीं सके वहीदा को - मिली ख़ाक में मुहब्बत जला दिल का आशियाना...10 अक्टूबर 1964 गुरू ने नशे की हालत में नींद की गोलियों की डोज़ ज्यादा ले ली और...मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया तुम्हारी है तुम्हीं संभालो ये तुम्हारी है दुनिया.
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