डा लीना
पटना. बिहार सरकार ने माना है कि राज्य में सूखा और पर्यावरण की स्थिति चिंताजनक है और सूखे का निदान ढूंढने की कोशिश की जाएगी. इसके लिए सभी माननियों से राय भी मांगी. जहाँ उन्होंने 2 जून को बिहार विधान परिषद में इस बात की विधिवत घोषणा की, वहीं बिहार विधानसभा में 4 जून को कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के सदस्यों ने बिहार में सूखे की स्थिति पर सदन में चर्चा कराने की मांग को लेकर जमकर हंगामा किया.
सूखे के कारण चावल के उत्पादन में भी कमी की संभावना दिख रही है. विभाग के मुताबिक 2017-18 में बिहार में चावल का उत्पादन करीब 80.93 लाख टन हुआ था जबकि 2018-19 में करीब 62.42 लाख टन उत्पादन होने की संभावना है. हालांकि अब तक अंतिम रिपोर्ट नहीं आई है. सूखे की मार की संभावना से जहाँ किसान सहमे हैं वहीं नीतीश सरकार भी परेशान दिख रही है. पानी की कमी से पटवन प्रभावित हो रहा है.
जाहिर है जब राज्य के मुखिया नीतीश कुमार को कहना पड़ रहा है कि सूखे की जमीनी हकीकत को जानने के लिए सत्र के बीच में विधानसभा और विधान परिषद के सभी सदस्यों को एक साथ बिठाकर विचार विमर्श किया जाएगा और सूखे का निदान ढूंढने की कोशिश की जाएगी. नीतीश कुमार ने कहा कि उत्तर बिहार में जल समस्या एक चेतावनी है. अगर अभी इसका कारण और हल ढूंढने की पहल नहीं की गई तो यह समस्या विकराल हो सकती है. यह पहला मौका है जब सरकार विपक्ष से किसी मुद्दे पर राय लेगी.
गर्मी के लगातार बढ़ते प्रभाव से लोगों को हर तरह से परेशानी झेलनी पड़ रही है. गर्मी के बाद बिहार में कम बारिश का अनुमान रहने की वजह से सूखे की आशंका जताई जा रही है. ऐसे में राज्य में सूखा पड़ने की आशंका के मद्देनजर बिहार सरकार ने कमर कस ली है. सूखे से निपटने के लिए बिहार सरकार ने जलस्रोतों को ठीक कराने का कार्य शुरू कर दिया है. आपदा प्रबंधन विभाग का मानना है कि बिहार में सूखा और बाढ़ लगभग हर साल की समस्या है. ऐसे में आपदा प्रबंधन विभाग इन समस्याओं से निपटने के लिए तैयार रहता है. उनके मुताबिक राज्य में 30 से 35 हजार हैंडपंपों की मरम्मत जल्द से जल्द कराई जाएगी. साथ ही सभी जलाशयों का उचित प्रबंधन करने का निर्देश भी दिया गया है.
बिहार सरकार ने मनरेगा योजना के तहत राज्य के सभी पंचायतों में सार्वजनिक भूमि पर स्थित तालाब, आहर, पाइन और चेक डैम की मरम्मत कराने का फैसला लिया है. सभी जिलाधिकारियों को ऐसे जलस्रोतों को ढूढ़ने और चिन्हित करने का निर्देश दिया है जिन्हें मरम्मत की जरूरत है.
आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत के अनुसार राज्य के 25 जिलों के 280 प्रखंड पहले से ही सूखाग्रस्त चिह्नित हैं. इन सभी प्रखंडों में पानी का उचित प्रबंध और कमी दूर करने के लिए अधिकारियों को हर संभव प्रयास करने का आदेश दिया गया है. राज्य के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के मंत्री विनोद नारायण झा ने माना कि पिछले साल भी सूखा पड़ जाने के कारण और इस साल भी अपेक्षित बारिश न होने के कारण ही पेयजल की समस्या बनी है.
सूखे की स्थिति को देखते हुए पशु संसाधन विभाग और कृषि विभाग ने भी तैयारी शुरू कर दी है. सूखे के दौरान पशुओं को पानी की किल्लत न हो इसके लिए अभी 149 कैटल ट्रफ बनाया गया है. कृषि विभाग के अधिकारी के मुताबिक 25 सूखाग्रस्त जिलों में अब तक 14.31 लाख से ज्यादा किसानों को बिहार फसल सहायता योजना और कृषि इनपुट सब्सिडी से लाभ दिया गया है. वहीं हर घर नल-जल योजना से लगे नल के पानी से ग्रामीण भैंसों को नहला रहे है. इस खबर से नीतीश कुमार नाराज दिखे और ऐसे करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बात कही.
बहरहाल, एक बार फिर बिहार में सरकार सूखे की आशंका को लेकर तैयारी में तो जुट गई है, लेकिन देखना होगा कि तैयारी कितनी हो पाती है? एईएस से बच्चों की मौत के मामले में फजीहत झेल चुकी बिहार सरकार अपनी तैयारियों से सूखे की मार से प्रभावित किसानों को बचा पाती है या नहीं?
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