अरुणा आसफअली को क्यो याद करें ?

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अरुणा आसफअली को क्यो याद करें ?

चंचल 
सादर नमन अरुणा जी , 
 वर्ष 77 में जेल से छूटा तो दिल्ली गया . जार्ज फर्नांडिस  और मधु  लिमये का  चहेता था , राजनारायण जी से खट्टा-  मीठा  रिश्ता आजीवन रहा , आखिरी दिनों में केवल मीठा . जार्ज और मधु जी की खुंदक हम लोंगो से निकाल लेते थे राज नारायण जी . थोड़ीदेर बोल बतिया कर असल मुद्दे पर आ जाते थे . यह समाजवादी आंदोलन का स्थायी भाव रहा . आचार्य नरेन्द्रदेव , जय प्रकाश नारायण , डॉ लोहिया ,  अच्युत पटवर्धन वगैरह का जमाना हम लोंगो ने देखा जरूर लेकिन आधा अधूरा और टूट कर टुकड़ों में  बंटा हुआ . हम तीसरी पीढ़ी के लोग दूसरी पीढ़ी को नजदीक से केवल देख सुन ही नही रहे थे , उसे आत्मसात भी करते जा रहे थे , जाने अनजाने .  
     80/ 81  की बात है . दिल्ली , बंगाली मार्केट के त्रिवेणी सभागार में पत्रकारों ,  साहित्यकारों और अलग अलग क्षेत्रों में काम कर रहे सक्रिय लोंगो का मजमा जुटा था . मधुजी (  मधु लिमये )   विशेष आमंत्रित थे . कहीं से नेता राज नारायण  को पता चल गया वे भी आ गए . मधु जी बोले इसके बाद वसन्त साठे और वी यन गाडगिल जी का एलान हुआ . गाडगिल जी मंच की तरफ बढ़े इसके पहले ही नेता राजनारायण जी माइक के पास पहुंच गए - पहले में बोलूंगा फिर गाडगिल जी बोलेंगे . सब हंसने लगे.  बहरहाल  गोष्ठी का पहला सत्र समाप्त हुआ दूसरे सत्र  का विषय प्रवर्तन करना था , अरुणा आसफअली  को . लोग चाय पी रहे थे , इतने में अरुणा जी आईं  और आते ही सबसे पहले मधुजी के गले मिली , फिर बसन्त साठे और गाडगिल से हाथ मिला कर पलटी तो नेता राजनारायण जी ने अदब से नमस्कार किया . अरुणा जी राजनारायण जी के पास आ गयी , और बात चीत होने लगी . मधु जी ने हमसे कहा - हम राजकुमार जी ( प्रोफेसर राजकुमार जैन साहब ) के साथ निकल लेते है  तुम आ जाना . पुरानी बातें याद आती हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं . मधु लिमये जिससे समूची संसद  हिलती थी , बड़े  बड़े मंत्रियों की घिघी बांध जाती थी , उसके पास अपनी कोई गाड़ी नही थी , प्रोफेसर जैन साहब अपने स्कूटर पर लिए उन्हें इधर उधर ले जाते थे .  
    अरुणा जी के नाम का बुलावा आया वे अंदर चली गयी .  एक नजर अरुणा जी पर .  
     आज उनका जन्मदिन है . हमारी कोई शिकायत न सरकार से है , न ही इस मीडिया से  कि - आजादी के दीवानों को याद करे ,  क्यो याद करें ?  शर्मिंदा होने के लिए ? जब ये शख्सियतें जंगे आजादी में तिरंगा लिए , मात्र आत्मबल के हथियार के साथ अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ रहे थे , मर , खप रहे थे , तब ये बरतानिया हुकूमत की पालकी ढो रहे थे . जिन्हें याद करेंगे तो वे दस्तावेज भी तो खुलेंगे जो इन की साहसी कथाओं से भरा पड़ा है . नई पीढ़ी पूछेगी न , कौन हैं ये अरुणा आसफली ?  
  अरुणा आसफली का जन्म अविभाजित पंजाब के कालका में  हुआ था . इनके पिता गांगुली होटल व्यापार से जुड़े रहे . इसी सिलसिले में अरुणा जी अपने पिता के साथ  कालका से चलकर नैनी ताल आ गयी और यही उनकी शिक्षा  हुई . पढ़ाई के दौरान ही अरुणा जी स्वतंत्रता आंदोलन से जा जुड़ी . 1930 , 32 और 41 में इन्हें जेल की सजा मिली . सन 42 का विश्वप्रसिद्ध आंदोलन - क्विट इंडिया और डू आर डाइ . अंग्रेजो भारत छोड़ो के प्रस्ताव के बाद ही 9 अगस्त 42 को जब पूरी कांग्रेस गिरफ्तार हो गयी तो आन्दोल  का नेतृत्व कांग्रेस शोसलिस्ट ने अपने हाथ मे ले लिया . बम्बई के गोवालिया मैदान में  10 अगस्त को तिरंगा जिस बहादुर  
' लड़की ' ने फहराया था ये वही अरुणा आसफ अली हैं . आजादी के बाद दिल्ली की पहली मेयर बनी अरुणा आसफ अली की शख्सियत तवारीख का चकदार हिस्सा है . आज अरुणा जी जनदिन है .  
     सादर नमन अरुणा जी .  
  ( लेकिन आपने तो यह पूछा ही नही कि नेता राजनारायण जी कहाँ और कैसे गए ? ) 
चित्र में पंडित नेहरू के बगल खड़ी हैं अरुणा आसफ अली .

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