भीषण जल संकट की तरफ बढ़ रहा है देश

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भीषण जल संकट की तरफ बढ़ रहा है देश

अंबरीश कुमार 

नई दिल्ली .देश भीषण जल संकट की तरफ बढ़ रहा है .कई राज्यों में सूखे की आशंका बढ़ गई है .देश के करीब एक करोड़ लोग पानी के संकट से प्रभावित हो चुके हैं .जून महीने की 21 तारीख तक बहुत कम बरसात हुई है .यह जून में होने वाली सामान्य बरसात के मुकाबले आधी से भी कम है. यह पिछले करीब सौ साल में तीसरी बार हुआ है .यह उस विकास का भी नतीजा है जिसपर हम आगे बढ़ रहे हैं .ताल ,तालाब ,नदी नालों और जंगल के साथ जो व्यवहार हम करते रहे हैं उसका परिणाम सामने है .देश के विभिन्न हिस्सों में इस जल संकट के चलते पलायन हो रहा है .गंगा की दर्जनों सहायक नदियां सूखती जा रहीं हैं ,नर्मदा की कई सहायक नदियां दम तोड़ चुकी है .साफ़ पानी के लिए कई हिस्सों में लोगों को काफी दूर तक जाना पड़ रहा है .फिर हम पानी के परम्परागत स्रोत खत्म कर रहे हैं और बचे हुए जंगल को भी विकास के नाम पर बड़े बड़े कारपोरेट घरानों को दे रहे हैं .पचास डिग्री तापमान तो देश के कई हिस्सों में जाता ही है .इस बार दिल्ली में 48 डिग्री तापमान पहुंचा तो लोगों की नींद टूटी .पिछले साल जून में हमने कौसानी जैसे पहाड़ी सैरगाह में दिन में ग्यारह बजे लू जैसी गर्म हवा को महसूस किया .इस पहाड़ी सैरगाह के चारो ओर के जंगल धीरे धीरे काटे जा चुके हैं .बाकी कसर जलवायु परिवर्तन ने पूरी कर दी है .पहाड़ी क्षेत्र के जल स्रोत ,नौले और झरने खत्म होते जा रहे हैं .इनका पानी छोटी नदियों को लबालब रखता था .वे नदियां भी सूखती जा रही हैं .इसी कौसानी के नीचे गोमती और गरुण जैसी नदियों का पानी अब खत्म होता जा रहा है . 

मैदानी अंचल का हाल और बुरा है . ज्यादातर छोटी नदियों को हम गटर में बदल चुके हैं .बनारस में वरुणा और अस्सी नदी नाले में बदल चुकी है .यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है . मध्य प्रदेश में नर्मदा का पानी हम कभी क्षिप्रा में डालते हैं तो कभी साबरमती में ताकि वे जिंदा बचे .बेतवा का पानी केन में डालें या चंबल के साफ़ पानी से पचनदा में गटर बनती यमुना को जीवन दान मिलने की ग़लतफ़हमी पाल सकते हैं .एक नदी के पानी से दूसरी नदी को ज्यादा दिन नहीं बचाया जा सकेगा .जल और जंगल दोनों का संकट गहरा रहा है .

चेन्नई जैसे महानगर में आज जो संकट पैदा हुआ है वह एक दिन में नहीं बना है .यह महानगर बाढ़ भी झेलता है तो सूखा भी .इस महानगर के सारे ताल तालाब को खत्म कर अडयार और कूवम जैसी नदियों को भी बदहाल कर दिया गया है. चेन्नई में अस्सी के दशक से ही पानी का संकट जारी है .पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग से कुछ कामयाबी मिली पर जिस तरह पानी के परम्परागत स्रोत खत्म किए गए उससे यह संकट और गहराता जा रहा है   

और यह किसी एक महानगर का हाल नहीं है .दिल्ली ,मुंबई ,कोलकता जैसे महानगरों से गुजरने वाली नदियों का भी यही हाल है .नदियों का पानी जहरीला हो रहा है तो भूजल भी लगातार घटता जा रहा है .और देश के विभिन्न हिस्सों में भूजल भी कम जहरीला नहीं है .उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब तक के भूजल में आर्सेनिक से लेकर अन्य विषैले तत्व की मात्रा बढती जा रही है .बड़े ताल तालाब तो पिछले पचास साल में हमने बनाए तो नहीं बल्कि जो थे भी उन्हें बदहाल कर दिया .बुंदेलखंड के चंदेल राजाओं के बनाए ताल तालाब का हाल हमीरपुर ,महोबा ,झांसी और टीकमगढ़ आदि में देख सकते हैं .विश्व की सबसे बेहतर नदी प्रणाली वाला बुंदेलखंड लगातार पानी के संकट से जूझ रहा है . ललितपुर, ओरछा, मऊरानी पुर, झांसी, महोबा, कालपी और हमीरपुर जैसे इलाकों में भूजल का स्तर करीब अस्सी फुट नीचे जा चुका है .अप्रैल आते आते बेतवा की धार झांसी के आगे टूट जाती है .यह  स्थिति अब देश के ज्यादातर हिस्सों में होती जा रही है .गुजरात ,महाराष्ट्र ,मध्य प्रदेश से लेकर उत्तर प्रदेश तक .हिमालयी राज्यों में भी पानी का संकट बढ़ता जा रहा है .और साफ़ पानी का संकट तो अब समूचे देश में है .पानी के इस संकट का बड़ा असर खेती पर पड़ना तय है . 

डाउन टू अर्थ पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश का लगभग 44 फ़ीसदी हिस्सा सूखे की स्थिति में है. यह रिपोर्ट 10 जून को की गई थी, जो पिछले साल के मुकाबले 11 फीसदी अधिक है. इस बार मानसून ने देरी से प्रवेश किया है, बल्कि अब तक पिछले 65 साल के इतिहास में यह दूसरा सूखाग्रस्त प्री-मानसून वर्ष भी साबित हो रहा है.इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टॉपिकल मेट्रोलॉजी-2013 में वैज्ञानिकों ने 1871 तक के मानूसन आंकड़ों का अध्ययन किया था। जिसमें कहा गया है कि यदि जून में मानसून की बारिश कम होती है तो मानसून की बारिश में 77 फीसदी तक की गिरावट के आसार रहते हैं.इससे पहले स्काईमेट वेदर ने चेतावनी जारी कर चुका है कि जून माह में देशभर के कम से कम 66 जिलों में 40 फीसदी कम बारिश हो सकती है, लेकिन मौसम विभाग के अपने आंकड़े बताते हैं कि जून माह में मानसून में कमी के आंकड़े और ज्यादा परेशान करने वाले हैं.फोटो- साभार पंजाब केसरी 

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