आलोक कुमार
पटना.बिहार एनडीए में घमासान मचा है.भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बीच तकरार जारी है. संजय जायसवाल ने अल्पसंख्यकों द्वारा दलितों को प्रताड़ित करने का मामला उठाया तो जीतन राम मांझी की पार्टी हम ने एतराज जताया था.
सनद रहे कि इन दिनों बिहार में एनडीए की सरकार है जिसके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं. बिहार एनडीए में भारतीय जनता पार्टी, जनता दल यू ,हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा विकासशील इंसान पार्टी (VIP) शामिल है.जनता दल यू के साथ (हम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी हैं तो भारतीय जनता पार्टी में 'वीआईपी' के अध्यक्ष सन ऑफ़ मल्लाह-मुकेश सहनी हैं.दोनों महागठबंधन छोड़ एनडीए में आए हैं.दोनों सत्ताधारी पार्टी को ऑक्सीजन दे रहे हैं.
वर्तमान में दोनों दलों की गतिविधियोंं पर व उनके वक्तव्य पर पैनी नजर रखी जा रही है.अब तो इंटरनेट वाले सोशल मीडिया भी दिलचस्पी लेने लगे है.
बिहार में कौतूहल बने 'हम' के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी
ने अपने ट्वीट में कहा है कि 'जब भी दलित लोगों के बाल-बच्चे पढ़ाई करते हैं, उसे नक्सली बता दिया जाता है और मुसलमानों के बच्चे मदरसों में पढ़ते हैं तो उसे आतंकवादी कह दिया जाता है.इसको लेकर प्रतिक्रिया तेज हो गयी.
'वीआईपी' के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने कहा कि एनडीए गठबंधन के साथीगण से अनुरोध है कि अनावश्यक बयानबाज़ी से बचें एवं हम सब मिलकर बिहार की जनता से किए गए 19 लाख रोज़गार के वादा पर काम करे.
इस बीच पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि जीतन राम माँझी किसी एक जाति के नहीं, बल्कि बिहार में दलितों केे बड़े सर्वमान्य नेता हैं.उन्होने राजद का कुशासन भी देखा है.उनसे किसी को जबरदस्ती मिलवा देने से कोई फर्क नहीं पड़ता.एनडीए अटूट है और इसकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी.किसी को मुगालते में नहीं रहना चाहिए.
स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव ने भी चुटकी लेकर कहा कि "अगर मांझी जी का मन डोल रहा है तो हमारा दरवाजा खुला है वह आ जाए".
इधर ,6 जून को बिहार विधान परिषद् की 34 समितियों के पुनर्गठन का पत्र जारी किया गया था, लेकिन पुनर्गठन के महज 6 दिन बाद ही अनुसूचित जाति एवं जनजाति समिति के अध्यक्ष संजय पासवान ने समिति से इस्तीफा दे दिया है.भाजपा एमएलसी संजय पासवान ने अपने साथ जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया है.मौजूदा समय में अपनी ही सरकार को दलित अत्याचार के मुद्दे पर दिन-रात कोसने वाली बीजेपी के दलित प्रेम को इससे धक्का लगना तय है.
बीजेपी के विधान परिषद सदस्य और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. संजय पासवान ने परिषद की अनुसूचित जाति-जनजाति समिति के सभापति पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने अपना इस्तीफा परिषद के कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह को सौंपा. कार्यकारी सभापति भी बीजेपी के ही हैं. पांच दिन पहले डॉ. पासवान को इस समिति का सभापति बनाया गया था. गुरुवार को नवगठित समितियों की पहली बैठक बुलाई गई थी. बैठक में शामिल होने के तुरंत बाद वे नाराज होकर निकल गए.निकलने के समय ही उन्होंने सभापति पद से इस्तीफे की घोषणा की थी.शुक्रवार को उन्होंने विधिवत इस्तीफा दे दिया.
