जासूसी में बुरी फंसी मोदी सरकार

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जासूसी में बुरी फंसी मोदी सरकार

हिसाम सिद्दीकी 
नई दिल्ली! इस्राईली कम्पनी एनएसओ के बनाए हुए पेगासस के जरिए मुल्क के दो वजीरों अश्विनी वैष्णव और प्रहलाद पटेल, साबिक एलक्शन कमिशनर अशोक ल्वासा, सुप्रीम कोर्ट के जज, राहुल गांधी, उनके स्टाफ के लोगों, चालीस से ज्यादा सहाफियों और दर्जनों अखबारों की जासूसी कराए जाने का मामला तूल पकड़ गया है जिसमें मोदी सरकार बुरी तरह फंस गई है. इस जासूसी मामले की वजह से पार्लियामेंट का मानसून इजलास (सत्र) भी नहीं चल पाया. वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस उन्हें हज्म नहीं कर पा रही है. सरकार की तरफ से घिसा-पिटा जवाब दिया गया कि सरकार ने किसी के फोन की निगरानी नहीं कराई है. यह मामला 2018-19 का है. फोन की निगरानी सिर्फ दिल्ली में नहीं हुई बल्कि कर्नाटक सरकार गिरवाकर 2019 में बीजेपी सरकार बनवाने के वक्त के वजीर-ए-आला एचडी कुमार स्वामी, डिप्टी सीएम जी परमेश्वर और कांग्रेेस लीडर सिद्धारमैया के फोनों की भी जासूसी की गई. जिस खातून ने साबिक चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर छेड़छाड़ का इल्जाम लगाया था उसका फोन भी रिकार्ड किया गया. आम आदमी पार्टी के राज्य सभा मेम्बर संजय सिंह का कहना है कि सरकार के हक में गोगोई के दिए हुए तमाम फैसलों पर नजरे सानी (पुर्नविचार) होना चाहिए. सीनियर सहाफी दीपक शर्मा का कहना है कि जिसकी फितरत मंे ही जासूसी कराना है वह तो कराएगा ही. यह सिलसिला गुजरात से शुरू हुआ, अब तो बादशाह (मोदी) ही जासूसी करा रहे हैं. 
इस मामले पर दो नवम्बर 2019 को उस वक्त के आईटी मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद से शिकायत की गई थी. चौदह नवम्बर 2019 को आईटी मिनिस्ट्री की पार्लियामेंट्री कमेटी से भी इसकी शिकायत की गई थी. क्योकि यह मामला मई 2019 से ही चल रहा है. उस वक्त कांग्रेस लीडर दिग्विजय सिंह ने राज्य सभा में यह मामला उठाया था. उस वक्त के आईटी वजीर रविशंकर प्रसाद ने साफ इंकार किया था. दिग्विजय सिंह ने उस वक्त भी यह सवाल किया था कि इस्राईली कम्पनी एनएसओ से भारत सरकार ने पेगासस साफ्टवेयर खरीदा है कि नहीं? अब भी राज्य सभा और लोक सभा में वाजेह (स्पष्ट) तौर पर यही सवाल किया गया, लेकिन सरकार ने तब और अब दोनों मर्तबा इस सवाल का जवाब नहीं दिया. एनएसओ कम्पनी का कहना है कि वह यह साफ्टवेयर सिर्फ सरकारों को बेचती है. यह बहुत महंगा साफ्टवेयर है पचास टेलीफोन में  यह साफ्टवेयर डालने के लिए साठ करोड़ रूपए लगते हैं. इतनी रकम सरकार लगा सकती है या कारपोरेट घराने. 
बेश्तर (अधिकांश) मोबाइल फोनों की जासूसी 2018-19 में कराई गई. यह वक्त लोक सभा एलक्शन का था. जितने सहाफी मोदी सरकार की तनकीद करते रहते हैं या सरकार के खिलाफ लिखते हैं. उन्हीं चालीस सहाफियों के साथ-साथ चार ऐसे सहाफियों की भी जासूसी की गई जिन्हें सरकार का गुलाम समझा जाता है. यह मामला उठा तो वही चारों सहाफी खामोेश हैं बाकी सब बोल रहे हैं. राज्य सभा मेम्बर संजय सिंह तो बहुत साफ इल्जाम लगा रहे हैं कि साबिक चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर छेड़खानी का इल्जाम लगाने वाली खातून का फोन भी निगरानी पर था. इससे तो यही लगता है कि रंजन गोगोई को ब्लैकमेल करके या उस खातून के जरिए मुतास्सिर करके राफेल समेत कई फैसले मोदी सरकार के हक में कराए गए. अब सरकार इस मामले पर पूरी तरह से झूट बोल रही है. 
उन्नीस जुलाई को यह मामला मंजरे आम पर आया तो मोदी वजारत से निकाले गए रविशंकर प्रसाद, होम मिनिस्टर अमित शाह और नए आईटी वजीर अश्विनी वैष्णव सरकार को बचाने के लिए मैदान में कूद पड़े. सबने एक ही बात कही कि सरकार और देश को बदनाम करने के लिए यह मामला उछाला गया है. इसीलिए पार्लियामेंट के मानसून इजलास से एक दिन पहले यह खबर ‘द वायर’ ने जारी की, ताकि पार्लियामंेट के इजलास में रूकावट डाली जा सके और पार्लियामेंट को भी बदनाम किया जा सके. सवाल यह है कि पेगासस के जरिए चालीस मुल्कों के एक हजार छः सौ (1600) लोगों की जासूसी कराने का मामला सामने आया है. जिनमें भारत के भी तीन सौ से ज्यादा लोग हैं. फिर यह मामला सिर्फ भारत को बदनाम करने और पार्लियामेंट के मानसून इजलास में रूकावट डालने का कैसे कहा जा सकता है. सीनियर सहाफी अशोक वानखेड़े कहते हैं कि सरकार और बीजेपी पूरी तरह से झूट बोल रही हैं. यह सब सरकार का किया धरा है. जब मामला चालीस मुल्कों में जासूसी का है तो इसे भारत मुखालिफ क्यों बताया जा रहा है? 
जिन सहाफियों की जासूसी की गई उनमें रोहिणी सिंह, जिन्होने अमित शाह के बेटे जय शाह की हैसियत में चंद महीनों में ही हजारों गुना इजाफे की खबर की थी. ‘दि वायर’ के फाउण्डर एडीटर सिद्धार्थ वरदाराजन और एम के वेणु दोनों मुसलसल सरकार की खामियां तलाश करते रहते हैं. सुशांत सिंह इंडियन एक्सप्रेस के हैं जिन्होंने चीनी घुसपैठ और रफाल डील पर खबर की थी, प्राजय गुहा ठाकुरता, जिन्होने अडानी और अंबानी की बेईमानियों पर खबर लिखी. मुजम्मिल जमील जो कश्मीर में इंडियन एक्सप्रेस के नुमाइंदे हैं. उनके अलावा औरंगजेब नक्शबंदी, स्मिता शर्मा, इफ्तिखार गिलानी, जे गोपी कृष्णन, एस एन एम आबदी, स्वाति चतुर्वेदी वगैरह शामिल हैं. यह सब ऐसे हैं जो सरकार के खिलाफ लिखते रहते हैं. एलक्शन कमिशनर अशोक लवासा ने 2019 के लोक सभा एलक्शन में कोड आफ कण्डक्ट की खिलाफवर्जी करने के मामले में वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दिए जाने पर एतराज किया था इसलिए उनकी भी जासूसी की गई. दो सहाफियों सिद्धार्थ सिब्बल और संतोष भारतीय को दो साल पहले व्हाट्स एप ने बताया था कि उनके मोबाइलों की जासूसी हो रही है. तकरीबन सभी लोगों का मतालबा है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिए.जदीद मरकज़

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