चंचल
कुछ मत करिए ' यह उसका तकिया कलाम है . इसके बाद वो सब कुछ करिये जो वह बताएगी . जामुन को धोकर सूखा लो कि उसपर पानी की नमी न रह जाय . अब इसे परात में रख कर मसलों ,जिससे गुठली अलग हो जाय और गूदा अलग . अब इसे बारीक कपड़े से छान लो . इसे एक साफ बोतल में रख दो . एक हफ्ते में सिरका तैयार . अब इसमें आम ,कटहल , बड़हर , जो भी डालना चाहें उसे उबाल कर या स्टीम देकर सूखा लें फिर सिरके में डाल दें . इस सिरके में तड़का लगता है सरसो के तेल को गर्म कर उसमे सौंफ साबुत लाल मिर्च, लहसन , अदरख डाल दो . बस
-बस ?
-और क्या , पूछो
-बोतल ?
- नशेड़ी , दुष्ट , नौटंकी ! अब तक दिमाग इसी बोतल पर था ?
- नही यार ! सिरका से मामी की याद आ गयी . यही सीजन रहता था . हम ' गर्मियों की छुट्टी ' में ननिहाल भाग जाते थे . वो दिन बहुत नीचे तक गहराई में बैठ चुके हैं . हमारा ननिहाल खुशहाल परिवार था . सिरका को देखते ही हंसी छूट जाती है . सिरके के आम के फांक को चुरा लेता था . निहोरा मामी की खातिरदारी गजब की रही , अभी भी है . मामी कोयले के अंगारे पर एक हाथ से बेना डुलाती जाती , दूसरे हाथ से मक्के की बाल पलटती जाती . - अभी कोई हाथ न बढ़ाये , पहिले 'भैने' के . भैने ( भांजा ) होने का सुख मामी की भाषा से परवान पा लेता . ये सब इस लिए बता रहा हूँ हम ज्यो ज्यों विकास (?) को ओर बढ़े (?) हैं बहुत कुछ छूटता जा रहा है . अब के बच्चों को यह सब नही मिल पा रहा है . उस शिक्षा में ' गर्मी की छुट्टी ' उत्सव का एक हिस्सा था . भागो ननिहाल चलो . सुराज मिलिहैं . आम के बगीचे में रात बिरात आम बीनना . छोटे मामा से तरकीब सीखना की किस तरह मिट्टी की हांड़ी में छेद करके उसमे दिया रखना , फिर उसकी रोशनी में मलदहिया आम तलाशना वगैरह .
कल हमने भाषा और मुहावरों के दफन किये जाने पर आपत्ति दर्ज कराया तो उसके कई आयाम निकले . कई लोंगो ने सहमति जताते हुए बताया कि उस शब्द सम्पदा की रुखसती से समाज बेपर्दा हो जाएगा . हमारे पास अनगिनत किस्से हैं . 'धक्कड़ के इक्का ' नाना के हुक्का ' मामा क किताब , किशुनी की चिकोटी , छैबर सिंह दुर्गबन्स के कराहा , खोदाई दर्जी की सिलाई , छेदी के गट्टा . कैसे दिन कटता होगा तब ,जब न स्मार्ट फोन था , न बुद्धू बख्सा , लेकिन कहानियां थी , कहकहे थे , अभाव था पर खटका नही था . संस्मरण जो लिख रहा हूँ उसका बड़ा हिसा ' बघेला पुरा ' के सुखदेव सिंह के कुंए से उठता है .
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