इसी तर्क के आधार पर उन्होंने परिषद की अनुसूचित जाति, जनजाति समिति के सभापति पद से इस्तीफा दिया है, क्योंकि उन्हें अनुसूचित जाति का होने के कारण यह पद दिया गया था. उन्होंने कहा कि जाति और लिंग के आधार पर समितियों का सभापति बनाना गलत है. हम कहते हैं कि अगर कोई पुरुष सदस्य सक्षम है तो उसे महिलाओं से संबंधित समितियों का सभापति बना देना चाहिए.
अपने इस्तीफे के बारे में बिहार विधान परिषद में भाजपा के सदस्य संजय पासवान ने कहा कि लगभग एक दशक पहले उन्होंने विधानसभा और लोकसभा चुनाव अनुसूचित जाति वाली सीट से ने लड़ने का फैसला किया था. अब उसी जाति से आने की वजह से उनको सभापति बनाया गया था. उन्होंने कहा कि किसी खास जाति में होने की वजह से कमेटी में शामिल किया जाना सही नहीं है.
एससी-एसटी समिति में अध्यक्ष एससी-एसटी ही क्यों रहेंगे, महिला समिति में सिर्फ महिला ही अध्यक्ष क्यों होंगी. यह एक बुनियादी बात है. यह परंपरा खत्म होनी चाहिए. नॉन शिड्यूल कास्ट के अध्यक्ष शिड्यूलन कास्ट के अध्यक्ष बनें. नॉन मायनॉरिटी कमेटी के अध्यक्ष मायनॉरिटी के लोग बनने चाहिए. जो देश-दुनिया देखेगा, वही हम देखेंगे. ऐसा नहीं होना चाहिए. हर बात पर सहमति बननी चाहिए. मुझसे समिति के बारे में पूछा नहीं गया. पता रहता तो मैं पहले ही मना कर देता. मैं कार्यकारी सभापति की कार्यशैली से नाराज हूं.' -संजय पासवान, विधान पार्षद, बीजेपी.भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बीच तकरार जारी है. संजय जायसवाल ने अल्पसंख्यकों द्वारा दलितों को प्रताड़ित करने का मामला उठाया तो जीतन राम मांझी की पार्टी हम ने एतराज जताया था.
सनद रहे कि इन दिनों बिहार में एनडीए की सरकार है जिसके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं. बिहार एनडीए में भारतीय जनता पार्टी, जनता दल यू ,हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा विकासशील इंसान पार्टी (VIP) शामिल है.जनता दल यू के साथ (हम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी हैं तो भारतीय जनता पार्टी में 'वीआईपी' के अध्यक्ष सन ऑफ़ मल्लाह-मुकेश सहनी हैं.दोनों महागठबंधन छोड़ एनडीए में आए हैं.दोनों सत्ताधारी पार्टी को ऑक्सीजन दे रहे हैं.
वर्तमान में दोनों दलों की गतिविधियोंं पर व उनके वक्तव्य पर पैनी नजर रखी जा रही है.अब तो इंटरनेट वाले सोशल मीडिया भी दिलचस्पी लेने लगे है.
बिहार में कौतूहल बने 'हम' के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने अपने ट्वीट में कहा है कि 'जब भी दलित लोगों के बाल-बच्चे पढ़ाई करते हैं, उसे नक्सली बता दिया जाता है और मुसलमानों के बच्चे मदरसों में पढ़ते हैं तो उसे आतंकवादी कह दिया जाता है.इसको लेकर प्रतिक्रिया तेज हो गयी.
'वीआईपी' के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने कहा कि एनडीए गठबंधन के साथीगण से अनुरोध है कि अनावश्यक बयानबाज़ी से बचें एवं हम सब मिलकर बिहार की जनता से किए गए 19 लाख रोज़गार के वादा पर काम करे.
