फज़ल इमाम मल्लिक
पटना .करीब सत्रह दिन बाद और 160 बच्चों की मौतके बाद बिहार के सुशासन के शहंशाह, सियासत के बाजीगर और खुद की पीठ थपथपाने में माहिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आखिर बीमार बच्चों की फुर्सत मिली. उनके साथ उनके हां मंत्री यानी उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी थे. लेकिन अस्पातल में बच्चों को देखने के लिए जाने में उनहें बहुत देर हो गई. वे सिसायत करते रहे. उनके नायब सियासी बयानों में मशगूल रहे. मंत्री पर्यटन में मशगूल थे. यानी बच्चों की फिक्र किसी को नहीं थी. बच्चे मरते रहे नीतीश कुमार सियासत करते रहे. बच्चों की मौत हो रही थी और बिहार के स्वास्थय मंत्री मंगल पांडे क्रिकेट का स्कोर पूछ रहे थे. केंद्र के मंत्री प्रेस कांफ्रेंस में नींद के मजे लेते रहे.
सरकार की गंभीरता को इससे समझा जा सकता है. सच तो यह है कि बच्चों की मौत नहीं उनकी हत्या की गई है और जिम्मेदार सरकार है. नीतीश कुमार ने बड़ा अपराध किया है, इसे वे मानें नहीं मानें. समय रहते अगर उन्होंने इस पर ध्यान दिया होता तो यकीनन कई बच्चों की जान बचाई जा सकती थी. इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि बच्चे गरीबों के थे इसलिए नीतीश कुमार की सरकार ने सुध नहीं ली. कइयों का कहना है कि बच्चे वोटर तो होते नहीं है इसलिए सरकार क्यों उनकी सुध ले.
मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार से अबतक 160 बच्चों की मौत हो गई है. अस्पतालों में भर्ती बीमार बच्चों की तादाद बढ़कर 443 हो गई है. बच्चों की मौतों के इस सिलसिले के 17 दिन बाद ही सही, सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीमारी और इससे हो रही मौत के हालात का जायजा लेने मुजफ्फरपुर पहुंचे. अस्पताल पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ अस्तपाल के बाहर आक्रोशित लोगों ने जम कर प्रदर्शन किया. लोग नीतीश से बेतरह नाराज थे. वे नीतीश वापस जाओ के नारे लगा रहे थे. लोगों ने अस्पताल की कुव्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही का आरोप मुख्यमंत्री पर लगाया.
अस्पताल के बाहर लोग मुख्यमंत्री से सवाल पूछने के लिए आतुर थे, लेकिन नीतीश कुमार ने अस्पताल में मरीजों का हाल जानने के बाद किसी से कोई बात नहीं की और सीधे पटना के लिए रवाना हो गए. अस्पताल के भीतर मुख्यमंत्री ने चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों के परिजनों का भी हालचाल जाना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ सुशील कुमार मोदी भी मौजूद रहे. चमकी बुखार से पीड़ित ज्यादातर मरीज मुजफ्फरपुर के सरकारी श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल (एसकेएमसीएच) और केजरीवाल अस्पताल में एडमिट हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के खिलाफ बीमारी से पहले एक्शन नहीं लेने के आरोप में केस दर्ज हुआ है. बच्चों की मौत पर मानवाधिकार आयोग ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भेजा है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मुजफ्फरपुर जिले में इंसेफेलाइटिस वायरस की वजह से बच्चों की मौत की बढ़ती संख्या पर सोमवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और बिहार सरकार से रिपोर्ट दाखिल करने के लिए एक नोटिस जारी किया. मानवधिकार आयोग ने कहा कि सोमवार को बिहार में एईएस से मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर सौ से ज्यादा हो गई है और राज्य के अन्य जिले भी इससे प्रभावित हैं. इसके साथ ही आयोग ने इंसेफेलाइटिस वायरस और चमकी बुखार की रोकथाम के लिए उठाए गए कदमों की स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी है. मानवधिकार आयोग ने चार हफ्तों में जवाब मांगा है.
बिहार में महामारी की तरह फैल रहे चमकी बुखार को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को उच्चस्तरीय बैठक की थी, जिसके बाद मुख्य सचिव दीपक कुमार ने बताया कि बिहार सरकार ने फैसला किया है कि उनकी टीम हर उस घर में जाएगी जिस घर में इस बीमारी से बच्चों की मौत हुई है. टीम बीमारी के बैक ग्राउंड को जानने की कोशिश करेगी, क्योंकि सरकार अब तक यह पता नहीं कर पाई है कि आखिर इस बीमारी की वजह क्या है. कई विशेषज्ञ इसकी वजह लीची वायरस बता रहे हैं, लेकिन कई ऐसे पीड़ित भी हैं, जिन्होंने लीची नहीं खाई.
एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रॉम) से बच्चों की लगातार हो रही मौत के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को स्थिति का जायजा लिया. एसकेएमसीएच में भर्ती एईएस पीड़ित बच्चों का हाल जाना. उनके परिजनों से बात की. इसके बाद उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया कि एसकेएमसीएच को ढाई हजार बेड की क्षमता वाला अस्पताल बनाया जाए. वहीं अभी पांच पीआइसीयू में एईएस पीडि़त बच्चों का इलाज हो रहा. यहां अलग से सौ बेड की पीआइसीयू को अगले साल तक तैयार करने को कहा. इसके अलावा बीमारी के कारणों तक पहुंचने के लिए रिसर्च के साथ सामाजिक सर्वे भी किया जाए. इस क्षेत्र की जलवायु का भी विशेष अध्ययन जरूरी है.
लेकिन सवाल तो बरकरार है कि सरकार इतनी देर से नींद से क्यों जागी. 160 बच्चों की मौत के बाद नीतीश कुमार को मुजफ्फरपुर जाने की याद आई. दस साल से इस बीमारी ने सैंकड़ों बच्चों को लील लिया है और नीतीश कुमार की सरकार बीमारी के बाद हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाती है. केंद्रीय मंत्री डा हर्षवर्धन ने 2014 में सौ बिस्तरों के आईसीयू का वादा किया था. लेकिन वह वादा पूरा नहीं हुआ और इस बार फिर वे आए और वहीं वादा दोहरा कर चले गए. दरअसल बीमारी को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है. बेहिसी और बदइंतजामी ने सैंकड़ों बच्चों की जान ले ली लेकिन नीतीश कुमार की नींद अब जाकर टूटी. यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है.
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