सौ साल पुराना डाक बंगला और कुक हाउस !

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सौ साल पुराना डाक बंगला और कुक हाउस !

अंबरीश कुमार  
ये कुक हाउस है .अंग्रेज इसे कुक हाउस ही कहते थे .चौकोर चिमनी जैसा निर्माण पहाड़ी पत्थरों का है .साथ में एक और छोटा सा निर्माण बाद का हुआ होगा .यह सब रसोई का हिस्सा था .अब खाना बनाने का काम नए हिस्से में ही होता है .पुराने कुक हाउस की    रसोई में संभवतः लकड़ी जलाई जाती रही है इसलिए बड़ी चिमनी बनाई गई होगी .दरअसल इस रसोई में पीने और नहाने का पानी भी गर्म होता था क्योंकि तब बिजली तो होती नहीं थी और यह कुमायूं का बर्फीला इलाका रहा है .दरअसल यह सौ साल से ज्यादा पुराने रामगढ़ के डाक बंगले की रसोई है .रामगढ़ का डाक बंगला 1890 का बना है .जंगल के बीच .जंगल तो आज भी है आगे भी पीछे भी तो . गागर की पहाड़ियों से उतरे तो कई मोड़ होते हुए लगातार नीचे उतरना पड़ता है .मल्ला रामगढ़ की बाजार से ठीक पहले एक रास्ता जो नीचे की तरफ जाता है उस पर पीडब्लूडी का बदरंग सा बोर्ड लगा हुआ है जिस पर लिखा था डाक बंगला रोड .यह सड़क सिंधिया घराने के पुराने शिकारगाह से लगती हुई करीब एक किलोमीटर चलती है .आगे घाटी में उतर जाती है .सड़क के दोनों तरफ देवदार के दरख्त थे .अब तो इनकी संख्या बहुत कम हो गई है .पर पच्चीस साल पहले यह सड़क जंगल से गुजरती थी . 
उमागढ़ मोड़ के पास से जो बरसाती नदी बहती है उसकी आवाज से लग रहा था कि नदी साथ साथ ही चल रही है .तब इस रास्ते पर आबादी नहीं थी .जो घर भी थे वे पहाड़ी के ऊपर और सड़क से दूर थे .इसलिए पूरा इलाका जंगल जैसा ही था .महेशखान के साथ ही जो जंगल शुरू होता है वह सतबुंगा होते हुए मुक्तेश्वर तक चला जाता है .यह वह इलाका है जहां धूप भी खुलकर खिलती है तो पानी भी तबियत से बरसता है .बर्फ के मौसम में रास्ता हफ्ता भर तक बंद हो सकता है . बताया गया कि  सौ साल पहले जब घोड़े से अंग्रेज अफसर आते थे तो शिकार यहीं मिल जाता था .आज भी तीतर ,हिरन ,भालू ,तेंदुआ ,खरगोश ,जंगली सूअर ,जंगली मुर्गा आदि रात में आते रहते हैं .करीब ढाई दशक से कुछ पहले अपना भी इसमें रुकना हुआ था .नैनीताल से शायद पांच रूपये की रसीद कटी थी .जून का आखिरी हफ्ता था जब इस डाक बंगले में पहुंचे थे .बरसात में अंधेरा घिर चुका था .डाक बंगला में दो कमरे और डाइनिंग हाल था .खिड़की दरवाजे के कुछ सीसे टूटे हुए थे जिन्हें गत्ते से ढका गया था .सीलन महसूस हो रही थी ही क्योंकि काफी दिन से यह बंद था पर चादर और तकिए का कवर धुला हुआ मिल गया था .बरसात से ठंढ बढ़ गई थी इसलिए फायर प्लेस में बांज की लकड़ी का एक बड़ा लठ्ठा डाल कर जला दिया गया था .बिजली नहीं थी .लैम्प से काम चाल था .हम लोग कुछ देर इसके बरामदे में बैठे पर कुछ ठंढ महसूस हुई तो भीतर कमरे में चले आये .कमरा पर्याप्त गर्म हो चुका था इसलिए भीतर बैठना ही ठीक लगा . 
तब मल्ला में बाजार जैसा कुछ नहीं था .भट्ट जी का ढाबा और दो तीन दुकाने जो शाम होते होते बंद हो जाती थी .ड्राइवर समेत हम तीन लोग थे .दो सामिष और एक निरामिष .चौकीदार को बुलाया गया .जंगल में जाते समय कुछ राशन पानी हम लेकर चलते रहे हैं .खासकर पूर्वांचल का काला नमक चावल या फिर शक्कर चीनी चावल दो किलो ,दाल अरहर आधा एक किलो .आलू टमाटर और प्याज के साथ चाय पत्ती ,चीनी और पावडर वाला दूध भी .बेंत की एक डोलची इसी सामान के लिए होती थी .कुछ फल बिस्कुट आदि के साथ .दरअसल जंगल में ज्यादातर डाक बंगले बाजार से दूर होते हैं और ताज़ी सब्जी आदि भी उनके पास कई बार नहीं होती . जंगल जंगल घूमते हुए जो अनुभव हुए उसके बाद कोई जोखम नहीं लिया जाता है .फिर यह तो जो दो तीन दूकाने थी भी उससे दो तीन मील दूर ही रहा होगा .फिर बरसात में पहाड़ी चढ़ कर कोई जल्दी कहीं जाता भी नहीं . 


चौकीदार आया तो ढेर सारी खुबानी एक प्लेट में सजा कर लाया .पास पड़ोस में बड़े बड़े बाग़ भी थे .आडू खुबानी ,नाशपाती और बबूगोशा के .कुछ बगीचे सेब के भी .किंग डेविड ,फेनी और गोल्डन डेलिशियस प्रजाति के .रात के खाने के लिए पूछा तो बताया दल चावल रोटी बन जाएगी .हरी सब्जी अगर मिल गई तो ले आएगा .बगल में सात आठ घर का गांव है जिसमें लोग अपने लिए सब्जी लगते हैं और देसी मुर्गी भी पालते हैं .जो आसानी से मिल जाती है .इस डाक बंगले के आगे पहाड़ की ढलान थी तो पीछे घाटी में दूर तक जाता जंगल .परिंदों की तरह तरह की आवाज अच्छी लग रही थी .सामने जो सड़क घूमती हुई नीचे को उतर रही थी वह तल्ला रामगढ़ तक जाती फिर ऊपर नथुआखान की तरफ बढ़ जाती . 
चाय आ चुकी थी जिससे कुछ फुर्ती भी आई .बाहर जाने का सवाल नहीं था क्योंकि बरसात जारी थी .चौकीदार गांव की तरफ चला गया था रात के खाने का इंतजाम करने .अब न कोई आने वाला था न जाने वाला .इसलिए डाक बंगला देखने लगे और पीछे के बरामदे से कुक हाउस को देखने निकले .बरामदे में दरवाले की खिड़की का सीसा टूटा हुआ था जिससे ठंढी हवा भीतर आ रही थी .पर पत्थर के इस कुक हाउस को देख कर हैरानी हो रही थी .फिलहाल इससे लगे बरामदे में बड़ा भगोना चूल्हे पर चढ़ा हुआ था जिसमें पानी गर्म हो रहा था . 

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