इस बीच पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि जीतन राम माँझी किसी एक जाति के नहीं, बल्कि बिहार में दलितों केे बड़े सर्वमान्य नेता हैं.उन्होने राजद का कुशासन भी देखा है.उनसे किसी को जबरदस्ती मिलवा देने से कोई फर्क नहीं पड़ता.एनडीए अटूट है और इसकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी.किसी को मुगालते में नहीं रहना चाहिए.
स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव ने भी चुटकी लेकर कहा कि "अगर मांझी जी का मन डोल रहा है तो हमारा दरवाजा खुला है वह आ जाए".
इधर ,6 जून को बिहार विधान परिषद् की 34 समितियों के पुनर्गठन का पत्र जारी किया गया था, लेकिन पुनर्गठन के महज 6 दिन बाद ही अनुसूचित जाति एवं जनजाति समिति के अध्यक्ष संजय पासवान ने समिति से इस्तीफा दे दिया है.भाजपा एमएलसी संजय पासवान ने अपने साथ जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया है.मौजूदा समय में अपनी ही सरकार को दलित अत्याचार के मुद्दे पर दिन-रात कोसने वाली बीजेपी के दलित प्रेम को इससे धक्का लगना तय है.
बीजेपी के विधान परिषद सदस्य और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. संजय पासवान ने परिषद की अनुसूचित जाति-जनजाति समिति के सभापति पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने अपना इस्तीफा परिषद के कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह को सौंपा. कार्यकारी सभापति भी बीजेपी के ही हैं. पांच दिन पहले डॉ. पासवान को इस समिति का सभापति बनाया गया था. गुरुवार को नवगठित समितियों की पहली बैठक बुलाई गई थी. बैठक में शामिल होने के तुरंत बाद वे नाराज होकर निकल गए.निकलने के समय ही उन्होंने सभापति पद से इस्तीफे की घोषणा की थी.शुक्रवार को उन्होंने विधिवत इस्तीफा दे दिया.
इसी तर्क के आधार पर उन्होंने परिषद की अनुसूचित जाति, जनजाति समिति के सभापति पद से इस्तीफा दिया है, क्योंकि उन्हें अनुसूचित जाति का होने के कारण यह पद दिया गया था. उन्होंने कहा कि जाति और लिंग के आधार पर समितियों का सभापति बनाना गलत है. हम कहते हैं कि अगर कोई पुरुष सदस्य सक्षम है तो उसे महिलाओं से संबंधित समितियों का सभापति बना देना चाहिए.
अपने इस्तीफे के बारे में बिहार विधान परिषद में भाजपा के सदस्य संजय पासवान ने कहा कि लगभग एक दशक पहले उन्होंने विधानसभा और लोकसभा चुनाव अनुसूचित जाति वाली सीट से नहीं लड़ने का फैसला किया था. अब उसी जाति से आने की वजह से उनको सभापति बनाया गया था. उन्होंने कहा कि किसी खास जाति में होने की वजह से कमेटी में शामिल किया जाना सही नहीं है.
एससी-एसटी समिति में अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले विधान पार्षद संजय पासवान ने कहा कि एससी-एसटी ही क्यों रहेंगे, महिला समिति में सिर्फ महिला ही अध्यक्ष क्यों होंगी. यह एक बुनियादी बात है. यह परंपरा खत्म होनी चाहिए. नॉन शिड्यूल कास्ट के अध्यक्ष शिड्यूलन कास्ट के अध्यक्ष बनें. नॉन मायनॉरिटी कमेटी के अध्यक्ष मायनॉरिटी के लोग बनने चाहिए. जो देश-दुनिया देखेगा, वही हम देखेंगे. ऐसा नहीं होना चाहिए. हर बात पर सहमति बननी चाहिए. मुझसे समिति के बारे में पूछा नहीं गया. पता रहता तो मैं पहले ही मना कर देता. मैं कार्यकारी सभापति की कार्यशैली से नाराज हूं.
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