नदियों के पानी में जहर घोल रहे हैं हम !

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नदियों के पानी में जहर घोल रहे हैं हम !

पूजा सिंह 

नई दिल्ली .गर्मी बढ़ रही है और पानी घट रहा है .जो पानी बचा है वह भी जहरीला होता जा रहा है .सबसे बुरी स्थिति नदियों की है .देश की सभी प्रमुख नदियों का पानी प्रदूषित हो चुका है .चाहे हिमालय से निकलने वाली गंगा ,यमुना हो या फिर चेन्नई में अड्यार या कूवम .अमदाबाद में साबरमती हो या फिर बिहार में बागमती .अमरकंटक से निकलने वाली नर्मदा हो या फिर सोन .किसी भी नदी का पानी अब साफ़ नहीं बचा है .लखनऊ में गोमती प्रदूषित हो चुकी है तो श्रीनगर में झेलम .किसी भी नदी का पानी न तो पीने लायक है न नहाने के लायक .इन नदियों में शहर के लोग सीवर का पानी छोड़ ही रहे थे तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने प्लास्टिक उत्पादों से इसे और प्रदूषित कर चुकी हैं . हर नदी में कूड़ा कचरा ,पालीथिन ,शीतल पेय और मिनरल वाटर की प्लास्टिक की बोतलें फेंकी जा रही हैं .

इसमें दुनिया की बड़ी कंपनियों का भी बहुत अधिक योगदान है. कोका-कोला, पेप्सीको और नेस्ले जैसी कंपनियों को सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों में शामिल किया गया है. कुछ अरसा पहले एक अभियान में दुनिया भर के 42 देशों के समुद्र तटों से प्लास्टिक कचरे के दो लाख टुकड़े बटोरे गये, उनमें इन तीनों कंपनियों का कचरा सबसे अधिक था. इनमें भी कोका कोला शीर्ष पर था. जिन 42 देशों पर यह अध्ययन किया गया, उनमें से 40 में कोका कोला का कचरा पाया गया.समुद्र तो प्रदूषित हो ही रहा है नदी और पहाड़ भी नहीं छूटा है .

विश्व की सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट पर चले एक सफाई अभियान में पिछले दिनों 11,000 टन कचरा और चार शव निकाले गये. इस कचरे में खाली ऑक्सीजन सिलिंडर, प्लास्टिक की बोतल और खाने के पैकेट, केन एवं बैटरी आदि शामिल थे.अगर विश्व की सबसे दुर्गम जगहों में से एक पर इतना प्लास्टिक और कचरा है तो शेष विश्व की स्थिति का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. आश्चर्य नहीं कि आज बढ़ता प्लास्टिक कचरा पूरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ी समस्या का रूप धारण कर चुका है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक कचरे के मामले में भारत भी पीछे नहीं रह गया है. दिल्ली के निकट स्थित गाजीपुर लैंडफिल साइट पर बना कचरे का पहाड़ साल भर पहले ही कुतुब मीनार की ऊंचाई के निकट पहुंच गया था. सितंबर 2017 में गाजीपुर में कचरे का पहाड़ ढहने से 2 लोगों की मौत हो गयी थी.

एक अध्ययन के मुताबिक सन 2047 तक देश में कचरे का उत्पादन मौजूदा स्तर से पांच गुना हो जायेगा. हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा कचरा उत्पादक होने वाला है लेकिन कचरे के निपटान को लेकर बनी योजनाओं का उचित क्रियान्वयन अब तक नहीं हो सका है.


अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के तमाम विकसित देश अपना कचरा विकासशील देशों में सस्ते निपटान के लिए भेजते हैं. इसे कचरे का कारोबार भी कहा जाता है. दिल्ली के निकट ही बवाना में ऐसी बड़ी कचरा मंडी है जहां प्लास्टिक कचरे का निपटान फैक्टरियों के माध्यम से किया जाता है. सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वॉयरनमेंटके मुताबिक देश के शहरों में कुल कचरे का 50 से 60 फीसदी ही संग्रहित हो पाता है.


इंडियन मेडिकल असोसिएशन के एक शोध के मुताबिक गंगा नदी के तटवर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों में कैंसर के मामले ज्यादा पाये गये हैं. यह गंगा में बढ़ते प्रदूषण के कारण हो रहा है. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल भी प्लास्टिक कचरे का ढेर बन चुकी है. भोपाल के पर्यावरणविद सुभाष सी पांडेय के मुताबिक शहर से हर रोज निकलने वाले 800 टन कचरे में 14 फीसदी प्लास्टिक का कचरा होता है जबकि केवल 10 फीसदी कचरा ही रिसाइकिल करने योग्य होता है.देश के कई राज्यों में पॉलिथीन पर रोक लगाकर एक शुरुआत की गयी है जिसे आगे ले जाने की आवश्यकता है. पालिथीन के साथ शीतल पेय और पानी की प्लास्टिक की बोतलों के बारे में भी गंभीरता से सोचना होगा .कचरे के समुचित निपटान के अलावा उससे बिजली बनाने, खाद बनाने जैसे विकल्पों पर बढ़चढ़कर काम करना होगा.

फोटो -श्रीनगर में झेलम का पानी भी प्रदूषित हो गया है .


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