यह कानून अंग्रेजों के जमाने का है

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

यह कानून अंग्रेजों के जमाने का है

आलोक कुमार 
दिल्ली.सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह विरोधी कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती याचिका पर गुरुवार को सुनवाई की. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह कानून अंग्रेजों के जमाने का है. अंग्रेज स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए इस कानून का इस्तेमाल करते थे.यह कानून महात्मा गांधी, बालगंगाधर तिलक जैसी हस्तियों की आवाज दबाने के लिए इस्तेमाल होता था. क्या हमें आजादी के 75 साल बाद भी ऐसे कानून की जरूरत है? हमारी चिंता इस कानून के दुरुपयोग को लेकर है. यह कानून व्यक्तियों और संस्थानों के लिए गंभीर खतरा है. 
सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी धारा 124ए (राजद्रोह) के दुरुपयोग और इस पर कार्यपालिका की जवाबदेही न होने पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से सवाल किया कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून की जरूरत है.कोर्ट ने कहा कि इस कानून को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. यह कानून अंग्रेजों के समय का है. वे स्वतंत्रता आंदोलन दबाने के लिए इसका प्रयोग करते थे. उन्होंने महात्मा गांधी को चुप कराने के लिए इसका प्रयोग किया.आजादी के इतने साल बाद भी इसकी जरूरत है. सरकार ने बहुत से पुराने कानून रद किये हैं लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया. इसका बहुत दुरुपयोग होता है.ये कानून लोगों और संस्थाओं के लिए बड़ा खतरा है.कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर विचार करने का मन बनाते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. हालांकि जवाब के लिए कोई अंतिम तिथि नहीं दी है. 

कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए ये तीखी टिप्पणियां चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने राजद्रोह कानून पर सवाल उठाने वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं. कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और इसी मुद्दे पर पहले से लंबित याचिकाओं को भी इसी के साथ सुनवाई के लिए संलग्न करने का आदेश दिया. 

मौजूदा याचिका मेजर जनरल (अवकाश प्राप्त) एसजी वोमबटकेरे ने दाखिल की है.याचिका में राजद्रोह कानून को रद करने की मांग की गई है.एक याचिका एडीटर गिल्ड की ओर से भी दाखिल की गई है.गुरुवार को वकील श्याम दीवान ने एडीटर गिल्ड की याचिका का जिक्र करते हुए कहा कि उसमें कानून को रद करने और दिशा निर्देश जारी करने की मांग है. उस पर भी इसके साथ सुनवाई होनी चाहिए.बुधवार को कोर्ट ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल को सेवानिवृत सैन्य अधिकारी की याचिका पर सुनवाई में कोर्ट की मदद करने को कहा था. 

गुरुवार को अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि इसी तरह की दो अन्य याचिकाएं भी लंबित हैं जिन पर दूसरी पीठें सुनवाई कर रही हैं. उन मामलों में कोर्ट ने जवाब दाखिल करने के निर्देश दिये हैं.वेणुगोपाल की दलील पर चीफ जस्टिस ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी है और वे देखेंगे कि क्या मामलों को एक साथ सुनवाई के लिए संलग्न किया जा सकता है अथवा और क्या हो सकता है.सैन्य अधिकारी के वकील ने कहा कि उनकी याचिका बाकी से अलग है. इस पर भी सुनवाई होनी चाहिए. 

जस्टिस रमना ने कहा कि कहा कि अगर इतिहास देखा जाए तो इस कानून में दोषी साबित होने की दर बहुत कम है. लेकिन इसका प्रयोग ऐसे हो रहा है जैसे किसी बढ़ई को लकड़ी का टुकड़ा काटने के लिए आरी दी जाए और वह पूरा जंगल ही काट डाले.आइटी एक्ट की धारा 66ए का उदाहरण देते हुए कोर्ट ने कहा कि उस कानून के रद होने के बाद भी उसमें हजारों केस दर्ज हुए. 



पीठ ने कहा कि अगर पुलिस किसी को फंसाना चाहती है तो धारा 124ए भी लगा देती है.जिस पर भी यह धारा लगती है वह डर जाता है.इन मुद्दों पर विचार किए जाने की जरूरत है.हमारी चिंता कानून के दुरुपयोग और कार्यपालिका की कोई जवाबदेही न होने को लेकर है.पीठ ने कहा कि वह सभी मामलों की एक साथ संलग्न कर सुनवाई करेगी. 


पीठ की टिप्पणी पर केके वेणुगोपाल ने कहा कि कानून रद करने की जरूरत नहीं है. सख्त दिशानिर्देश तय करने से भी उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है.पीठ ने कहा कि एक गुट दूसरे गुट के लोगों को फंसाने के लिए इस कानून का उपयोग कर सकता है. ये लोगों लिए खतरा है.पीठ ने याचिका का प्रामाणिक और याचिकाकर्ता को वास्तविक बताते हुए कहा कि उसने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित किया है. हम यह नहीं कह सकते कि यह प्रेरित याचिका है. 

इस पर सरकार ध्यान दें 

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि सरकार कई कानूनों को खत्म कर रही है, फिर वह इस राजद्रोह विरोधी कानून के बारे में विचार क्यों नहीं कर रही?  जब हम कानून के इतिहास को देखते हैं तो पाते हैं कि इसका खतरनाक इस्तेमाल ठीक उसी तरह हुआ है, जैसे कोई बढ़ई अपनी आरी से किसी एक पेड़ को काटने की बजाय पूरे जंगल को ही काट दे. धारा 124-A के तहत इतनी शक्तियां मिली हुई हैं कि एक पुलिस अफसर ताश या जुआ खेलने जैसे मामलों में भी किसी के खिलाफ राजद्रोह की धारा लगा सकता है. हालात इतने खराब हैं कि अगर कोई सरकार या पार्टी किसी की आवाज न सुनना चाहे तो वह उन लोगों के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल कर लेगी। लोगों के सामने यही गंभीर सवाल है. 

केंद्र सरकार अंग्रेजों के दौर के इस कानून को हटा क्यों नहीं देती?  

रिटायर्ड मेजर-जनरल एसजी वोमबटकेरे की तरफ से दायर इस याचिका में कहा गया है कि राजद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए पूरी तरह असंवैधानिक है, और इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता की दलील है कि ये कानून अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर ‘डरावना प्रभाव’ डालता है और यह बोलने की आजादी के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध लगाता है.याचिका में ये भी कहा गया है कि राजद्रोह की धारा 124-ए को देखने से पहले, समय के आगे बढ़ने और कानून के विकास पर गौर करने की जरूरत है.इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ कर रही है, जिसमें चीफ जस्टिस एनवी रमना के अलावा जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश राय शामिल हैं. 
 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :