आलोक कुमार
पटना.जुलाई 16, 1972 को चारू को अपने खुफ़िया ठिकाने से पकड़ा गया.28 जुलाई को रात 4 बजे वह लॉक-अप में अपनी अंतिम साँसे ले चुके थे. 28 जुलाई 2021 को कॉमरेड चारु मजूमदार की हिरासत में हत्या के 49 साल पूरे हो रहे हैं और भाकपा (माले) के पुनर्गठन के 47 साल पूरे हो रहे हैं.आज उस 70 के तूफानी दशक के करीब 50 साल पूरे होने वाले हैं जिसका अंत1975 में आपातकाल लगाने से हुआ था. आज एक बार फिर राज्य आपातकाल के दौर वाले दमनकारी चेहरे के साथ फिर से हाजिर है.यह उत्पीड़न और क्रूरता के मामले में अंग्रेजों के शासन को भी मात दे रहा है.
इतना खुले आम दमन हो रहा है कि अदालतों को बार-बार आगाह करना पड़ रहा है कि मोदी सरकार का अंधाधुंध दमन संवैधानिक लोकतंत्र के ढांचे के खिलाफ है। दिल्ली हाईकोर्ट ने लोकतंत्र में असहमति और विरोध के अधिकार के महत्व को रेखांकित किया है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि आजादी के सात दशक बाद भी उसे गुलामी के समय के राजद्रोह कानून की जरूरत क्यों है?
राजनीतिक कैदियों की रिहाई, अंग्रेजों के समय के राजद्रोह कानून और आजादी के बाद के यूएपीए जैसे खूंखार कानूनों को रद्द करने की मांग एक बार फिर लोकप्रिय विमर्श का हिस्सा बन रही है. नागरिकता कानून में भेदभावपूर्ण संशोधन को वापस लेने, विनाशकारी कृषि कानूनों को रद्द करने, नये श्रम कानूनों को रद्द करने और श्रम अधिकारों की गारंटी करने, निजीकरण और मंहगाई पर रोक लगाने, मजदूरी बढ़ाने और रोजगार के अवसर पैदा करने, कोविड से हुई मौतों का मुआवजा देने, सबके लिए शिक्षा व स्वास्थ्य की गारंटी करने की मांगें इस समय की मूल लोकतांत्रिक मांगें हैं.
मंत्रिमंडल में बदलाव करके मोदी सरकार जब अपने जंबो मंत्रिमंडल के साथ संसद के मानसून सत्र के लिए तैयार है तो विपक्षी पार्टियों विशेषकर संसद में मौजूद वामपंथी पार्टियों और सड़क पर चल रहे आंदोलनों को सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए और निर्णायक प्रतिरोध के लिए तैयारी करनी चाहिए.
इन परिस्थितियों की मांग के अनुरूप पार्टी के सदस्यों व कमेटियों को पूरी ऊर्जा के साथ खड़े होना होगा.
यह लगातार दूसरा साल है जब हम कोविड-19 महामारी और इसके चलते लगे तमाम प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं.इस दौरान हमने अपने कई कॉमरेड खो दिए और कई अब भी कोविड की वजह से पैदा जटिलताओं का सामना कर रहे हैं.इसके चलते हमारी कई रोजमर्रा की गतिविधियों को कम करना पड़ा है और एकत्र होकर विरोध प्रदर्शन करने का तरीका भी थम सा गया है. इसके बावजूद हम डिजिटल और शारीरिक माध्यमों को समन्वित करते हुए कई प्रभावशाली पहलकदमियां लेने में कामयाब रहे. महामारी की अवधि बढ़ती ही जा रही है और 'सामान्य जीवन' बहाल होने के बारे में अनिश्चिततायें भी बढ़ रही हैं। ऐसे में हमें अपने आंदोलन की पहुंच को बढ़ाने के लिए और भी रचनात्मक तरीके सोचते रहने होंगे.
कॉमरेड चारु मजूमदार के आखिरी शब्द थे - जनता के हित को सर्वोपरि रखो और हर हाल में पार्टी को जिंदा रखो.1970 के दशक के धक्के के दौरान यही शब्द पार्टी के दिशा निर्देशक थे. आज जब हम मोदी सरकार 2 और कोविड 2 के घातक और चुनौतीपूर्ण दौर में हैं तो इसका मुकाबला करने के लिए उसी तरह की भावना की जरूरत है.परिस्थितियों की मांग के अनुरूप पार्टी को तैयार करते हुए जब हम विभिन्न मोर्चों पर संघर्ष की तैयारी में हैं तो ऐसे में किसी भी तरह की निष्क्रियता और ढिलाई की कोई गुंजाइश नहीं है.
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